पत्रकारिता : चुनौतियां और दायित्व - बी. एल. आच्छा

Dr. Mulla Adam Ali
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                इसमें कोई दो राय नहीं कि जनसंचार माध्यमों ने दुनिया का नक्शा बदल दिया है, आम आदमी के भीतर की अस्मिता को भी ।अब आदमी दया में नहीं जीता, अभिव्यक्ति और संघर्ष में जीता है। यह भी कि पत्रकारिता ने सत्ताओं को जनपक्षधरता और अभिव्यक्ति की खुली जबान से सचेत किया है। फिर भी सच्चाइयों को उगलती पत्रकारिता पर ताले जड़ने वाले प्रावधान बनते हैं, तो मिशन भावना से सामाजिक प्रतिमानों के साथ यही पत्रकारिता सत्ता और राजनीति से टकराती रही है ।

         युद्धों के समय की पत्रकारिता के लिए इलियट ने खूब कहा था- "सोचो, इतिहास के भीतर कैसे-कैसे काइयां रास्ते ,गुप्तचर गलियारे और मुद्दे छिपे रहते हैं। इतिहास फुसफुसाती महत्वाकांक्षाओं से हमारे दर्प में हमें छलता है ।आगे ठेलता है। और सोचो, अंत में न तो भय और न ही साहस हमें बचाते हैं।" यह बात विकसित देशों की पत्रकारिता में कुछ खास साहसिक है। अफगानिस्तान हो या सीरिया आर्मीनिया हो या अज़रबैजान बहुत साहसिक ढंग से अपने लेखक- पत्रकार- जासूस -पर्यटक को छुपाए पत्रकारिता को मौत के खतरों तक ले जाते हैं। यह बात भारत में सरहदी मोर्चों तक जाती है।पर हिंदुस्तानी परिप्रेक्ष्य में यह बात छोटे-छोटे कस्बों में पत्रकारों पर हमले या व्यावसायिक प्रतिष्ठानों की कारगुज़ारियों ,अपराधों के माफिया जगत तक जाती है, तो सारे तथ्यों के बावजूद भय और साहस में सत्ता और विपक्ष के पेंचों में, पुलिसिया-प्रशासनिक दबावों में झूलते हुए संतुलन बनाना पड़ता है। ये ऐसी गलवान घाटियां हैं,जो देश के अंदर बना दी जाती हैं।चैनल और अखबारों के प्रतिबद्ध मोर्चे अपने ही नगाड़े बजाते रहते हैं। विडियो की प्रामाणिकता और झूठ के विडियो भ्रमों का संजाल बन जाते हैं।
      भारतीय पत्रकारिता यों तो यथास्थिति से बहुत दूर नहीं है ,पर उसका कैचमेंट क्षेत्रफल बहुत फैला हुआ है। निजी क्षेत्र में पक्ष-विपक्ष की निकटता और विचारधाराओं की प्रतिबद्धता से लेकर सामाजिक सरोकारों तक। पीत और स्वार्थ लक्षित पत्रकारिता से लेकर पत्रकारिता के विविध रूपों तक। विज्ञापनों के लिए सरकारपरस्ती से लेकर सत्ता खिलाफी की वाजिब- गैर वाजिब प्रवृत्तियों तक। सत्ता संघर्ष और पार्टियों की अंदरूनी गुटबाजी से लेकर सैन्य सामग्री की भारी भरकम खरीदी के आरोपों प्रत्यारोपों के वक्तव्य युद्ध तक। खासकर इलेक्ट्रॉनिक पत्रकारिता तो अपने-अपने मंच को ही दंगल बनाकर गौरव रचाती है।ऐसे में सामाजिक सौहार्द, राज्य और केंद्र संबंध, सरकारी संस्थाएं भी आरोपों-प्रत्यारोपों के बीच संदिग्ध बन जाते हैं।
         हिंदी पत्रकारिता की सबसे बड़ी चुनौती है अभिव्यक्ति की प्रामाणिक तथ्यपरकता और पत्रकारिता की व्यावसायिक अनिवार्यता के बीच संतुलन का। विचारधाराओं के या पक्ष विपक्ष की प्रतिबद्धता के पाला-वादी विचारधाराओं के हथियार न बनने का। तथ्यों के रहते हुए सत्ता के पक्ष- विपक्ष के दबाव में खुलकर न खेल पाने का। कभी-कभी साहसी खुलापन टीआरपी या अखबारी प्रसार संख्या के लिए होता है। सनसनी की तरह और फिर न्यायालय परिसर में फुस्स हो जाता है। दरअसल पत्रकार में एक लेखक, एक जासूस, एक संवादी व्यक्तित्व ,भय और साहस में प्रामाणिक तथ्यों की डिग्री का परखदार और सनसनी को संतुलित भाषा में तौलता मिशनरी अंदाज जिंदा रहना चाहिए ।पर यह भी है कि पत्रकारिता के प्रतिष्ठानों की भी अपनी प्रतिबद्धता है। अपने लालच हैं, जो संपादकीय के हृदय क्षेत्रों के कार्डियो को दबाते रहते हैं।

          जैसे पराधीनता के समय पत्रकारिता घराना नहीं ,मिशन बनी थी। वैसे ही आज नए मिशन और
  व्यावसायिक प्रबंधन के तालमेल की जरू है। पत्रकारिता को जनसंवेदी बनाना होगा।जन समस्या में पत्रकारिता मिशन जितना जनोन्मुखी होगा, उतना ही ग्राहकोन्मुखी।राजस्थान पत्रिका ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर तालाबंदी की खिलाफत, लेखन के माध्यम से ऐतिहासिक- सांस्कृतिक यात्रा के विमर्श , नारी जागृति, युवाओं में रोजगार ,बच्चों के मनोविज्ञान और जीवन की धड़कनों के निकट के साहित्य से पाठकों को जोड़ा है,उसे अब और व्यापक बनाना होगा। जहां सार्वजनिक स्थानों में स्वच्छता, शिक्षा पर माफिया नियंत्रण, स्वास्थ्य की प्राथमिकता, वंचितों और कुपोषितों के लिए संसाधनों की व्यवस्था, दफ्तरों में भ्रष्टाचार और लालफीताशाही के खिलाफ मोर्चा इत्यादि मुद्दों को अखबार और जनता के बीच का सक्रिय संवाद बनाना होगा। और इससे पाठक -ग्राहक ही नहीं बढ़ेगे, बल्कि उस मिशन के सहयात्री भी होंगे।यह भी कि पत्रकारिता की निर्भीक चुनौतियों के लिए पत्रकारों के संरक्षण और पारिवारिक उत्तरदायित्वों के अनुरक्षण के लिए कारगर उपाय जितने जरूरी हैं,उतने ही पत्रकारिता के कुत्सित कारनामों के लिए कठोर प्रावधान भी।

    बी. एल. आच्छा 
    फ्लेट-701 टावर-27
नार्थ-टाउन, स्टीफेनसन रोड
 पेरंबूर, चेन्नई (टी एन )
पिन-600012
      मोबा- 9425083335

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