‘मैं हिन्दू हूँ’ – असग़र वजाहत
असग़र वज़ाहत की और एक महत्त्वपूर्ण कहानी “मैं हिन्दू हूँ..” दंगों के पीछे छिपे दर्शन, रणनीति, कार्य पद्धति और गति में आये परिवर्तन को लक्षित करती है- “आज से पच्चीस-तीस साल पहले न तो लोगों जिंदा जलाया जाता था, और न पूरी बस्तियाँ वीरान की जाती थीं। उस जमाने में प्रधानमंत्रियों, गृहमंत्रियों का आशीर्वाद भी दंगाइयों को नहीं मिलता था। यह काम छोटे-मोटे स्थानीय नेता अपना स्थानीय और क्षुद्र किस्म का यथार्थ पूरा करने के लिए करते थे। व्यापारिक प्रतिद्वंद्विता, जमीन पर कब्जा करना, चुंगी के चुनाव में हिन्दू या मुस्लिम वोट समेट लेना वगैरह उद्देश्य हुआ करते थे। अब तो दिल्ली दरबार पर कब्जा जमाने का साधन बन गए हैं सांप्रदायिक दंगे। संसार के विशालतम लोकतंत्र की नाक में वही नकेल डाल सकते हैं।“
सैफू जैसा अधपागल के मन में सांप्रदायिक चीजें किसी प्रकार घर बना लेती हैं और वे उन्हीं के डर से कैसे विक्षिप्त हो जाते हैं। एक प्रकार के मानसिक डिप्रेशन में आकर जिस चीज़ से डर लगता है, उसे नकारते है या जिस चीज़ के होने से उन्हें सुरक्षा मिलती है, वे उसकी माँग करते हैं।
कहानी के सैफू को मुसलमान आवारा लड़के अक्सर हिन्दुओं के संबंध में कुछ न कुछ कहते रहते है। “देखो सैफू, अगर तुम्हें हिन्दू पा जाएंगे तो जानते हो क्या करेंगे? पहले नंगा कर देंगे उसके बाद तुम्हारे तेल मलेंगे... ताकि जब तुम्हें बेंत से मारें तो तुम्हारी खाल निकल जाए।“ पागल सैफू जिन बातों से डरता है, जिससे बुरा मानता है, उन्हीं बातों कहकर उनके मन में डर पैदा किया। वह अधपागल होने के बावजूद नंगे होने को बहुत बुरी और खराब चीज़ समझता है।“ इसीलिए वह रात को नींद में भी डरता है तो दिन में भी और अपने भाई से एक दिन पूछता है, “बड़े भाई, मैं हिन्दू हो जाऊं? बड़े भाई उसे बहुत समझाते हैं कि हिन्दू अच्छे होते है। महेश का उदाहरण भी उसे देते है। हिन्दू-मुसलमान लड़ते नहीं “ये सब गुंडे-बदमाशों के काम है। न हिन्दू लड़ते हैं और न मुसलमान... गुंडे लड़ते है, समझो...?” किंतु सैफू के मन में जो डर घर कर जाता है वह निकलता नहीं और कर्फ़्यू उठ जाने के बाद पी.ए.सी. वाले जब उसे पकड़कर मारने लगते है तब उसका भाई सामने आता है, समझता है। वह बेतहाशा चिल्लाते हुए कहता है- “तुम लोगों ने मारा... मैं हिन्दू हूँ... तुमने मुझे मारा कैसे... मैं हिन्दू..।“
जिस बात का ख़ौफ सैफू जैसों के मन में बैठ जाता है, वे उससे डरते है। हिन्दू होंगे तो बच जाएंगे, या मुसलमान होंगे तो बच जाएंगे। ऐसा नहीं है क्योंकि समकालीन राजनीति ने व्यक्ति को व्यक्ति के रूप में न रखकर उसे सिर्फ ‘वोटर’ बना दिया है। हिन्दू वोटर, मुसलमान वोटर, हरिजन वोटर, कायस्था वोटर, सभी वोटर, शिक्षा वोटर यही सब होता रहेगा इस देश में।“ मीडिया विश्लेषक भी उनकी संख्या गिनकर अमुक जाति-धर्म का नेता कैसे प्रभावी हो सकता है, कैसे जीत सकता है- यही बताते है तो पार्टी भी जिस जाति, जमाती धर्म की संख्या तहसील, जिला, गली-मोहल्ला में अधिक है और उनके वोट मिल सकते हैं यह जानकर ही उसी जाति, जमती, धर्म के व्यक्ति को उम्मीदवार के रूप में चुनाव में खड़ा करती है। चुनाव के तौर-तरीके महज़ इनसानियत के नहीं होते। वे पूरी तरह समाज में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण फैलाते हैं।
संदर्भ;
असग़र वज़ाहत- मैं हिन्दू हूँ- मूल पृष्ठ से
वही- पृ-35
असग़र वज़ाहत- मैं हिन्दू हूँ- पृ-38
वही- पृ-38
वही- पृ-40
वही- पृ-41
वही- पृ-40
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