कवि जयदेव की कल्पना है राधा - शोध

Dr. Mulla Adam Ali
0

श्रीकृष्ण की प्रेयसी राधा हैं जयदेव की कल्पना 

        जयदेव संस्कृत के अंतिम, अप्रतिम कवि हैं। जयदेव के बाद संस्कृत में इतनी अच्छी रचना फिर कभी किसी कवि ने नहीं लिखी । जयदेव 12 वीं शताब्दी में पैदा हुए थे और उन्हें श्रीमद्भागवत के रचनाकार महर्षि वेदव्यास का अवतार कहा जाता है। जयदेव ने ही पहली बार कृष्ण की प्रेयसी राधा की कल्पना की थी और गीत गोविंद में राधा को अवतरित किया था। इसी तरह मैथिली भाषा के कवि विद्यापति को जयदेव का अवतार कहा जाता है। 

 गीत गोविंद में राधा का अवतरण होने के बाद अन्य कवि भी राधा को कृष्ण की सखी और प्रेयसी मान कर गीत लिखने और गाने लगे। इस तरह राधा जनमानस में छा गईं। श्रीमद्भागवत में और महाभारत में कहीं भी राधा नाम का उल्लेख नहीं मिलता.! जयदेव के बाद संस्कृत और हिंदी के कवियों ने राधा के चरित्र को अमर बना दिया।

       जयदेव का जन्म सन् 1130 से 1200 के बीच कभी उत्कल यानी उड़ीसा में भुवनेश्वर व जगन्नाथ पुरी के बीच स्थित केंदु बिल्व गांव में हुआ था। बचपन से उन्हें कविता करने का शौक था। जगन्नाथ पुरी में भगवान श्री कृष्ण उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा का मंदिर है । इसे जगन्नाथ मन्दिर कहा जाता है। जयदेव ,भगवान जगन्नाथ के भक्त थे।

   एक बार वह अपने गांव से जगन्नाथ मंदिर के लिए चले। भगवान श्री कृष्ण के दर्शन करने। रात में श्री कृष्ण जयदेव के सपनों में आए ।और सपने में ही जगदेव को प्रेरणा मिली की वह श्री कृष्ण और राधा के लिए गीत लिखें। राधा कौन हैं यह उन्हें सपने पता चला था। भगवान श्री कृष्ण ने जयदेव को कई बार प्रेरणा दी और राधा के बारे में बताया। जयदेव जगन्नाथ पूरी गए और भगवान श्री कृष्ण यानी जगन्नाथ के दर्शन किए और एक साधु की तरह वीतरागी होकर एक वृक्ष के नीचे बैठ गए और श्री कृष्ण और राधा के गीत गाने लगे। 

     जयदेव के गीत इतने सु मधुर थे कि उन्हें सुनने के लिए भीड़ लगने लगी। साधु संत और भगवान कृष्ण के भक्त भी आने लगे। इन्हीं भक्तों में से एक् ने अपनी पुत्री पद्मावती की शादी जयदेव से कर दी। जयदेव गृहस्थ होकर भी संत बने रहे और भगवान श्री कृष्ण और राधा के गीत गाते रहे। 

      जयदेव ने संस्कृत के गीतों को एक नई दिशा दी नया प्रयोग किया। उन्होंने संस्कृत के गीतों में श्लोकों में गीत गोविंदम की रचना की। गीत गोविंदम में 24 प्रबंध और 12 सर्ग हैं। प्रत्येक अध्याय में किसी में 77 तो किसी में 72 श्लोक हैं। रति मंजरी , जयदेव की दूसरी कृति है।

   गीत गोविंद में जयदेव ने बहुत सरस संस्कृत भाषा में राधा और कृष्ण के प्रेम को चित्रित किया है। जय देव के कृष्ण निराकार हैं और निराकार होते हुए भी साकार हैं। संयोग, वियोग श्रृंगार_ सौंदर्य और काम का इतना सुंदर वर्णन अपने काव्य में जयदेव ने किया है कि जो पढ़ता है आश्चर्यचकित हो जाता है। श्रीमद्भागवत का रचनाकार तो सिर्फ भक्ति :रस से ही परिपूर्ण है किंतु गीत गोविंद के रचनाकार श्रंगार सौंदर्य से होता हुआ रति तक जाता है। बसंत, रासलीला, वेणु,भ्रमर, यमुना के कुंज, रूठना मनाना सब कुछ सहज भाव से जयदेव ने गीत गोविंदम में गाया है। कुछ विद्वान जयदेव को केवल कृष्ण का भक्त कहते हैं किंतु गीत गोविंदम पढ़ने पर पता चलता है कि कृष्ण रूठी हुई राधा को मनाने के लिए सब कुछ करने को तैयार हो जाते हैं। राधा, कृष्ण से कहती हैं कि वह सिर्फ राधा के है गोपीकाओं के नहीं। सखी राधा को अभिमान छोड़ने को कहती है। कृष्ण राधा की हर बात मानते हैं। अप्रतिम सौंदर्य , लावण्य और अद्भुत प्रेम भरा है गीत गोविंद में। नागरी प्रचारिणी सभा ने गीत गोविंदम को सबसे पहले छापा था। कई मायनों में कालिदास माघ ,भवभूति और दंडी आदि कवियों से भी आगे निकल गए हैं जय देव। 

   सेन वंश के बंगाल में एक राजा थे लक्ष्मण सेन। लक्ष्मण सेन के एक शिलालेख में जो सन 1196 का है उसमें जयदेव के गीत गोविंदम के बारे में उल्लेख मिलता है।

   कुछ विद्वानों का मानना था कि जयदेव बंगाल के किसी राजा के आश्रित थे। पर अब माना जाता है कि महाकवि जयदेव उड़ीसा राजाओं के आश्रय में रहे। उड़ीसा के राजा प्रताप रूद्र देव का उल्लेख जयदेव के समकाल में मिलता है। 

  अब जयदेव के गांव को जयदेव पुर के नाम से जाना जाता है। राजा प्रताप रूद्र देव की राजधानी को प्रताप रूद्र देवपुर के नाम से जाना जाता है।

    उड़ीसा के राजा ने एक राज आज्ञा जारी की थी जिसमें उड़ीसा के गायकों, भक्तों, नर्तकों को जयदेव के गीत गाने को कहा गया था। इस तरह जयदेव के जीवन काल में ही गीत गोविंदम को पर्याप्त मान्यता मिल गई थी। 

    गीत गोविंदम का लैट्रिन, फ्रेंच, जर्मन ,अंग्रेजी ,अरबी और फारसी भाषा में अनुवाद हुआ है। जयदेव के मित्र उदयन आचार्य ने गीत गोविंदम पर सबसे पहले भाषा टीका लिखी है भावाभिमानी। 

   भक्त कवि नाभादास ने अपने सुप्रसिद्ध ग्रंथ भक्तमाल में जयदेव के कृतित्व का वर्णन किया है । नाभादास ने भक्तमाल में जयदेव को संस्कृत कवि सम्राट कहा है। अनेक विदेशी भाषा के विद्वानों ने महाकवि जयदेव के गीत गोविंदम पर अपनी अपनी राय दी है। गीत गोविंदम को अद्भुत काव्य ग्रंथ माना है। कुछ विद्वान इसे काव्य नाटक कहते हैं तो कुछ सिर्फ काव्य। जयदेव ने तो अद्भुत श्रंगार और भक्ति गीतों की रचना की है। गीत गोविंदम को नाटक के रूप में भी और नृत्य नाटक के रूप में भी प्रस्तुत किया जाता है। विश्व भर में हजारों प्रदर्शन गीत गोविंदम के हुए हैं।

जर्मन कवि गेटे ने गीत गोविंदम को अप्रतिम रचना बताया है और इसे विश्व काव्य में प्रमुखता से स्थान दिया है।

 भले महाकवि जयदेव हमारे बीच उपस्थित नहीं है पर वह अपनी रचना गीत गोविंदम और रतिमंजरी के रूप में सदैव उपस्थित रहेंगे।

(प्रामाणिक जानकारी के आधार पर लिखित। सर्वथा अप्रकाशित)

शिवचरण चौहान
कानपुर 209 121
shivcharany2k@gmail.com
Mobile : 63942 47957

कमाल का तमाल (राधा कृष्ण के प्रथम मिलन का साक्षी तमाल

राधा कृष्ण के प्रथम मिलन का साक्षी तमाल (ललित आलेख)

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें (0)

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !
To Top