मेरी अपनी कविताएं : नीरू सिंह

Dr. Mulla Adam Ali
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आत्महत्या


मैं आत्महत्या करना चाहती हूँ!
हाँ!ठीक सुना मैं आत्महत्या करना चाहती हूँ!
इस घुटन से दूर होना चाहती हूँ
इस बंधन से मुक्त होना चाहती हूँ मैंआत्महत्या करना चाहती हूँ!
अपनी साँसों पर अपना अधिकार चाहती हूँ
अपनी आँखों में अपनी मर्जी के सपने चाहती हूँ
 हाँ!मैं आत्महत्या करना चाहती हूँ

जीवित हूँ यह महसूस करना चाहती हूँ!
नजरें उठा दुनिया देखना चाहती हूँ!
हाँ!मैं आत्महत्या करना चाहती हूँ

 खुद को सुनना चाहती हूँ!
 मैं भी जीना चाहती हूँ!
 हाँ! मैं आत्महत्या करना चाहती हूँ

 तुझे आत्महत्या की जरूरत नहीं,
 तेरे आत्मा की हत्या कब की हो चुकी है!
इसका पाप ना ले तू अपने सर पर,
औरों ने ये काम बखुबी किया है!
नीरू सिंह

मैं खुश हूँ


 ख़ुश हूँ बेवकूफ़ बनकर भी 
तुम समझदार बनकर भी नहीं,
मैं खुश हूँ सब लुटा कर भी 
तुम सब लूट कर भी नहीं,
मैं खुश हूँ पागल बनकर भी 
तुम पागल बनाकर भी नहीं,
मैं ख़ुश हूँ औरों के लिए भी 
तुम अपनो के लिए भी नहीं,
मैं ख़ुश हूँ अपने आँसुओं में भी 
तुम अपनी हँसी में भी नहीं,
मैं ख़ुश हूँ खुद को खो कर भी 
और तुम खुद को पाकर भी नहीं!
नीरू सिंह

सुनो ना...


आज कल तुम्हारी बातों में
वो पहले जैसा प्यार क्यों नहीं महसूस होता..
क्या अब जिम्मेदारी बन गईं हूँ तुम्हारी!
सुनो ना....
वो रूठना - मनाना कहाँ गया हमारे बीच का
क्या अब सिर्फ हिस्सा बन गईं हूँ ज़िंदगी का!
सुनो ना...
बात- बात में लव यू कहना क्यों बंद हो गया अब
क्या पूरा हो गया प्यार इस जन्म का!
सुनो ना....
कहीं भूल तो नहीं गए हो हमें
चलो दुबारा उसी राह पर
जहाँ इंतजार था तुम्हें मेरी हाँ का,
अंजाम अगर हाँ का ये है...
तो कसम तुम्हारी इंतजार मंजूर हैं सारी उम्र का..
नीरू सिंह
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