उपन्यास...
सिक्कों में ढलते लोग
मूल्य.. 200 रु.
प्रकाशक..
पराग बुक्स,
ए.15 जी एफ 2,श्याम एक्सटेंशन
साहिबाबाद गाजियाबाद
मो. 9911979368
सिक्कों में ढलते लोग
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पावन प्रसाद
नेमपाल प्रजापति का नया प्रकाशित उपन्यास "सिक्कों में ढलते लोग" सामाजिक विसंगतियों के साथ साथ साहित्यिक और प्रकाशन के क्षेत्र में व्याप्त लाभप्रद प्रवृत्ति और "अहम् अस्मि" भाव के पक्षधर व स्वार्थी चरित्र वाले लोगों की जड़ो को कुरेदता अनछुए प्रसंगों सेपाठको को परिचित कराता है। उपन्यास का नायक चवन्नीलाल चौरसिया इन सबसे टकराता हुआऔर स्वयं को इन सबसे बचाते हुए इन्हीं लोगों के बीच विद्यमान है।
विभिन्न अध्यायों में विभक्त इस उपन्यास में फैले कथासूत्र एक विराट फलक का निर्माण करते हैं जो एक बड़े औपन्यासिक विस्तार की अपेक्षा रखते हैं लेकिन इस विराटता को नेमपाल प्रजापति अपने कौशल से प्रस्तुत कलेवर में समेटने में पर्याप्त सफल रहे हैं। सामाजिक भेदभाव, रागात्मक सम्बंध, साहित्यिक राजनीति व प्रकाशन सम्बंधी जटिलताओं और लेखकों,कवियों के छपास रोग के मिलान से बुना गया ताना.. बाना "सिक्कों मेंढलते लोग" गजब की पठनीयता की मिसाल पेश करता है। जहाँ विभिन्न विरोधाभासों से टकराते हुए चवन्नी लाल चौरसिया कासृजनधर्मिता की ओर उन्मुख रहना उपन्यास औदात्यपूर्ण उपसंहार प्रस्तुत करता है वहीं धनपशु प्रवृत्ति के मौसमीलाल अग्रवाल एडवोकेट को आखिरकार उसके सही अंजाम तक ले जाना लेखक की सूझबूझ का परिचय देता है।
चौरसिया के बहाने हिन्दी साहित्य की गन्दगी की बखिया उधेड़ने वाले इस उपन्यास में कविताएँ भी हैं और काव्यात्मक भाषा भी।परन्तु यह काव्यात्मक भाषा कल्पना की उड़ान की बजाय यथार्थ के थपेड़े खाकर लिखी गयी है।
पात्रों की अधिकता के बावजूद उनके चारित्रिक विश्लेषण, सवर्ण अवर्ण और अमीर गरीब के बीच की खाई का चित्रण और व्यंग्य के पुट ने उपन्यास को गजब की रोचकता प्रदान की है।
सहज सरल सरस भाषा और स्पष्टवादिता ने जहाँ उपन्यास को रुचिकर बना दिया वहीं लेखक बताने में सफल रहा है कि लोग स्वार्थ की खातिर कैसे सिक्कों में ढल जाते हैं।
लेखक बधाई और प्रशंसा का पात्र है।
उपन्यास समीक्षा
©® पावन प्रसाद
पावन प्रसाद मुजफ्फरनगर 8126251342 |
उपन्यास : सिक्कों में ढलते लोग
परिचय :
जन्म : 5 मार्च, 1958 भोकरहेड़ी ( मुजफ्फरनगर )
शिक्षा : राजनीतिशास्त्र में स्नातकोत्तर। प्रकाशन : काव्य - कृतियाँ : आदमी का व्याकरण (1993 ई.), बेताल बोलता है (2001 ई.), खुली आँखों के सपने (2006 ई.)। उपन्यास : बिसात ( 2017 ई .)।
सम्पादन : अपनी धरती अपने बोल , विश्वास परिन्दे का (स्व. चमचा का काव्य - समग्र), बेटी की विदाई (कवि भोंपू का काव्य - समग्र), आधारशिला (गद्य - पद्य संयुक्त संग्रह), तारतम्य, धरातल, हरपाल सिंह'अरुष' का साहित्यिक अवदान, प्रतिबोध, दोआब महोत्सव, लक्ष्यभेद आदि अनेक अनियतकालीन महत्त्वपूर्ण पत्रिकाएँ।
सम्मान : उ.प्र. हिंदी संस्थान, लखनऊ द्वारा 2005 में बेताल बोलता है 'काव्य - संग्रह पर सर्जना पुरस्कार, अखिल भारतीय साहित्य कला मंच द्वारा दुष्यन्त कुमार स्मृति सम्मान और साहित्यिक संस्था समन्वय', सहारनपुर द्वारा 2003 में सृजन सम्मान।
अन्य : आकाशवाणी, दूरदर्शन से कविताओं का प्रसारण। सम्प्रति : पूर्णकालिक लेखन।
सम्पर्क : 186, श्री हरिवृन्दावन सिटी, जानसठरोड, सहावली, मुजफ्फरनगर -251001 (उ.प्र.)
मो . : 09412888399
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