जन-जन का कवि नज़ीर अकबराबादी - शिवचरण चौहान

Dr. Mulla Adam Ali
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जन जन का कवि नज़र अकबराबादी

शिवचरण चौहान

 नज़ीर अकबराबादी (Nazeer Akbarabadi) का जन्म दिल्ली में हुआ था, उनका बचपन का नाम वली मोहम्मद (Wali Mohammed) था।
नज़ीर अकबराबादी को नज्म का जन्मदाता कहा जाता है। मिर्जा गालिब के उस्ताद थे नजीर अकबराबादी।

यारों सुनो वो दधि के लुटैया का बालपन।
और मधुपुरी नगर के बसैया का बालपन।।
मोहन सरूप निरत करैया का बालपन।।
बन बन में ग्वाल, गाय चरैया का बालपन।।
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।।
 क्या क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन।

मोहन मदन गोपाल, हरि बंस मन हरना।
बलिहारी उनके नाम पे मेरा ये तन बदना।।
गिरि धारी नंद लाल,हरि नाथ गो बरधना।
लाखो किए बनाय,हजारों किए जतन
ऐसा था बांसुरी बजैया मोहना।।
क्या क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन।।

  कृष्ण कन्हैया, बलदाऊ, शिव शंकर, आदि हिंदू देवी देवताओं पर सरल सहज भाषा में नज्में और गजलें लिखने वाले नजीर अकबराबादी आज तक लोगों की जुबान में चढ़े हुए हैं। आगरा मथुरा वृंदावन में कृष्ण पर लिखी हुई उनकी गजलें नज्में सुनी सुनाई और गाई जाती हैं। उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान ने नजीर बनारसी पर नजीर ग्रंथावली निकाली है। इसे शोध करने वालों को बहुत मदद मिलती है।

     नज़ीर अकबराबादी का जन्म आगरा या दिल्ली में हुआ इसको लेकर मतभेद हैं। कुछ लोग कहते हैं की नजीर अकबराबादी का जन्म उनतीस जनवरी 1735 में दिल्ली में हुआ था। नज़ीर अकबराबादी का बचपन का नाम वली मोहम्मद था। नजीर अकबराबादी के वालिद के 12 संतानें हुई थी किंतु सभी मर गई। जनवरी 1735 में जब नजीर अकबराबादी का जन्म हुआ तो गाली देने इनके नाक कान छिद वाए थे। फकीरों और मजारों से मन्नते मांगी थी । नजीर अकबराबादी के जन्म के बाद सन 1739 में ईरान के बादशाह नादिरशाह ने भारत पर हमला किया था और लाखों लोगों की हत्या करके दिल्ली को लूट कर ले गया था बड़ा जालिम लुटेरा का नादिर शाह। नादिर शाह के बाद, अहमद शाह अब्दाली एक अफगानी लुटेरा भारत आया था और सन 1748, सन 1751 और सन 1756 में उसने भारत में लाखों लोगो की हत्या कर, दिल्ली, मथुरा के मंदिर तोड़ कर भारत की अकूत सम्पत्ति लूट ले गया था। आगरा को लूटते वक्त अहमद शाह अब्दाली की फौज में हैजा फैल गया था और वह बची खुची फौज लेकर अफगानिस्तान भाग गया था।

    नज़ीर अकबराबादी की मां आगरा की थीं। नजीर अकबराबादी के नाना आगरा के किले के किले दार थे। इस कारण वह दिल्ली के गदर से डर कर आगरा चले आए और फिर आगरा के होकर ही रहे।
कहते हैं सन 1827 में नजीर अकबराबादी को लकवा मार गया था और फिर 3 साल बाद एक अगस्त 1830 को उनका इंतकाल हो गया।

लखनऊ के नवाब सा आदत अली खां ने उन्हें लखनऊ बुलवाया था किंतु उन्होंने कहला भेजा कि वह झोपड़ी के शायर हैं महलों में क्या करेंगे।

    नज़ीर अकबराबादी का अधिकांश जीवन आगरा में बीता। आगरा का एक नाम अकबराबाद भी है। यह आगरा वही है जो मुगल सम्राट अकबर की राजधानी रह चुका था जिसके आसपास कृष्ण-भक्ति का वातावरण था, जहां विशाल किला और ताजमहल खड़े किये गये थे। जहां से निकट ही मथूरा और वृन्दावन के मेलों और त्योहारों में सम्मिलित होकर जनता के दिल की धड़कन तेज हो जाती थी। नजीर का जीवन इसी आगरा में व्यतीत हुआ था। उसके कण-कण से उन्हें प्रेम था। वह कहते हैं-

आशिक कहो, असीर कहो, आगरे का है। 
मुल्ला कहो, दबीर कहो, आगरे का है।। 
 मुफलिस कहो, फकीर(Fakir) कहो, आगरे का है। 
शायर कहो, नजीर कहो आगरे का है।!

   इसीलिए इनके काव्य में वही जीवन सांस लेता हआ जान पड़ता है जो आगरा में और उसके चारो ओर या नजीर अकबराबादी ने अपने जीवन का अधिकांश भाग अध्यापन कार्य में साधारण व्यक्ति की तरह व्यतीत किया। नजीर जीवन का बालपन,खेल कूद, पतंगबाजी, तैराकी आदि सभी मनोरंजनों में भाग लेते रहे। उन्हें अवध भरतपुर के राजदरबारों से भी निमन्त्रण मिले, परन्तु उन्होंने आगरा को छोड़ना पसन्द नहीं किया। देखने में तो यह साधारण सी बात है लेकिन वास्तव में यह जनजीवन से प्रेम की वह रुचि है, जो दरबार से बंध जाने के बाद समाप्त हो जाती। नजीर ने 95 वर्ष की उम्र पायी। आगरा के बड़े-बड़े लोग उनका आदर करते थे जिनमें लाला विलासराय और नवाब मुहम्मद अली के नाम उल्लेखनीय हैं।

     जनता से उनका सीधा सम्बन्ध था, उनके यहा ऊंच-नीच हिंदू मुस्लिम और बड़े-छोटे का भेद-भाव नहीं था। उनके स्वभाव में ऐसी सहजता और व्यवहार में ऐसी कुशलता थी कि सभी उनके मित्र बन जाते थे। वे सभी मनुष्यों को समान आदर की दृष्टि से देखते थे और उनकी धारणा थी कि संसार में सब मनुष्य बराबर हैं। उनकी आदमीनामा रचना इस दष्टि से एक अत्यन्त महत्वपूर्ण विचारधारा को व्यक्त करती है।
 नजीर कहते हैं-

दुनियां में बादशाह (King) है सो है वह भी आदमी(Aadmi)।
वा और मुफलिसो गदा है सो है वह भी आदमी(Aadmi)।।
नेमत जो खा रहा है सो है वह भी आदमी(Aadmi)। 
टुकड़े चबा रहा है सो है वह भी आदमी(Aadmi)।।

नजीर का काव्य भावात्मक एकता के लिए एक उदाहरण है। उन्होंने बिना किसी साम्प्रदायिक भेदभाव के काव्य की रचना की। वह सभी धर्मों के महान् पुरुषों से गहरी आस्था और श्रद्धा
रखते थे और उनकी प्रशंसा भी उसी रूप में करते थे।
  सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव के विषय में बड़े आदर के साथ उनका गुणगान करते हैं-
हैं कहते Nanak Shah(नानक शाह) जिन्हें वह पूरे हैं आगाह गुरू। 
रचना वह मिल रहबर जग में हैं यूं रोशन जैसे माह गुरु।।
इस शख्स के इस अज़मत के हैं बाबा नानक शाह गुरू (Nanak Shah Guru)। 
सब सीस नवा अांस करो और हरडम बोलो वाह गुरु।।

      नजीर अकबराबादी की श्री कृष्ण के प्रति गहरी आस्था थी, क्योंकि श्री कृष्ण भारत की स्वयं बहुत बड़ी जनता के परमाराध्य और ब्रह्म के पूर्णावतार माने जाते हैं। नजीर ने इसे इस प्रकार कहा है- 

जाहिर में सुत वह नन्द जसोदा (यशोदा) के आप थे। 
वरना वह आप माई वे और आप बाप थे। 
पदे में बालपन (Childhood) के यह उनके मिलाप थे। ज्योति स्वरूप कहिये, जिन्हें सो वह आप के।। 

     उन्होंने श्रीकृष्ण की विविध लीलाओं का सरस गान किया है जिसमें उनकी आस्था, श्रद्धा और भक्ति के दर्शन होते हैं।
जैसे-जन्म कन्हैया, बांसुरी बजैया, खेलकुद कन्हैया जी, राधा
हरि की तारीफ आदि रचनाओं में श्रीकृष्ण की लीलाओं का चित्रण कर और प्रशंसा के साथ अपनी भक्ति भी प्रदर्शित की है- 
हज़ भी मैं क्या क्या वस्फ कहूं यारों, उस श्याम बरन अवतारी के।
 किशन कन्हैया, मुरलीधर, मनमोहन कुंजबिहारी के।। 
गोपाल, मनोहर साबलया, घनश्याम, अटल बनवारी के। 
जन हर आन दिखाए रूप नये, हर लीला न्यारी न्यारी के।।
 पत लाज रखैया, दुख भंजन हर भगति भगत अधारी के।।

    नज़ीर अकबराबादी काव्य में मनुष्य एकता की भावना भरी हुई है क्योंकि वह जिस आस्था के साथ हजरत अली की वीरता का वर्णन श्रद्धा के साथ करते हैं, उसी आस्था के साथ गणेश जी की भी स्तुति करते हैं। उनके हृदय की विशालता और महानता का अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि उन्होंने हिन्दओं और मुसलमानों के पर्वो का समान श्रद्धा के साथ चित्रण किया हैं। ईद, शब्बेरात, होली. दिवाली, रक्षाबन्धन और कृष्ण-जन्माष्टमी के सम्बन्ध में उन्होंने विस्तार से लिखा है। ईद के वर्णन में जहां एक ओर सिवइयां तैयार हो रही हैं तो दूसरी ओर दिवाली पर बताशे और मिठाइयों की दुकानें सजी हुई हैं, ईद का वर्णन करते हुए वे कहते हैं।

पिछले पहर से उठके नहाने की धूम है।
शीरो, शकर, सिवइयां पकाने की धूम है।
पीरों, जवां की नेमतें खाने की धूम है।
लड़कों को ईवगाह के जाने की धूम है।।
ऐसी न शबरात न बकरीद की बशी।
जैसी हर एक दिल में है इस ईद (Eid) की खुशी।

   उनके काव्य में दिवाली के दिए जगमगा ते हैं मिठाइयों की दुकानें सजी हुई हैं- मिठाइयों की दुकानें लगाके हल्वाई।

पुकारते हैं लाला, दिवाली है आई।बताशे लिया किसी ने तो किसी ने बरफी तुलवाई, खिलौने वालों की उनसे ज्यादा बन आई। कवि ने भारतवर्ष में मनाए जाने वाले प्रमुख त्यौहारों के वर्णन के साथ-साथ अनेक महत्वपूर्ण संस्कारों का भी वर्णन अपनी रचनाओं में किया है। ऐसी रचनाओं में जन्म कन्हैया महादेव का ब्याह, लैला मजनू, बंजारानामा नामक रचनाएं प्रमुख हैं। नजीर ने परम्परागत काव्य-मार्ग से हटकर एक नये प्रकार का काव्य लिखा जिसका जनजीवन से घनिष्ठ सम्बन्ध था। नजीर की यह विशेषता है कि जिस विषय पर रचना कर ते हैं, उसका आंखों देखा वर्णन करते हैं।
नजीर अकबराबादी ने रबच्चों के लिए रीछ का बच्चा, गिलहरी का बच्चा, तरबूज, पतंगबाजी, मांझा और तिल के लडड पर भी खूब लिखा है।

    नज़ीर अकबराबादी से पहले अधिकतर कवि साधारण विषयों पर लिखने और जनता के जीवन का चित्रण करने में संकोच करते थे परन्तु नजीर ने जीवन से सम्बन्धित रोटी, पैसा, मुफलिसी आदि विषयों पर सुन्दर कविताएं नज्में रची हैं। जनजीवन से सम्बद्ध कविता की इस परम्परा के साथ नजीर अकबराबादी का नाम सदैव अमर रहेगा। अमीर खुसरो ने भी अपनी कविता को आम आदमी तक पहुंचाया था ।

     डाक्टर रामविलास शर्मा (Ram Vilas Sharma) जी ने अपनी पुस्तक "भाषा और साहित्य" में लिखा है-"सूफी कवियों की तरह नजीर ने बोलचाल की भाषा को अपनाया। इसलिए अमीर खुसरों (Amir Khusrow) की तरह नज़ीर अकबराबादी (Nazeer Akbarabadi) की गणना हिंदी (HIndi) उर्दू (Urdu) दोनों के साहित्य के इतिहास में होती है।
  नज़ीर अकबराबादी जानते थे कि हिन्दू मुस्लिम आक्रमणकारियों से नफ़रत करते हैं। वे फारसी से भी नफरत करते हैं। इसलिए उन्होंने परिभाषा हिंदी और उर्दू में अपनी रचनाएं लिखी हैं 
 
कहते हैं नज़ीर अकबराबादी ने 2 लाख नज्में और गजलें कही हैं।

किंतु नज़ीर अकबराबादी की 6000 नज्में और 600 गजलें मिलती हैं। तमाम पांडुलिपि या उनकी नष्ट हो गई। उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान ने नजीर ग्रंथावली निकालकर उनकी रचनाओं को सहेजा है।

कृष्ण कन्हैया के बालपन के दीवाने नजीर अकबराबादी
आम जन के कवि नजीर
 
शिवचरण चौहान
कानपुर
shivcharany2k@gmail.com

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