अब पोस्टमैन नहीं डिलीवरी ब्वॉय आपकी डाक लाएगा
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कबूतर से लेकर पोस्टमैन तक चिट्ठियों का सफरनामा
प्रत्येक वर्ष 9 अक्टूबर को विश्व डाक दिवस मनाया जाता है। इसके साथ ही डाक पखवारे का भी आयोजन किया जाता है। एक समय था यह दुनिया की सारी संचार व्यवस्था डाक विभाग पर ही निर्भर थी। तब डाक तार टेलीफोन एक ही विभाग थे। चिट्टियां पहुंचाने के लिए पहले कबूतर फिर हरकारे चिट्ठी रसा और बाद में डाकिए पोस्टमैन आए। अपनी चिट्ठी पाने के लिए प्रेमिकायें बेसब्री से डाकिए का इंतजार करती थीं। मच्छीका स्थाने मच्छीका और उस डाकिए की आत्मकथा तो बहुत लोगों को मालूम होगी जो चिट्ठी देते देते एक लड़की से प्यार कर बैठा और शादी कर ली। चिट्ठी लिखने वाला आशिक चिट्ठी का इंतजार ही करता रह गया और उसकी प्रेमिका ,डाकिए की हो गई। बहुत लोग विदेशों से गांधी जी को पत्र लिखते थे और सिर्फ भारत पते की स्थान पर लिख देते थे और वह पत्र डाक विभाग गांधी जी तक पहुंचा देता था। भारतीय डाक विभाग का बहुत शानदार इतिहास रहा है। आज भी या दुनिया का सबसे बड़ा डाक संचार का साधन है।
आज डाक विभाग इंडिया पोस्ट हो गया है और बचत बैंक पेमेंट बैंक। आज इंडिया पोस्ट 15000 करोड़ के घाटे में है और बन्दी की कगार पर खड़ा है तार विभाग की तरह। डाकिए की जगह कोरियर कम्पनी के डिलीवरी ब्वाय अाने लगे हैं। गूगल, ईमेल इंटरनेट इंस्टाग्राम फेसबुक और व्हाट्सएप के कारण डाक आज भले ही ब्लू डार्ट जैसी तमाम कोरियर कंपनियां आ गई हो पर बहुत सस्ते में चिट्ठी पहुंचाना डाक विभाग अभी भी नहीं भूला है।
लाल डिब्बे की आत्मकथा यानी आज लेटर बॉक्स उपेक्षित हो गए हैं। यह लाल डिब्बा कहीं भी आपको सड़क किनारे रेलवे स्टेशन पर टूटा फूटा दिखाई पड़ सकता है। कभी इसके पास जाइए और इसकी दर्द भरीआत्मकथा तो सुनिए। अब यह यह तो अतीत बनने वाला है इतिहास बनने वाला है।
शिवचरण चौहान
कानपुर 209 121
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