पद्मावत के रचनाकार मलिक मोहम्मद जायसी का पूरा जीवन दुर्भाग्य से भरा रहा। बचपन में उन्हें बड़ी चेचक हो गई थी। जिसे तब शीतला माता का प्रकोप कहा जाता था। चेचक के प्रकोप से जायसी कुरूप हो गए थे। उनकी बाई ओर की आंख अंधी हो गई थी और जायसी बाएं कान से बहरे हो गए थे। जब शेरशाह सूरी ने जायसी की ख्याति सुन कर अपने दरबार में बुलाया तो अस्ट्राबक्र जायसी को देख कर सभी दरबारी हंस पड़े। तब जायसी हंसे -
मोहि हसेहु कि कोहरई _ मुझ पर हंस रहे हो या मेरा शरीर बनाने वाले पर_ यह सुनकर शेरशाह सूरी लज्जित हुआ और इससे जायसी से माफी मांगी। जायसी के उस्ताद गुरु, हकीम की सलाह पर अफीम के फूल पोस्ता बोडी का पानी पीते थे और जायसी ने एक रचना पोस्ती लिखी थी। जिसे सुनकर गुरु ने कहा था अरे निपूते तू नहीं जानता कि तेरा गुरु उस्ताद पोस्ती है। कहते हैं कि जायसी के सात पुत्र थे जो गुरू के शाप के कारण छत गिरने से दब कर मर गए और तब गुरु ने कहा था _ जा अब तू अपनी रचना पद्मावत के कारण अमर हो जाएगा!
कहते हैं जायसी कहा करते थे कि उनकी मौत एक बहेलिए के कारण होगी और हुआ भी ऐसा ही है। जब जायसी अमेठी नरेश राम सिंह के यहां रहते थे तो जायसी की मौत अमेठी नरेश की सुरक्षा में रहने वाले बहेलिए (शिकारी )के हाथों 14 अक्टूबर 1542 को हुई थी। अमेठी नरेश ने रामनगर में अपने किले के पास उनकी समाधि बनवाई थी। गुरु की आज्ञा से जायसी अमेठी में और जायसी के गुरु भाई हज़रत निजामुद्दीन बंदगी लखनऊ की अमेठी में अा कर बस गए थे। और अपने सैकड़ों शागिर्द बनाए थे। आज भी लखनऊ की अमेठी को बंदगी की अमेठी कहा जाता है।
जीवन परिचय
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मलिक मुहम्मद जायसी ने वैसे तो कई प्रबन्ध काव्य लिखे पर उन्हें जो शोहरत ‘पद्मावत’ लिखकर मिली, वैसी अन्य किसी ग्रन्थ से नहीं मिली। उनके पहले मुल्ला दाऊद ने ‘चन्दायन’ प्रेम काव्य लिखकर पर्याप्त ख्याति अर्जित की थी पर जायसी के पद्मावत ने उस काल में धूम मचा दी। कहते हैं तुलसी दास ने चौपाई छंद जायसी से लिया है। पद्मावती और चित्तौड़ के राजा रत्नसेन की प्रेमकथा अवधी भाषा और वह भी चौपाई, दोहा छन्द में लिखकर जायसी आमजन के कवि बन गए। उनकी व उनके पद्मावत की ख्याति दिल्ली दरबार पहुंची और तब दिल्ली के तत्कालीन बादशाह शेरशाह सूरी ने जायसी की बुलाया पर यह मुलाकात मधुर नहीं रही पर बादशाह ने ‘पद्मावत’ की कई हस्त लिखित प्रतियां बनवाई और वह रानी पद्मावती और चित्तौड़ नरेश रत्नसेन की इस प्रेम गाथा से बहुत प्रभावित हुआ। हस्त लिपि प्रति और गांव गांव गा गा कर भीख मांगने वालों ने जायसी के पद्मावत को जन जन तक पहुंचा दिया।
जायसी से पहले सिंघलदीप की राजकुमारी पद्मावती और चित्तौड़ के महाराज चित्रसेन के पुत्र रत्नसेन की प्रेम कहानी और दुष्ट अलाऊद्दीन खिलजी के बीच में खलनायक के रूप में आने और सखियों समेत नागमती और पदमिनी का जौहर कर लेना गाथा के रूप में उत्तर-भारत के गांव-गांव मेें कहा-सुना और गाया जाता था। मलिक मुहम्मद जायसी ने इसी गाथा को प्रबन्ध काव्य के रूप में तत्कालीन अवधी भाषा में रचा औ अंत में वह लौकिक प्रेम को पारलौकिक प्रेम तक ले गए चूंकि जायसी सूफी मत से प्रभावित थे। इसलिए उसे खुदा के प्रेम से जोड़ दिया।
रानी पद्मिनी की प्रेमगाथा लिख अमर हो गए जायसी- उपलब्ध जानकारी के अनुसार मलिक मुहम्मद जायसी का जन्म आज के उत्तर प्रदेश के अमेठी और तब के रायबरेली जिले (अमेठी) के पास जायस कस्बे में सन् 1464 ई. में हुआ था। अब अमेठी खुद एक जिला है। कहते हैं उनके पुरखे अरब से आए थे और उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले के जायस कस्बे में बस गए थे और कृषि कार्य करने लगे थे। आज भी उनके परिवार के लोग अपने को जायसी का वंशज बताते हैं। जायस व तिलोई कस्बे के मध्य उनके खेत होने बताए जाते हैं। जायस कस्बे में उनका घर बताया जाता है। जायस के कंचना मोहल्ले में उनके खण्डहरनुमा घर को उन्हीं का बताया जाता है। पर खेद है कि अमेठी, रायबरेली या जायस कस्बे में उनका कोई भी ठीक से स्मारक नहीं मिलता। पद्मावत में जायसी ने लिखा है-
‘‘जायस नगर धरम अस्थानू। नगर का नावं आदि उद्यानू।।
तहां दिवस दस पहुंचे आयऊं। भा बैराग बहुत सुख पाएऊं।।’’
जायसी के गुरु कालपी और महोबा में रहते थे जहां अक्सर जायसी जाते रहते थे। बाकी पद्मावत की कथा तो सभी जानते हैं। अनेक उपन्यास लिखे गए हैं रानी पद्मिनी की सुंदरता पर। अनेक फिल्में बनाई जा चुकी हैं।
शिवचरण चौहान
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