नवकिरण प्रकाशन से अति शीघ्र प्रकाशित होने वाली इस अनूठी पुस्तक "सुरबाला" की रचना, मैंने लावणी/कुकुभ छंद विधान पर आधारित, 200 मुक्तकों से, चौदह खंडों में संपन्न किया है।
परब्रह्म से निकल कर पुनः परब्रह्म में समाहित होना ही मानव की नियति है। ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ कृति नारी का जीवन चक्र भी ईश्वर से प्रारंभ होकर ईश्वर पर ही खत्म हो जाता है। जीवन की विभिन्न अवस्थाओं से गुजरता हुआ नारी मन जीवन के प्रारंभिक सोपान में उँचे पर्वतों से उतरती नदी के तीव्र बहाव के समान ही अत्यंत वेगमयी चंचल अनियंत्रित सा प्रतीत होता है जो मध्यवर्ती सोपान में किसी समतल मैदान में बहती नदी के समान, शांत तथा स्थिर गति से सुरमयी लय में चलता हुआ अंतिम सोपान में नदी-सागर के विलय की तरह ही, अत्यंत धीमी गति से, अपने जनक परब्रह्म में समाहित होने को बेचैन हो जाता है।
जीवन चक्र संबंधित यही दर्शन "सुरबाला" के मूल में भी विद्यमान है। सुरबाला की रचना करते समय, मैंने दार्शनिकता और रोचकता में आवश्यक संतुलन बनाए रखने का निरंतर प्रयास किया है। इसकी रचना इस तरह से की गई है कि सामान्य रूप से पढ़ने पर यह एक रोचक एवं आम जीवन में घटित होने वाली घटनाओं की श्रंखला ही लगे। मूल में दार्शनिकता होते हुए भी इसे पढ़ते समय यह दार्शनिकता कहीं पर भी आम पाठक के मनोरंजन पर नहीं हावी हो तथा काव्य के मर्मज्ञ पाठकों को भी संतुष्ट कर सके इस संतुलन को बनाए रखने का मैंने पूरा खयाल रखा है।
112 पेज की यह संग्रहणीय अनूठी पुस्तक अतिशीघ्र "अमेजन" पर आनलाइन क्रय हेतु, पाठको को उपलब्ध होगी ।
मेरी पुस्तक "सुरबाला" के कुछ और अंश (पिछली पोस्ट से आगे - पोस्ट संख्या: 15) आपके अवलोकनार्थ। उम्मीद है, आपको पसंद आएंगें ।
व्यग्र हुआ मन सुरबाला
नजर ढूंढती पल पल छिपकर,
इंतजार करती बाला।
नजर नजर से जब टकराती,
झुक जाती पलकें बाला।
पल पल इश्क जवाँ हो दिल में,
लहराए गोरी मनवा।
बेसब्र नजर बेताब जिगर,
व्यग्र हुआ मन सुरबाला।।
इनकार अधर पर है लेकिन,
मन इकरार करे बाला।
जले इश्क का दीपक दिल में,
मन को भाया दिलवाला।
नैन बसाकर नजर चुराती,
प्यास बढ़ाये प्यासों की।
प्रेम अमिय की हो उत्कंठा,
व्यग्र हुआ मन सुरबाला।।
सुन्दर सा इक भोला चेहरा,
छाए ख़्यालों मे बाला।
नैन गुलाबी अरमां जागे,
नींद न आए सुरबाला।
कभी दरीचा कभी बारजा,
पाँव टिके ना गोरी के।
झलक इश्क की फिर फिर पाने,
व्यग्र हुआ मन सुरबाला।।
कभी शरारत कभी नजाकत,
अदा दिखाए सुरबाला।
बाँकी नजरें जब जब देखें,
मुस्कुराए बस दिलवाला।
हँस हँस ढाए सितम सितमगर,
बढती जाए बेताबी।
रोक न पाती दिल को अपने,
व्यग्र हुआ मन सुरबाला।।
मेरी कृति सुरबाला के कुछ और अंश:
मान मनौव्वल करे अनाड़ी,
दुलरावै कमसिन बाला।
पुनि पुनि खाय भाव फिर गोरी,
हाथ छुड़ावै सुरबाला।
हाथ न छोड़े प्रेम पुजारी,
भड़कावै पुनि पुनि शोला।
आग इश्क की बढ़ती जाए,
संग पिया जब सुरबाला।। 90
ज्यों ज्यों चंदा बढ़े राह पर,
होश खो रहा दिलवाला।
मंत्रमुग्ध पिय देखै सजनी,
मन मुस्काये सुरबाला।
प्रेम उदधि में डूबे दो तन,
चिंगारी बनती शोला।
अनुनादित हों सांसें दोनो,
संग पिया जब सुरबाला।। 91
पिया निहारे सोती सजनी,
अंग अंग महके बाला।
कभी सहलाए कटि किंकणी,
कभी अधर वेणी माला।
बंद पलक मन मन मुस्कावै,
रोम रोम पुलकित सजनी।
पिया प्यार मन भावै सजनी,
संग पिया जब सुरबाला।।
रोके चाहे सजनी जितना,
बाज न आवे दिलवाला।
रग रग में अरमान मचलता,
सिहर सिहर जाए बाला।
रक्त तप्त शोलों को पुनि पुनि,
जवाँ उमंगें दहकाती।
अंग अंग दे रहे निमंत्रण ,
संग पिया जब सुरबाला।।
पिया प्यार से देखे बोले,
भूल जाय सब दुख बाला।
निज दुख दर्द भूल कर सजनी,
पुनि पुनि प्यार करे बाला।
मुस्कराए बेंदी कंगना
स्वत: करे पायल छम छम।
स्वर्ग सरीखी दुनिया लगती,
संग पिया जब सुरबाला।।
मुस्काये जब पिया प्रेम से,
अंग अंग खिलता बाला।
प्रेम गीत से झंकृत होते,
तन आभूषण सुरबाला।
तन मुस्काये मन मुस्काये,
मुस्काये सारा आलम।
सकुचाती गोरी मुस्काये,
संग पिया जब सुरबाला।।
कमसिन रात समां भी कमसिन,
संग पिया कमसिन बाला।
लुभा रही सबसे कमसिन जो,
शोख अदा कमसिन बाला।
शोख अदाएँ कमसिन हों जब,
दिल पर सीधे वार करें।
प्रणय निवेदन हो अनंग सा,
संग पिया जब सुरबाला।।
जज़्बातों की रात जवाँ हो,
मदहोशी में सुरबाला।
प्रेम समर्पण को हो तत्पर,
सजन पाश में सुरबाला।
झुरमुट ओट चाँदनी देखे,
लहरों का उठना गिरना।
नई नई बातें जज़्बाते,
संग पिया जब सुरबाला।।
मादक महक सजन सांसों की,
घुले सांस जब सुरबाला।
पलकें स्वतः बंद हो जाएं,
होंठ लरजते सुरबाला।
ज्यों ज्यों पीता प्रेम सुधारस,
त्यों त्यों बाढै प्यास पिया।
अंग अंग इक प्रेम कहानी,
संग पिया जब सुरबाला।।
चाँद चाँदनी और सितारे,
देखे संग पिया बाला।
रश्क करें पर पुनि पुनि देखें,
भाग्य सराहें दिलवाला।
घटे कभी ना प्रेम परस्पर,
पल पल बढता ही जाए।
रति अनंग सी प्रेम-कहानी,
संग पिया जब सुरबाला।।
©® अशोक श्रीवास्तव 'कुमुद'
अशोक श्रीवास्तव 'कुमुद'
राजरूपपुर,
प्रयागराज (इलाहाबाद)
ashokkumarsrivastava6430@gmail.com
Mobile : 9452322287
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