आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने वैचारिक निबंधों को उत्कर्ष की चरम ऊंचाई पर पहुंचा दिया था, मुख्यतः मनोविकार-संबंधी निबंधों को, इसलिए छायावादोत्तर काम में हिंदी-निबंध अन्य दिशाओं की ओर मुड़ा। जहां तक विचारात्मक निबंधों का संबंध है, समीक्षात्मक निबंध ही अधिक लिखे गए, यधापि व्यक्तित्वव्यंजक निबंधों की संख्या भी काफी बड़ी है।
रामचन्द्र शुक्ल - कविता क्या है
'कविता क्या है' शुक्ल जी का आलोचनात्मक निबन्ध है। इस निबन्ध का प्रारम्भ शुक्ल जी ने समास शैली/सूत्र शैली से किया है- “कविता वह साधन है, जिसके द्वारा शेष सृष्टि के साथ मनुष्य के रागात्मक सम्बन्ध की रक्षा और निर्वाह होता है।” आगे की पंक्तियों में वे राग की व्याख्या करते हैं। दूसरे अनुच्छेद की प्रारम्भिक पंक्तियों में कविता का कार्य स्पष्ट करते हुए कहते हैं- “रागों का वेगस्वरूप मनोशक्तियों का सृष्टि के साथ उचित सामंजस्य स्थापित करके कविता मानव जीवन के कार्यत्व की अनुभूति उत्पन्न करने का प्रयास करती है। अन्यथा मनुष्य के जड़ हो जाने में कोई सन्देह नहीं। ”उदाहरण शैली का एक नमूना देते हुए उन्होंने बताया है कि एक साधारण-सा उदाहरण लेते हैं- 'तुमने उससे विग्रह किया ' यह बहुत ही साधारण वाक्य है, लेकिन 'तुमने उसका हाथ पकड़ा' यह एक विशेष अर्थगर्भित तथा काव्योचित वाक्य है। शुक्ल जी के निबन्ध 'कविता क्या है?' के अनुसार कविता का पर्याय काव्य है। कविता का लक्ष्य सृष्टि के नाना रूपों के साथ मनुष्य की भीतरी रागात्मक प्रवृत्ति का सामंजस्य स्थापित करना है। कविता की प्रेरणा से कार्य में प्रवृत्ति बढ़ जाती है। मनोरंजन करना कविता का महान गुण माना गया है। कविता के द्वारा चरित्र चित्रण के माध्यम से सुगमता से शिक्षा दी जा सकती है। कविता का कार्य भक्ति, श्रद्धा, दया, करुणा, क्रोध और प्रेम आदि मनोवेगों को तीव्र तथा परिवर्तित करना है तथा सृष्टि की वस्तुओं और व्यापारों से उनका उचित तथा उपयुक्त सम्बन्ध स्थापित करना है। कविता मनुष्य के हृदय को उन्नत व उदात्त बनाती है। सृष्टि सौन्दर्य का अनुभव कराती है। कविता की सृष्टि नाद-सौन्दर्य तथा भाव - सौन्दर्य दोनों के संयोग से होती है । रस और भाव कविता के प्राण हैं। कविता में अलंकारों का जबरदस्ती प्रयोग नहीं करना चाहिए, क्योंकि मानव हृदय के स्रोतों से उनका विशेष सम्बन्ध नहीं होता।
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