शिवचरण चौहान
आज कानपुर और उत्तर प्रदेश श्री कृष्ण पहलवान के नाम और काम को भूल गया है। कानपुर के चौक हटिया में जहां पर उनका श्री कृष्ण पुस्तकालय था वही उनका लोग नाम नहीं जानते।
उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी को श्री कृष्ण पहलवान के नाम पर एक पुरस्कार शुरू करना चाहिए। कानपुर में बड़े चौराहे के पास अथवा हटिया में श्री कृष्ण पहलवान की प्रतिमा लगवानी चाहिए और उस सड़क का नाम श्री कृष्ण पहलवान के नाम पर रखना चाहिए।
श्री कृष्ण पहलवान खत्री थे और पहलवानी का उन्हें शौक था। वह जमाना अंग्रेजों का था। श्री कृष्ण पहलवान गणेश शंकर विद्यार्थी से बहुत प्रभावित थे और भारत की आजादी के समर्थक थे। श्री कृष्ण खत्री ने पहलवानी में भले ही बहुत कुछ नाम ना किया हो किंतु उन्होंने संगीत नाटक के क्षेत्र में ऐतिहासिक काम किया है। उन्होंने कानपुर को एक नौटंकी शैली कानपुर नौटंकी शैली दी है। करीब 300 किताबें नौटंकी संगीत और भजन की छापी हैं। आर्थिक संकट के चलते श्री कृष्ण पहलवान ने श्री कृष्ण पुस्तकालय और छापाखाना लगाकर। अखबारी कागज पर। आना दो आना , चार आना और 8 आना कीमत की किताबें छापी हैं। किताबों के प्रचार प्रसार के लिए उन्होंने गांव के हाट मेंलो, बाजारों और गली नुक्कड़ के कोनों तक में किताबें रख कर बिकवाई हैं।
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श्री कृष्ण भगवान ने अपने 81 वर्ष जीवन के 70 साल नौटंकी नाट्य कला के विकास के लिए लगाया। उन्होंने गुलबिया उर्फ गुलाब बाई, किसनिया, रामा जैसी गायिका और नर्तकियों को मंच प्रदान करके राष्ट्रीय पहचान दी गुलाब बाई ने तो फिल्म तक में गाने गाए हैं। कमलू दास कांधी वाले ने भी कई नौटंकियां लिखी हैं।
श्री कृष्ण संगीत पार्टी श्री कृष्ण पहलवान ने बनाई थी। श्री कृष्ण पहलवान के निधन के बाद उनके भाई श्रीराम मेहरोत्रा यह संगीत पार्टी चलाते रहे। श्री कृष्ण पहलवान नौटंकी कलाकारों की चार टीमें रखते थे। जो शादी विवाह मेलों और समारोह विशेष अवसरों पर जाते थे और एक टीम नए लड़कों के निरंतर रिहर्सल किया करती थी। प्रसिद्ध नाटककार नौटंकी लेखक विनोद रस्तोगी को श्री कृष्ण पहलवान ने बहुत प्रोत्साहित किया। बाद में विनोद रस्तोगी आकाशवाणी के कर्मचारी बन गए। अनेक नौटंकी विनोद रस्तोगी ने लिखी है मंचित करवाई हैं। मुंशी इतवारी लाल रेडियो पर आने वाला उनका धारावाहिक नाटक था।
श्री कृष्ण पहलवान के अलावा त्रिमोहन लाल ने नौटंकी के लिए बहुत काम किया है। नौटंकी लेखन और मंचन के अलावा उनके मंच पर नक्कारा वादन मशहूर था। लोग दूर-दूर से त्रिमोहन का नककरा सुनने आते थे।
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मंधना के लालमणि नंबरदार और अलीगढ़ के छिद्दन पहलवान का भी नौटंकी कला के विकास में बहुत योगदान रहा है। उस समय नौटंकी बहुत मशहूर थी। तब न तो टीवी था और न रेडियो। हरियाणा के सॉन्ग और कानपुर के ख्याल गायन वृंदावन की रासलीला ही मनोरंजन और ज्ञान का साधन थी। हाथरस और कानपुर में नौटंकी को नई पहचान मिली और नई सैलरी मिली। एक चबूतरे पर दरी बिछाकर कलाकार सत्यवादी हरिश्चंद्र, रानी पद्मिनी, वीर हकीकत राय, लैला मजनू, आदि ना जाने कितनी नौटंकी खेला करते थे। इन के माध्यम से अंग्रेजी शासन पर भी व्यंग्य किया जाता था। इस कारण अंग्रेजों ने नौटंकी खेलने पर पाबंदी लगाई थी। श्री कृष्ण पहलवान ने नौटंकी के प्रति भारी भीड़ के आकर्षण को देखते हुए टिकट लगाकर नौटंकी दिखाने की परंपरा शुरू की थी । और लोग टिकट लेकर नौटंकी देखने हैं दूर-दूर के गांवों कस्बों से आते थे।
नौटंकी से पहले रामलीला और रासलीला का मंचन होता था किंतु यह दोनों मंच धार्मिक थे। जनता के मनोरंजन के लिए और राष्ट्रीय भावना प्रबल करने के लिए नौटंकी की रचना हुई। नौटंकी में एक विदूषक भी रखा जाता था और एक रंगा। रंगा का काम कथा से परिचय करवाना होता था। बहरे तबील , चौबोला, दोहा आदि छंदों में नौटंकी के कलाकार अपने डायलॉग बोलते थे।
श्री कृष्ण पहलवान ने ना सिर्फ नौटंकी विधा का विकास किया बल्कि नौटंकी की किताबें सस्ते मूल्य पर, अखबारी कागज में छाप छाप कर गांव गांव तक पहुंचाई। ताकि लोग नौटंकी के प्रति रुचि ले सकें। आल्हा की 52 गढ़ की लड़ाई यां भी श्री कृष्ण पुस्तकालय के माध्यम से ही छपी और बिकी। रामलीला लक्ष्मण परशुराम संवाद, भजन कीर्तन की किताबें भी श्री कृष्ण पहलवान ने प्रकाशित करवाई थीं। उन्हें तो पदम श्री पदम भूषण मिलना चाहिए था किंतु सरकार आने के बाद भी कांग्रेस ने उनके संगीत के क्षेत्र में किए गए योगदान को पर ध्यान ही नहीं दिया।
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12 मई 1923 को फर्रुखाबाद के शमशाबाद कस्बे में पैदा हुए विनोद रस्तोगी ने भी नौटंकी के लिए अपना जीवन समर्पित किया है। श्री कृष्ण पहलवान का प्रोत्साहन पाकर विनोद रस्तोगी सफल नौटंकी लेखक बन गए। इसके पहले विनोद रस्तोगी त्रिमोहन लाल की कंपनी में काम करते थे। विनोद रस्तोगी की प्रतिभा को पहचान कर आकाशवाणी के महानिदेशक जगदीश चंद्र माथुर 1960 में उन्हें इलाहाबाद आकाशवाणी में नाटक प्रोड्यूसर के पद पर ले गए थे। बाद में सिद्धेश्वर अवस्थी ने कानपुर की नौटंकी के लिए अपनी क्षमता पर प्रयास किए। सिद्धेश्वर अवस्थी को सब लोग सिद्धि गुरु कहते थे। सिद्धेश्वर अवस्थी ने ना सिर्फ कानपुर शैली की नौटंकी को पला पोसा बल्कि कई नौटंकी यां लिखी भी। सिद्धेश्वर अवस्थी नौटंकी को मंच से लेकर आकाशवाणी और दूरदर्शन तक गए। सन 1975 में नौटंकी का प्रसारण दूरदर्शन दिल्ली से हुआ था।
नत्थाराम गौड़ की नौटंकी लैला मजनू और श्री कृष्ण पहलवान की नौटंकी इंदल हरण पूरे उत्तर भारत में प्रसिद्ध हुई थी और उसके हजारों मंचन हुए थे।
पिछले दिनों गुलाब बाई की छोटी पुत्री ने एक कार्यक्रम में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से नौटंकी कला को पुनर्जीवित करने के लिए अनुरोध किया था। पर आश्वासन तो आश्वासन होते हैं वादे तो वादे होते ही इसलिए हैं कि पूरे ना किए जाएं।
उत्तर प्रदेश में लखनऊ में गोमती नगर में भारतेंदु नाट्य अकादमी का अपना भवन है। इस भवन में त्रिमोहन लाल, श्री कृष्ण पहलवान, नत्थाराम गौड़ आदि लोकमंच कलाकारों लोक नाटक कलाकारों की प्रतिमाएं लगाई जाएं। पोड्रेड बनाकर लगवाए जाएं। कानपुर में श्री कृष्ण पहलवान की किसी पार्क में मूर्ति लगाई जाए और उस पार्क का नाम श्री कृष्ण पहलवान के नाम पर रखा जाए। आज कानपुर की उत्तर प्रदेश की नई पीढ़ी श्री कृष्ण पहलवान के बारे में नहीं जानती है उनके योगदान के बारे में नहीं जानती है। गुलाब बाई, सिद्धेश्वर अवस्थी आदि लेखक, कलाकारों के बारे में नहीं जानती है। यदि इनके नाम पर पुरस्कार शुरू हो जाएं। प्रतिमा बन जाएं। सड़कों का नामकरण हो जाए तो शायद समाज में कुछ जागृति आ सके।
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