विमर्श के ट्रेंड को तोड़ती कहानी : लॉकडाउन में गौरीशंकर (समीक्षा)

Dr. Mulla Adam Ali
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विमर्श के ट्रेंड को तोड़ती कहानी : लॉकडाउन में गौरीशंकर
डॉ. प्रेरणा ‘श्री’ गौड़
विमर्श के ट्रेंड को तोड़ती कहानी
‘लॉकडाउन में गौरीशंकर’
कहानी के लेखक
संजीव  'मजदूर' झा




पिछले दो दशकों से हिंदी कहानी विमर्श के ट्रेंड का शिकार रही है. जातिगत आधार पर शोषण के स्वरुप को ही जैसे अंतिम सत्य मान लिया गया है. वर्तमान स्थिति यह है कि अब इसका अतिवादी रूप भी देखने को मिल रहा है, जहाँ प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप में यह स्वीकार कर लिया गया है कि शोषण का संबंध सिर्फ़ जातिगत समस्याओं से ही जुड़ा हुआ है. इस प्रकार की मान्यताएं पूंजीवादी शोषण को सिर्फ़ ख़ारिज ही नहीं करती बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों तक इसकी पहुँच से भी इनकार करती है.
संजीव कुमार की कहानी ‘लॉकडाउन में गौरीशंकर’ इस विमर्शवादी ट्रेंड और मान्यताओं को ख़ारिज करती है. ऊँची जाति के लोगों में आर्थिक विपन्नता का संबंध इस कहानी में दो तरफ़ा है. कहानी का पात्र शिवजी आखिर अपने पिता के इलाज के विरुद्ध क्यों खड़ा है? जिस महामारी के कारण उसे गाँव लौटना पड़ता है उस महामारी में वे कंपनियां शिवजी जैसे श्रमिकों से अचानक कैसे संबंध तोड़ लेता है?

ध्यान से देखें तो शिवजी का अपने पिता के विरुद्ध खड़ा होना उसकी वास्तविक संस्कृति नहीं बल्कि पूंजीवादी संस्कृति की देन है. एक तरफ़ जब हम यह स्वीकार करते है कि आज का युग पूंजीवादी युग है तब हम भला इस बात से कैसे इनकार कर सकते हैं कि मात्र ऊँची जाति का होने के कारण पूंजीवादी शोषण से बचा जा सकता है. स्पष्ट है कि न तो सामंती व्यवस्था में ऐसा संभव था और न पूंजीवादी व्यवस्था में ऐसा संभव है.
दूसरी तरफ़ देखें तो जाति आधारित विमर्श में पुरोहितवाद के सरलीकरण के कारण हम यह भूल गए हैं कि रुढ़िवादी व्यवस्था के कारण हो रहे शोषण का संबंध किसी एक जाति या संप्रदाय तक ही सीमित नहीं होता है. गौरीशंकर का परिवार ब्राह्मण परिवार है लेकिन कर्म काण्ड की व्यवस्था का खामियाजा उसे भी भुगतना पड़ता है.

माता, पिता और पुत्र के बीच के संबंध को जिस खुले यथार्थ के साथ कहानी में पेश किया गया है वह पाठक को बेचैन कर देता है. मृत शय्या पर लेटे पिता के इलाज के बदले बेटी की शादी का प्रयोजन पाठक को न तो शिवजी के पक्ष में जाने देता है और न विरोध में. कहानी के लगभग अंतिम भाग तक जो शिवजी खलनायक सा दिखता है अचानक आखिरी पड़ाव में उससे सहानुभूति होने लगती है.

कहानीकार ने व्यवस्था के ऐसे जकड़न को प्रस्तुत किया है जहाँ खोखले विमर्श की नींव हिल जाती है. कहते हैं ट्रेंड से अलग सोचना साहस का कार्य होता है. आज जब तुलसीदास को सिर्फ इस आधार पर ख़ारिज करने का ट्रेंड चला हुआ है कि वे एक ब्राह्मण थे, ऐसे में गौरीशंकर द्वारा मानस का पाठ करते दिखाना जहाँ एक तरफ़ ग्रामीण क्षेत्रों का यथार्थ चित्रण है वहीं दूसरी ओर तुलसी विरोधी कुसंस्कृति में साहस का भी कार्य है.
भाषा के आधार पर देखा जाए तो कहानीकार ने मैथिली भाषा में मानस का रोचक प्रसंग प्रस्तुत किया है. इसके साथ ही व्यवस्था पर तीखा प्रहार भी देखने को मिलता है. नवल जब इलाज के लिए सरकारी अस्पताल का जिक्र करता है तब अखिलेश का खिंझते हुए यह कहना कि ‘दूसरे लोक से आने जैसी बात क्यों कर रहे हो’, पब्लिक सेक्टर की पोल खोल देता है. यहाँ ‘पब्लिक सेक्टर’ और ‘प्राइवेट सेक्टर’ पर विचार करने की प्रेरणा तो है ही साथ ही सरकारी तंत्र को कमजोर रखने की रणनीति की ओर भी इशारा किया गया है.

निष्कर्ष रूप में कहा जाए तो इस कहानी में जहाँ संवेदना अपने चरम पर है वहीं दूसरी ओर आर्थिक दुर्व्यवस्था का कारुणिक चित्रण भी देखने को मिलता है. सामाजिक विषमता के विरुद्ध, शोषण को जातिगत अवधारणा तक सीमित सोच के समक्ष यह कहानी विचार के आधार पर चुनौती पेश करती है. 
©® डॉ. प्रेरणा ‘श्री’ गौड़ 
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डॉ. प्रेरणा ‘श्री’ गौड़
पृथ्वीपुरा रसाला रोड़, जतनी कुंज ,
पावटा, जोधपुर पिन 342006 राजस्थान

व्यक्ति वृत

नाम : डॉ . प्रेरणा गौड़
उपनाम : श्री
पिता : ओम प्रकाश गौड़
माता : रमा गौड
जन्म : 15.01.1990
निवास स्थान : पृथ्वीपुरा रसाला रोड़, पावटा जोधपुर
(राज.)

शैक्षणिक विवरण

• बी. ए. द्वितीय श्रेणी में उत्तीर्ण, जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय, जोधपुर।
• एम. ए. प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण, जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय, जोधपुर।
• विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा आयोजित नेट जे.आर.एफ. परीक्षा उत्तीर्ण।
• राजस्थान लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित सैट परीक्षा उत्तीर्ण।
• पी.एच.डी. की उपाधि प्राप्त, जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय, जोधपुर।

साहित्यिक गतिविधियाँ

• अनेक राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में पत्रवाचन।
• अनेक राष्ट्रीय एंव अन्तर्राष्ट्रीय पत्रिकाओं में शोध आलेखों का प्रकाशन
• समाचार पत्रों में प्रकाशित समीक्षात्मक लेख राजभाषा भारती अंक 155 ( विशेषांक ) में छपे लेख हेतु मानदेय स्वरूप 5000/ -रू. की राशि प्राप्त।
• विदेश मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा 10 वें विश्व हिन्दी सम्मेलन 'स्मारिका' से प्रकाशित लेख हेतु मानदेय स्वरूप 2700/ - रू. राशि प्राप्त।

सम्मान व पुरस्कार

अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन 2019 आयोजक विश्व हिन्दी परिषद , नई दिल्ली नगर पालिका एंव राजभाषा विभाग गृह मंत्रालय द्वारा सम्मान प्राप्त साहित्यिक सांस्कृतिक शोध संस्था, मुंबई द्वारा हिन्दी सेतु सम्मान प्राप्त ।

अक्षरवार्ता अंतरराष्ट्रीय शोध पत्रिका एवं कृष्ण बसंती शैक्षणिक एवं सामाजिक जन कल्याण समिति, उज्जैन मध्य प्रदेश, भारत द्वारा स्वतंत्र लेखन के क्षेत्र में 2021 का राष्ट्रीय अवार्ड प्राप्त 

i2or द्वारा 2021 का एजुकेटर अवार्ड प्राप्त

हिंदू वेलफेयर फाउंडेशन पानीपत हरियाणा द्वारा साहित्य श्री सम्मान प्राप्त 2021


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