कोरोना भयावहता में महावीर की प्रासंगिकता

Dr. Mulla Adam Ali
0

      भगवान महावीर की अहिंसक दृष्टि और सृष्टि -संकल्पना क्या आज की कोरोना-भयावहता में प्रासंगिक है? क्या सृष्टि के जड़ और चेतन पदार्थों -जीवो के तत्वज्ञान के साथ प्रकृति में सहिष्णु जीवन के संकल्पना दुनिया को बेहतर बना सकती है? बाजारवाद के प्रपंच और लोभी दुनिया के बीच क्या सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चरित्र केवल सैद्धांतिक विमर्श हैं ?या वे अंततः इस धरती पर संतुलन और जीवों की मुक्ति का आधार हैं?डॉ.जयकुमार जलज ने "भगवान महावीर का बुनियादी चिंतन" पुस्तिका में लिखा है -"महावीर किताबी आदमी नहीं हैं। वह अकेले तत्वज्ञान को मुक्ति के लिए पर्याप्त नहीं मानते। उनका ज्ञान जीवन से जुड़ा है। "जीओ और जीने दो की संकल्पना काल्पनिक नहीं है। उसमें संसार के समस्त प्राणियों का लोकतंत्र है।

          महावीर केवल मनुष्य की बात नहीं करते ।वे जीव- मात्र तक अटकते नहीं हैं। वनस्पतियों में जीवन मानकर उनके संरक्षण की वकालत करते हैं। जो स्थावर हैं- पृथ्वी - जल - वायु -अग्नि आदि के रूप में ,उनके दुरुपयोग को भी वे द्रव्य- हिंसा मानते हैं आखिरकार जीवो का बाहरी पर्यावरण तो इन्हीं से बनता है ।और इनका विनाश होता है तो मानव और जीव भी आहत होते हैं।

           आज पूरी दुनिया भयाक्रांत है। कोरोना अदृश्य यमराज के रूप में इस तरह आया है कि जातियों के बीच की छुआछूत तो फिर भी थम गई मगर घर परिवार के रिश्तों के बीच यह छुआछूत क्वारंटाइन हो गई है। महावीर पंचेंद्रिय जीवो की बात करते हैं ।मनुष्य बन पंचेंद्रिय होकर धरती का शिखर पुरुष बनने के अहंकार में डूबा है। लेकिन आज एकेंद्रिय जीव चुनौती दे रहा है,तो यह अहंकार ग्लैशियर की तरह टूटने लगता है। कोरोना वायरस जीवाणु है भी कि नहीं ,पर उसका म्यूटेशन निरंतर बदलता रूप चिकित्सा के उपचारों को भी धता बता रहा है।पिछले कोरोना में प्रकृति खिली-खिली थी। जीव-जंतु सड़कों पर चहलकदमी कर रहे थे। और आदमी लॉकडाउन में कैद !क्या मनुष्य दिग्विजयी तकनीकी क्रांति का अहंकार को, प्रकृति में अपने ही दखल को समझेगा ?

          महावीर इसीलिए अहिंसक जीवन के पहरुए हैं। वनस्पतियों के संरक्षक हैं। जीवाणुओं की अपनी सत्ता की बात करते हैं और संतुलन बनाए रखने के लिए नदी पहाड़ हवा आकाश आदि के बीच अनावश्यक छेड़छाड़ को हिंसा मानते हैं। पर आदमी है कि वह भीतर के राग-द्वेषों से ,सत्ता के लालच सेे, लोभ के बाजारों से, ईर्ष्या के युद्धों से दूसरों के लिए हाशिय तक नहीं छोड़ना चाहता। इसी धुरी पर राष्ट्रपति राधाकृष्णन् ने महावीर की सार्वकालिक दृष्टि को समझा था। यही कि टैंकों -जेटों वाले दुश्मनों से जंग जीता जा सकता है ,मगर क्रोध -मान- माया -लोभ जैसे मनोविकारों से युद्ध आसान नहीं है। वे मनोविकारों से लड़ते हैं, इसीलिए वे महावीर हैं ।यह मनोविकार ही इतने मायावी शक्ति वाले हैं, जो युद्धों में खून की नदियां बहा देने में समर्थ हो जाते हैं। नहीं मालूम कि कोरोना वायरस चमगादड़ों से पसरा है या भविष्य के बाजार -युद्ध का जैविक मानवनिर्मित हथियार। पर उसके मूल में सर्वशक्तिमान देश बनने का अहंकार तो मौजूद है।

         ये ही मायावी मनोविकार देशों की कूटनीति में मुखौटे लगा कर आते हैं -मानवीयता के ,मानवाधिकारों के। मगर भीतर में बाजार का साम्राज्य खड़ा करने का एकाधिकारी लालच। वैश्विक तापमान में तपती दुनिया में अपनी बाजारवादी आस्था के छिपे हुए इरादे। एकाधिकार के सोच। दवाओं का व्यापार। ऐसे में महावीर कहते हैं- "परस्परो अनुग्रहो जीवानाम्। "संतप्त प्राणियों के बीच सहकार होना चाहिए अतिक्रमण नहीं । क्यों वैक्सीनों का परिग्रह करते हो ? क्यों चीजों का परिग्रह करते हो? सारी चीजें यदि परिग्रह की धारणा से, कालाबाजारी से मुक्त हो जाएं तो कुछ जेबों या देशों के मुद्रा भंडार भले ही लबालब हो जाएं, मगर मनुष्य और जीवों के बीच, प्रकृति और मनुष्य के बीच यदि यह अतिक्रमण होता रहा तो कोरोना -पाठ भयावह होगा। मनुष्य विचार करें कि हजारों पेड़ों का कटना और मांसाहार के लिए लाखों पशुओं की हत्या क्या उसे विचलित नहीं करती ?जबकि जीवन उन में भी है। फिर मांसाहार के बाद बची गंदगी यदि स्वाइन फ्लू जैसे रोगों को जन्म देती है, तो फिर मुक्ति के उपाय खोजने की क्या जरूरत है?

         महावीर जरूरी मानते हैं अहिंसक चरित्र। वह अपरिग्रह, जो कालाबाजारी और मुनाफावसूली को पाप मानता है ।उस अहंकार पर नियंत्रण, जो साम्राज्यवादी लिप्सा में दुनिया पर गोले बरसाता है। जरूरी है कट्टरताओं में उपजी नफरतों पर नियंत्रण का दर्शन। कर्मफल का महावीर दर्शन, मनुष्य को जीवन और भावी जन्मांतर यात्राओं के लिए भी नैतिक पाठ पढ़ाता है। जन्म -जन्मांतर की आचार संहिता। कोई दवा, कोई तकनीक और कोई व्यवस्था धरती को जीने योग्य नहीं बना सकती, जब तक मनुष्य के मनोविकारों में निर्मलता की भावना न आए। इसीलिए महावीर बाहर से बदलने की बात नहीं करते। भीतर से बदलने की सुनहली दुनिया की बात करते हैं।

बी.एल. आच्छा 

 फ्लेट- 701, टावर -27

नॉर्थ टाउन, स्टीफेंशन रोड 

पेरंबूर, चेन्नई (टी एन)

पिन-600012 

मोबाइल - 942 508 3335

ये भी पढ़े;

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें (0)

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !
To Top