देश विभाजन : अर्थ, परिभाषा (Partition of India)
देश विभाजन एक ऐसा शब्द है जो आज भी हमारे हृदय की गहराई में एक फांस की तरह चुभता है। आज भारत को स्वतंत्र हुए 70 साल अधिक व्यतीत हो चुके हैं। हर वर्ष आजादी की वर्षगांठ मनाते हुए, आजादी की खुशी के साथ-साथ विभाजन की यह त्रासदी हमारा दिल दुखाती है। स्वतंत्रता प्राप्ति के दस वर्ष पूर्व तक कोई यह सोच भी नहीं सकता था कि आजादी मिलने के साथ देश का एक बड़ा हिस्सा हमसे अलग हो जाएगा।
-“सदियों से अर्जित एक राष्ट्र का जब्जा, सांस्कृतिक एकता, जातीयता, मानवीय संबंध सांप्रदायिक आग की लपटों में जलकर राख हो गए थे। इतना बड़ा नर-संहार, संभव है, पहले कभी हुआ हो, मगर परस्पर मिल-जुलकर रहने वाली एक ही संस्कृति, जातीयता और राष्ट्रीयता में पली-ढली, समान भाषाएं बोलने वाली, एक-से कौमी धागों में बंधी जातियों का देशांतरण- हिंदूओं, मुसलमानों और सिखों का, सांप्रदायिक आग की लपटों में झुलसते हुए स्वदेश-त्याग, विश्व-इतिहास की एक अभूतपूर्व घटना है। इतने बड़े पैमाने पर, इस तरह की ट्रेजडी, विश्व में पहले कभी घटित नहीं हुई थी। इस घटना ने भारतीय राष्ट्रीयता, समाज, राजनीति और संस्कृति के स्वरूप को जितना प्रभाव किया उतना शायद ही किसी अन्य घटना ने किया हो”1 विभाजन के तुरंत बाद ही भयंकर रक्तपात, नागरिकों की अदला-बदली जैसी समस्याओं के साथ-साथ आर्थिक और राजनैतिक समस्याओं का जन्म भी हुआ।
अर्थ : विभाजन का अर्थ है ‘बांटना’। जब किसी वस्तु, किसी अर्थ को दो भागों में बांटा जाएगा तो वह विभाजन कहलाएगा। विभाजन को पृथक करना, अलग करना आदि रूपों में भी प्रयोग किया जाता है। विभाजन ही सांप्रदायिकता, हिंसा, अत्याचार, दंगे-फसाद जैसी परिस्थितियों को पैदा करती है। इसलिए विभाजन का परिणाम हमेशा ही दुखपूर्ण एवं कष्ट प्रदान करने वाले होते हैं। विभाजन करने के लिए ही अंग्रेजों ने “फूट डालो-राज्य करो” की नीति अपनाई थी।
विभाजन की परिभाषा : विभाजन के संदर्भ में आयशा जलाल का कहना है कि, “भारत का विभाजन न तो अपरिहार्य था और न उचित था- इसे बचाया जा सकता था। विभाजन का दुःखान्त कार्य इसलिए हुआ कि बड़ी आयु के भारतीय नेता शक्ति प्राप्ति करने की जल्दी में थे।“2 विभाजन जो हिंदू मुस्लिम उग्र सांप्रदायिकता का फल था उसका श्रेय दूषित हिंदू-मुस्लिम मानसिकता को ही जाता है।
डॉ. राम मनोहर लोहिया का मत है कि “भारत का विभाजन अतिवृद्ध नेताओं की देन है।“3 सत्ता प्राप्ति के लिए राजनीतिक का खेल है यह विभाजन। विभाजन के अनेक कारण हो सकते हैं लेकिन इसमें संदेह नहीं कि बंटवारे के दौरान, उसकी वजह से तब से लेकर आज तक पारस्परिक संबंधों में साझे संस्कार और एहसास में जो कमी आती गई, उसके भयंकर परिणाम हमारे सामने है। दरअसल, विभाजन स्थूल और शारीरिक रूप में ही एक दुर्घटना नहीं था, यह एक मानवीय त्रासदी थी, जिसने लाखों लोगों को भावना और विचारों के धरातलों पर ही नहीं, मनोवैज्ञानिक, मानसिक और आत्मिक स्तरों पर भी प्रभावित किया उन्हें बेघर और विस्थापित कर दिया, उनकी मूल चेतना को छिन्न-भिन्न कर दिया। यह दुर्घटना राजनीति क्षेत्र या किसी वर्ग-विशेष तक सीमित नहीं रही, लाखों-करोड़ों लोगों की जिंदगी, उनकी सभ्यता और संस्कृति, उनके वर्तमान और भविष्य, उनके आचरण और व्यवहार से जुड़ गई और आज भी जुड़ी हुई है -जो झकझोरती, विचलित करती। कहना न होगा कि हिंदुस्तान के जातीय मनस् में विभाजन आज भी एक जीवित संदर्भ की तरह मौजूद है, एक ऐसी घटना जो बार-बार हमारे सामने घटित होती है और नई-नई शक्लों में सामने आती है।
संदर्भ:
- नरेंद्र मोहन – विभाजन की त्रासदी : भारतीय कथादृष्टि – पृ- 13
- आयशा जलाल – द सोल स्पोक्समेन – उद्धरण “द टाइम्स ऑफ इंडिया – 1985,दिसंबर,22
- डॉ. राम मनोहर लोहिया – गिल्टी मौन इव अन्डियाज पार्टिशन – 1970 – पृ-1
ये भी पढ़े;