अस्तित्व की तलाश में सिमरन, किन्नर का यथार्थ जीवन
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- डॉ. प्रेरणा गौड़
किन्नर की उत्पत्ति कैसे हुई ? यह जानना आवश्यक है।
शिव महापुराण की कथा के अनुसार ब्रह्मा जी को भगवान शिव ने सृष्टि की रचना करने एवं नर - नारी बनाने का आदेश देते हुए अपने अर्धनारीश्वर रूप का दर्शन करवाया । ब्रह्मा जी ने भ्रमवश संयुक्त रुप से रचना कर डाली । जब भगवान भूतेश्वर महादेव जी ब्रह्मा जी के सम्मुख आते हैं तब देखते हैं कि ब्रह्मा जी द्वारा नर - नारी रूप की अलग-अलग रचना ना कर संयुक्त रूप से कर दी गई है तब भगवान भूतभावन भूतेश्वर शिव जी द्वारा इस रचना का भी सम्मान किया जाता है। संसार में वह रचना किन्नर नाम से प्रचलित होती है।
मोनिका देवी |
सृष्टि रचना का पहला प्राणी किन्नर ही हैं । भगवान शिव के अर्धनारीश्वर रूप को किन्नर की संज्ञा देना गलत है। मिथ्या प्रचलन है। अर्धनारीश्वर रूप नपुंसकता को नहीं दर्शाता है । वह तो प्रकृति और पुरुष का स्वरूप है, भगवान शिव पुरुष और माता उमा प्रकृति का स्वरूप है। वे जगत के माता-पिता कहलाते हैं । किन्नर ईश्वर की रचना है उसका सम्मान करना हमारा दायित्व होना चाहिए। 'अस्तित्व की तलाश में सिमरन' मोनिका देवी कृत उपन्यास है जो किन्नर कथा पर आधारित है । यह कृति किन्नर जीवन के विभिन्न पहलुओं को अभिव्यक्त करती है। उपन्यास पात्र सिमरन किन्नर है। सिमरन कई समस्याओं, सफलताओं, असफलताओं से रूबरू होती नजर आती है। बाल्यावस्था से ही सिमरन कई समस्याओं से घिरी हुई नजर आती है। परिवार एवं समाज द्वारा उसे तिरस्कृत किया जाता है। जहां परिवार प्रेम की उसे आवश्यकता है उसके स्थान पर पारिवारिक सदस्यों द्वारा उसे प्रताड़ना दी जाती है । समाज द्वारा भी उसे अपनाया नहीं जाता है। शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार सभी को है। लेकिन सिमरन इसके लिए भी संघर्ष करती नजर आती है। घर परिवार द्वारा तिरस्कृत करने पर अकेले जीवन जीने के लिए मजबूर होती है। आवास के लिए भी उसे संघर्ष करना पड़ता है। लोगों की बुरी दृष्टि का भी उसे सामना करना पड़ता है। जब वह किन्नर समुदाय में शामिल होती है तब किन्नर गुरु द्वारा उसे भीख मांगने के लिए मजबूर किया जाता है जिसे वह स्वीकार नहीं करती है। मेरा मानना है कि किन्नर भी समाज का अंग है तब भला समाज द्वारा क्यों अलग-थलग कोने में उसे धकेल दिया जाता है? क्यों उसके साथ दुर्व्यवहार किया जाता है? समाज को अपनी दृष्टि में परिवर्तन लाना होगा यह परिवर्तन तभी संभव है जब शिक्षक समुदाय द्वारा जागृति लाई जाए। शिक्षा ही परिवर्तन लाने का महत्वपूर्ण उपाय है। जब तक हम भेदभाव की दृष्टि को तिलांजलि नहीं दे देते तब तक सकारात्मक परिणाम आना असंभव है। मेरा मानना है कि ईश्वर की सृष्टि में कोई भी प्राणी हो चाहे जीव जंतु हो, चाहे स्त्री हो, चाहे पुरुष हो सब अपना अपना अहम रोल निभाते हैं एक दूसरे के बिना सब अधूरे हैं सब एक दूसरे से जुड़े हुए हैं तब किन्नर को भी समाज, राष्ट्र एवं विश्व के लिए महत्वपूर्ण क्यों नहीं माना जाता है? मेरा मानना है कि वे भी अपने कृत्यों द्वारा समाज हित, राष्ट्रहित एवं विश्व हित में सहभागिता निभा सकते हैं। उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करना, उन्हें सहयोग देना, उनका सहयोग लेना इस तरह की विचारधारा यदि हम अपनाते हैं तो वे भी आगे बढ़ेंगे और अपने को समाज का हिस्सा समझने लगेंगे । यह परिवर्तन समाज, राष्ट्र एवं विश्व के लिए हितकर होगा। मोनिका देवी ने अपने लेखन के माध्यम से किन्नर समस्या को उल्लेखित कर समाज को नजरिए में परिवर्तन लाने एवं किन्नर को अपनाने के लिए प्रेरित किया है। लेखिका की यह कृति पठनीय है समाज के लिए महत्वपूर्ण संदेश प्रेषित करती है। यह कृति पाठक को आदि से अंत तक भावुकता एवं गंभीरता से जोड़े रखती है। यह कृति सराहनीय है। अधिक से अधिक शोध लेखन में यह कृति महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करने योग्य है। यह न केवल सिमरन की कहानी है बल्कि प्रत्येक किन्नर की कहानी है जिन्हें कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है परिवार एवं समाज द्वारा तिरस्कृत होना पड़ता है। अंत में मैं यही कहना चाहूंगी कि परिवर्तन की आवश्यकता है किन्नर भी समाज का ही अंग है उसे भेदभाव की दृष्टि से ना देख कर उसे आगे बढ़ाने के लिए हमें कार्य करने की आवश्यकता है।
समीक्षक
व्यक्ति वृत
नाम : डॉ . प्रेरणा गौड़
उपनाम : श्री
पिता : ओम प्रकाश गौड़
माता : रमा गौड
जन्म : 15.01.1990
निवास स्थान : पृथ्वीपुरा रसाला रोड़ , पावटा जोधपुर ( राज . )
शैक्षणिक विवरण
• बी . ए . द्वितीय श्रेणी में उत्तीर्ण , जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय , जोधपुर ।
• एम . ए . प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण , जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय , जोधपुर ।
• विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा आयोजित नेट जे.आर.एफ. परीक्षा उत्तीर्ण ।
• राजस्थान लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित सैट परीक्षा उत्तीर्ण ।
• पी.एच.डी. की उपाधि प्राप्त , जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय , जोधपुर ।
साहित्यिक गतिविधियाँ
• अनेक राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में पत्रवाचन ।
• अनेक राष्ट्रीय एंव अन्तर्राष्ट्रीय पत्रिकाओं में शोध आलेखों का प्रकाशन
• समाचार पत्रों में प्रकाशित समीक्षात्मक लेख राजभाषा भारती अंक 155 ( विशेषांक ) में छपे लेख हेतु मानदेय स्वरूप 5000 / -रू . की राशि प्राप्त ।
• विदेश मंत्रालय , भारत सरकार द्वारा 10 वें विश्व हिन्दी सम्मेलन ' स्मारिका ' से प्रकाशित लेख हेतु मानदेय स्वरूप 2700 / - रू . राशि प्राप्त।
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