जब तुलसीदास ने टोडर सिंह की याद में लिखे चार दोहे
रामचरित मानस की रचना के बाद वह इतने लोकप्रिय हुए कि कुछ पाखंडी विद्वान उनकी हत्या कररने का षड्यंत्र करने लगे। उस समय तुलसीदास को काशी निवासी भदैनी के जमीनदार
ठाकुर टोडर सिंह ने ससम्मान अपने पास रखा। वह तुलसीदास का बहुत ही सम्मान करते थे।
तुलसीदास रोज तड़के गंगा स्नान के लिए जाते थे। इसलिए तड़के गंगा स्नान करने जाते समय तुलसीदास की हत्या की योजना बनी और हत्यारे राह में लगा दिए गए।
संयोग से जिस दिन तड़के तुलसीदास की हत्या की योजना थी। उस दिन गोस्वामी जी थोड़ा देर से जागे और उस दिन उनसे पहले भदैनी के जमींदार ठाकुर टोडर सिंह पहले गंगा
स्नान करने चले गए और हत्यारों ने ठाकुर टोडर सिंह को गोस्वामी तुलसीदास समझकर हत्या कर दी।
चार गांव को ठाकुरो, मन को महामहीप।
तुलसी या कलिकाल में, सरस्यो टोडर दीप।। 1 ।।
तुलसी राम सनेह भो, सिर धरि भारि-भारि।
टोडर कंधा न दियो, सब महि रहे उतारि।। 2।।
तुलसी उर प्याला पियल, टोडर गुन गन राग।
ये दोऊ नैनन सींचिहहूं, समुझि-समुझि अनुराग ।। 3 ।।
राम-धाम टोडर गए, तुलसी भयो असोच ।
जियबो मीत-पुनीत बिन, यही जानि संकोच।। 4 ।।
ये चार दोहे तुलसी ने अपनी मित्र की हत्या पर अति व्याकुल होकर कहे थे, इसके बाद किसी सांसारिक मनुष्य का गुणगान उन्होंने लाख प्रलोभनों और डराने-धमकाने पर नहीं किया।
उस कठिन मुगलकाल में हिन्दी और हिन्दू धर्म को बचा लिया।
टोडरमल की हत्या के बाद उनके परिवचार में जमीन, जायदाद को लेकर विवार खड़ा हो गया। तब गोस्वामी तुलसीदास ने सभी हिस्सेदारों के पंच बनकर जमीन जायदाद का बंटवारा
किया और अपनी हस्तलिपि में पंचनामा (बंटावारा-पत्र) लिखा जिसमें जमींदार टोडरमल के उत्तराधिकारियों ने हस्ताक्षर किया और उसे स्वीकार किया। इसमें गोस्वामी तुलसीदास के हस्ताक्षर हैं। यह पत्र बहुत दिनों तक भदैनी के जमींदार टोडर सिंह के परिवारवालों के पास सुरक्षित रहा
बाद में तत्कालीन काशीनरेश ईश्वरी शरण सिंह ने काफी कीमत अदाकर इस पत्र को टोडर सिंह के परिवार से खरीद लिया। जो उनकी सम्पत्ति बन गई।
आज तक तुलसीदास की हस्तलिपि में रामचरित मानस की कोई पूर्ण प्रति नहीं मिली, सिर्फ
स्व. टोडर सिंह के परिवार के बंटवारे वाला पंचनामा ही तुलसीदास की हस्तालिपि में मिला है।
गीतावली, कवितावली, दोहावली, बरबै रामायण आदि की भी रचना गोस्वामी तुलसीदास ने की है
गोस्वामी तुलसीदास ने नरहरिदास से दीक्षा ली और जीवन भर राम का गुणगान करते रहे।
किसी प्रलोभन, पद-लालसा में नहीं फंसे।
पर मलिक मुहम्मद जायसी, दिल्ली के शेरशाह सूरी के दरबार तक गए और अपमानित होकर लौटे पर चित्तौड़ की महारानी व राजा रत्नसेन की पत्नी की प्रेमगाथा पद्मावत अवधी में लिखकर अमर हो गए। अष्टछाप के कवि कुंभनदास भी
अकबर के दरबार फतेहपुर सीकरी तक गए और अपमानित हुए-
संतन कहां, सीकरी सो काम।
आवत जात पनहियां टूटी, बिसर गयो हरिनाम।।
पर तुलसीदास ने अपने परममित्र टोडर सिंह के लिए चार दोहे लिखकर, फिर न किसी इंसान का गुणगान किया। न झुके, न रुके, न टूटे और काशी में ही गंगा घाट पर निर्वाण प्राप्त करने तक राम के ही गुण गाते रहे। स्वामी हरिदास का संगीत सुनने तो बादशाह अकबर आता था, पर तुलसी की रामकथा सुनने के लिए तो स्वयं हनुमान आते थे।
संदर्भ- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल, हजारी प्रसाद द्विवेदी, चन्द्रबली पाण्डेय, सर जार्ज गियर्सन
आदि विद्वानों के समीक्षा ग्रंथों के आधार पर लिखित शिव