टूल- किट की किट- किट - बी. एल. आच्छा

Dr. Mulla Adam Ali
0
hindi vyangya aalekh

टूल- किट की किट- किट
             
                         बी. एल. आच्छा
       
        स्कूटर की डिक्की में कब से शांत पड़ा था यह टूल-किट।पर लोहा शब्दों में बजने लगेगा, यह तो अंदेशा ही नहीं था। यो हर वर्कशॉप के अपने-अपने टूल -किट। मशीनी दुनिया में टूलकिटों की अपनी माया। मगर राजनीति की फिरकी में' टूल- किट' 'कूट -किट' बनकर घनघनाट हो जाएगा और अंत में 'कूट- किल' का अदृश्य औजार, यह तो सोचा ही नहीं था। टूल- किट के पानों -पंजों से अभी तो स्कूटर या मशीन की ढ़ीली ढ़ेबरियों के कान ही मसका पाते थे।अब तो बिनछुए ही पक्ष- विपक्ष के कान मसकाने का हथियार बन गया है।

          राजनीति अब झंडा- बैनरों का हुनर नहीं रह गई है ।वह जमाना था, जब फिल्मों में दुश्मन सेनापति तलवार चलाने के पहले डायलॉगबाजी से सिनेमाबाजों को तैश में ला देते थे ।मगर अब आमने-सामने तक नहीं ‌आते। चुनाव अमेरिका में और टूल- किट का अंदेशा रूस में ‌।टूल- किट का दिमागी गणित पहले भी था ।असर भी देखा था। मगर टूल -किट नामकरण नहीं हो पाया। असल में एक ही दल के दो नेताओं की कटा- कटी और टिकट की बदा-बदी में एक ने तीन हजार कार्ड बांटकर चुनावों से बहुत पहले सामूहिक भोज दिया। विरोधी ने दिमागी टूलकिट से वैसे ही तीन हज़ार कार्ड छपवाए और गांवों चुपचाप बंटवा दिए ।भनक भी नहीं लगी। खाना तीन हजार का ,पहुंचे छह हजार।ऐसे खाने को कोई छोड़ता है? आटा घटता रहा, कतार बढ़ती रही। एक सकते में, दूजा मस्ते में। भूख से भद्द हुई ब्याज में।  
         ज्योतिषी से सुन रहा हूं कि 
शनि तीसरे- सातवें घर को देख रहा है। मंगल की दृष्टि राहु पर है,आठवें घर में। गुरु वक्री हो गया है ।कहीं नीच भंग योग बन गया है। तो मुझे लगता है कि राजनीति के टूल -किट भी यहां बैठे वहां मार करते हैं। ज्योतिष में ग्रहों की तीसरे-सातवें की दृष्टि की तरह।ये अदृश्य मिसाइलें चुपचाप अटैक करती रहें‌‌।एक दूजे की नेगेटिविटी को समाचारों में तानकर‌।
          इन दिनों चैनल और एंकर टूल- किटों में घनघना रहे हैं। चुनाव आ जाएं तो रणभेरियों के बीच कूट- दृश्यों और वाचाल जबानों का भूचाल।अंडर-टाइड हाई-टाइड। समंदर के बजाय चैनलों की थपेड़ा- जबानों के घनघोर शोर में एंकर टीआरपी- मंगल के लिए जबानों का दंगल रचाते हैं। लाल -लाल कपड़ा दिखा कर। शब्दों के सींगों को मुठभेड़िया बनाने के लिए। इसमें तबलों की थाप की जरूरत नहीं‌। प्रवक्ताओं की आवाजों के उतापे और एक- दूजे को काटती- पीटती जबानें लोकतंत्र का युद्ध- राग बन जाती हैं। कटा- कटी की दुदुंभियां। राग जरा भी ढीला पड़ने लगे तो एंकर नये केमिकल का घी डालकर स्वाहा करता जाता है।

            यों भी राजनीति अब सोच- विचारों की जमीन नहीं रही‌।टूल- किटों की मारामारी है। अब चौक- चौबारों या झंडियों- पन्नियों का खेल नहीं। राजनीति अब कंप्यूटर- भूमियों की वास्तुकला है। एक- दूसरे के हर काले- कलूटे को इकट्ठा करो। हर उजले का अंधेरा तलाशो। हर आंकड़े को बे-आंकड़ा कर दो। देशी कमजोरियों को विदेश घुमा लाओ। जलती हुई बत्तियों का पॉजिटिव तार खींच लो ‌अंधेरा खुद बोलने लगेगा।
©®  बी. एल. आच्छा

 बी. एल. आच्छा
फ्लैटनं-701टॉवर-27
स्टीफेंशन रोड(बिन्नी मिल्स)
पेरंबूर
चेन्नई (तमिलनाडु)
पिन-600012
मो-9425083335

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें (0)

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !
To Top