हिन्दी वर्णमाला का क्रम से कवितामय प्रयोग

Dr. Mulla Adam Ali
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हिन्दी वर्णमाला का क्रम से कवितामय प्रयोग।


*अ* चानक,

*आ* कर मुझसे,

*इ* ठलाता हुआ पंछी बोला।

*ई* श्वर ने मानव को तो-

*उ* त्तम ज्ञान-दान से तौला।

*ऊ* पर हो तुम सब जीवों में-

*ऋ* ष्य तुल्य अनमोल,

*ए* क अकेली जात अनोखी।

*ऐ* सी क्या मजबूरी तुमको-

*ओ* ट रहे होंठों की शोख़ी!

*औ* र सताकर कमज़ोरों को,

*अं* ग तुम्हारा खिल जाता है;

*अ:* तुम्हें क्या मिल जाता है?

*क* हा मैंने- कि कहो,

*ख* ग आज सम्पूर्ण,

*ग* र्व से कि- हर अभाव में भी,

*घ* र तुम्हारा बड़े मजे से,

*च* ल रहा है।

*छो* टी सी- टहनी के सिरे की

*ज* गह में, बिना किसी

*झ* गड़े के, ना ही किसी-

*ट* कराव के पूरा कुनबा पल रहा है।

*ठौ* र यहीं है उसमें,

*डा* ली-डाली, पत्ते-पत्ते;

*ढ* लता सूरज-

*त* रावट देता है।

*थ* कावट सारी, पूरे

*दि* वस की-तारों की लड़ियों से

*ध* न-धान्य की लिखावट लेता है।

*ना* दान-नियति से अनजान अरे,

*प्र* गतिशील मानव,

*फ़* रेब के पुतलो,

*ब* न बैठे हो समर्थ।

*भ* ला याद कहाँ तुम्हे,

*म* नुष्यता का अर्थ?

*य* ह जो थी, प्रभु की,

*र* चना अनुपम.......

*ला* लच-लोभ के 

*व* शिभूत होकर,

*श* र्म-धर्म सब तजकर।

*ष* ड्यंत्रों के खेतों में,

*स* दा पाप-बीजों को बोकर।

*हो* कर स्वयं से दूर-

*क्ष* णभंगुर सुख में अटक चुके हो।

*त्रा* स को आमंत्रित करते-

*ज्ञा* न-पथ से भटक चुके हो।

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