किशन सरोज समग्र - मैं तुम्हें गाता रहूँगा : डॉ. प्रदीप जैन
प्रेम का आवेग, प्रेम की तीव्रता जब अपने चरम पर पहुँचती है तब प्रेमी की मनस्थिति यह हो जाती है कि वह इस सृष्टि के कण-कण को प्रियमय समझने लगता है, समस्त दृश्यमान जगत् में अपने प्रिय का ही दर्शन करता है और अपने निजी अस्तित्व को पूर्णरूपेण विस्मृत करके समस्त चराचर में प्रिय की उपस्थिति को लक्ष्य करता है। वह इस विकट दशा को प्राप्त हो जाता है कि उसे न दिशा का कोई ज्ञान रहता, न दिन-रात का। रात-रात भर जागना उसकी नियति हो जाती है, यही नहीं उसे तो पता भी नहीं होता कि वह रात-रात भर जाग रहा है क्योंकि उसके लिये रात-दिन का भेद ही समाप्त हो जाता है। ऐसी दशा को प्राप्त हो जाने पर प्रकृति के समस्त उपादान प्रेमी के लिये प्रिय से संवाद स्थापित करने के माध्यम बन जाते हैं।
जब प्रेमी आत्यन्तिक प्रेम की इस चरम अवस्था को पा लेता है तब उसे इस बात से कुछ अर्थ नहीं रह जाता कि प्रिय भौतिक रूप से समक्ष उपस्थित है अथवा नहीं, वह किसी रात में निरन्तर जागता हुआ ध्रुवतारे में अपने प्रिय का साक्षात् करता है, उस से रात भर तन-मन की बातें करता रहता है, उसे लेशमात्र भी भान नहीं होता कि कब रात गई कब भोर हुई, बस वह तो अपने प्रिय से बतिया रहा है, कभी हँस रहा है तो कभी रो रहा है, प्रिय की भी यही दशा है वह अपना सिर प्रेमी के काँधों पर टिकाए बैठी है नेत्रों से बहती अश्रु धाराएँ प्रेमी के काँधे के साथ-साथ उसके अन्तर्मन को भी द्रवित कर रही हैं सम्पूर्ण दृश्य ऐसा मानो कल्पना-लोक साकार-सजीव ही हो उठा हो। और इस दशा में जब किशन सरोज जैसा प्रेमी हो तो वह अपनी प्रिया के देव-दुर्लभ संवाद को गीत के रूप में ढाल कर गुनगुना उठता है--
मैं तुम्हारी बाँसुरी हूँ
अब भली हूँ या बुरी हूँ
मैं तुम्हारी बाँसुरी हूँ
अधर से छू दो अधर, मैं वेणु-वन में झूम गाऊँ
दीप लौ सी जल बुझूँ नीली तरंगें चूम आऊँ
एक पल वृन्दावन: मन
एक पल अलकापुरी हूँ
मैं तुम्हारी बाँसुरी हूँ
होठ की मुस्कान आँखों की नमी की बात क्या है
देवता तक हों भ्रमित फिर आदमी की बात क्या है
अधखुली सी आँजुरी हूँ,
फूल हूँ मीठी छुरी हूँ
मैं तुम्हारी बाँसुरी हूँ
दूर ले जाएँ हवाएँ घन सघन बरसें न बरसें
और काँधों पर तुम्हारे अश्रु कण बरसें न बरसें
अग्नि-जल की वंशजा,
दिशि-दिशि भटकती बीजुरी हूँ
मैं तुम्हारी बाँसुरी हूँ
©® प्रदीप जैन
Dr. Pradeep Jain || सोजे वतन : जब्ती की सच्चाई || लोकार्पण समारोह || डॉ. प्रदीप जैन
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