निधि 'मानसिंह'
मानव भगवान की बनाई सबसे सुंदर रचना है, और यह सुंदरता तब और अधिक सुंदर हो जाती है जब मनुष्य अपने तन की नही, मन की सुंदरता को अपनाता है। गीता में भी श्रीकृष्ण ने कहा कि "मानव तुम्हारा शरीर तो मिट्टी है और एक दिन मिट्टी में ही मिल जायेगा"हे मानव वास्तविक सुंदरता तो तुम्हारे मन में है। तुम अपने मन की आंखों से जो देखते हो वही सत्य और असत्य है। मानव को कभी अपने सुंदर तन पर घमंड करके अपने सामने वाले को तुच्छ और स्वंय को महान नही समझना चाहिए। जिस प्रकार आकाश से गिरने वाली बूंदे अगर सीप के मुंह मे गिरे तो मोती बन जाती है और अपनी सुंदरता का अभिमान करती है परंतु अंत में किसी एक व्यक्ति के ही हार श्रृंगार की वस्तु मात्र बनकर रह जाती है, अगर वही बारिश की बूंदे धरती पर गिरती है तो, वह धरती की प्यास बुझाती हैं। चारों ओर हरियाली फैलाती है, अन्न उत्पन्न करती है और संसार के लिए कल्याणकारी सिद्ध होकर अपनी सुन्दरता और निस्वार्थ भावना का परिचय देती है।
हमारा चेहरा कितना भी सुंदर क्यों ना हो, कितना भी दूसरों को लुभाने वाला हो, अगर हमारी जुबान कडवी है, हमारी वाणी कटु है तो सब लोग हम से मुंह फेर लेगें, हम से घृणा करेगें।
कबीरदास ने भी अपने एक दोहे में कहा है कि -
ऐसी वाणी बोलिए,
मन का आपा खोऐ।
औरन को शीतल करे,
आपहि शीतल होये।
मोल हमारे चेहरे की सुंदरता का नही हमारी जुबान की सुंदरता का है हमारे मन की सुंदरता का है।हमारा तन सदैव सुंदर नही रहता एक उम्र के बाद ये अपनी सुंदरता खोने लगता है। परंतु हमारा मन सदैव सुंदर बना रहता है अगर उसमें सब के लिए अच्छे विचार हो, प्रेम हो, आदर हो परोपकार की भावना हो और घृणा व ईर्ष्या का नाम भी न हो।
भगवान की दृष्टि में सब मनुष्य समान है फिर वो चाहे श्वेत हो या श्याम वर्ण। भगवान अपनी संतान से एक समान प्रेम करते हैं। लेकिन मानव को एक दूसरे का परिहास करने में, नीचा दिखाने में आंनद प्राप्त होता है।और स्वंय को महान और ज्ञानी समझता है।
एक श्वेत वर्ण मनुष्य स्वंय को संसार का सबसे सुंदर व्यक्ति समझता है वह दूसरों का परिहास करने में तनिक भी संकोच नहीं करता। परंतु उसकी आत्मा उसका मन उतना ही काला होता है। क्योंकि उसके मन में घंमड, निन्दा, परिहास और ईर्ष्या का ढेरा होता है।
एक श्याम वर्ण मनुष्य की आत्मा उतनी ही उजली होती है जितनी सूर्य की किरणें। जिस प्रकार सूर्य की किरणें अन्धकार को चीरकर उजाला करती है, उसी प्रकार श्याम वर्ण मनुष्य की आत्मा भी परिहास, निन्दा और ईष्या से जीवन भर लडती रहती है। और अपनी असली सुंदरता जो मन की सुंदरता है उसे कभी नहीं खोने देती। भगवान श्रीकृष्ण भी श्याम वर्ण के थे। वे सदैव माता यशोदा से अपने श्याम वर्ण के बारे में पूछकर चिंतित होते रहते थे।
फिर माता यशोदा कहती थी, कि वो भले ही श्याम रंग के है लेकिन वो संसार में सबसे अलग और सबसे सुंदर है।
मात यशोदा का श्याम दुलारा
सबसे प्यारा, सबसे न्यारा।
नन्द बाबा की, आंखों का तारा
प्रेम करे जिसे, गोकुल सारा।
सुन्दरता हमारी सूरत में नहीं सीरत में होनी चाहिए। हमे ऐसे कर्म करने चाहिए कि संसार हमे हमारे गुणों से, हमारी अच्छाईयों से पहचानें। तन की सुंदरता तो केवल नाम की होती है वास्तविक सुंदरता अगर है तो वह है "मन की सुंदरता"
- © निधि 'मानसिंह'