Azadi ki Tadap: आजादी की तड़प (कहानी)

Dr. Mulla Adam Ali
0

आजादी की तड़प

प्रकृति, जिसने अपनी गोद में सबकों स्थान दिया है। मनुष्य हो पशु हो या फिर पक्षी हो। प्रकृति का प्यार सबके लिए एक समान है वो कभी किसी के साथ अन्याय या भेद-भाव नही करती। जैसे मनुष्य अपना जीवन आजादी से बिताना चाहता है, पशु - पक्षियों को भी अपना जीवन आजादी से बिताने का अधिकार है। हम कोई हक नहीं कि हम उनकों पिंजरे में रखकर उनकी आजादी छीने। इस नील गगन में पंख पसारकर उडते ये तरह-तरह के पक्षी कितने सुन्दर लगते हैं। इनकी भिन्न-भिन्न प्रकार की मीठी- मीठी बोलियाँ, मन को लुभाती है। इनकी चहचहाहट चारों दिशाओं में मधुर संगीत भर जाती है। 

         ये पक्षी, अपनी व्यथा किसी को बोलकर नही सुना सकते? लेकिन, इनकों भी दर्द होता है, पीडा का अहसास होता है। अपने परिवार से बिछुड़ने पर ये भी रोते हैं। 

       पिंजरे में कैद एक सुंदर पक्षी कहता है - कि मैं, इस पिंजरे के बंधन को तोड़कर आजाद होना चाहता हूं। खुले आसमान में, नीले बादलों को पंख फैलाकर छूना चाहता हूं।

पंछी कहता है - कि मेरा जन्म इस पिंजरे में नही हुआ, सुन्दर घने वन के विशाल वृक्ष पर मेरा जन्म हुआ था। मुझे मेरे परिवार से अलग कर दिया गया और इस पिंजरे में कैदी का जीवन दे दिया गया। मैं! दिन-रात इस पिंजरे से आजाद होने के सपने देखता रहता हूं। 

         पंछी कहता है - कि जब वह बहुत छोटा था और उडना नही जानता था, तो वह अपने परिवार के साथ घोंसले में रहता था। उसका परिवार उसकी देखभाल करता था। उसका लाड प्यार करता था। उसके माता-पिता उसके लिए फल और दाना लेकर आते और बडे प्रेम से उसे खिलाते थे। पंछी अब, ये सोचकर रोता है कि वो आनंद भरे पल कहाँ खो गये? अब वो पल आयेंगे भी या नहीं। 

              पंछी आगे कहता है - कि एक दिन जब मेरे माता-पिता खाने की तलाश में गये हुए थे, तब वहां एक बहेलिया आया। उसका चेहरा बहुत डरावना था। मै! और मेरे भाई - बहन उसे देखकर घोंसले में छिप गये लेकिन, वह दुष्ट पेड पर चढ और घोसलें में बैठे बच्चों को पकड- पकडकर अपने थैले मे भर लिया। पंछियों की चीं - चीं की आवाज चारों ओर फैल गई। लेकिन, सब व्यर्थ था। उसने अपने कठोर हाथों से मुझे दबोच लिया। मै! बहुत छटपटाया लेकिन स्वयं को आजाद न करा पाया। उसने मुझे भी थैले में डाल लिया, जिसमें बहुत अंधेरा था और हवा की कमी के कारण मेरा दम घुट रहा था।

ये भी पढ़ें; मोहित ने समझी भूल : रोचिका अरुण शर्मा

          बहेलिये ने, अपने घर पहुंचकर हमें पिंजरे में कैद कर दिया और खाने के लिए भी कुछ नहीं दिया। मेरा मन किसी भयानक आंशका से कांप रहा था? अगले दिन हमें बाजार ले जाया गया। वहां चारों ओर पिंजरे में बंद पंछी ही नजर आ रहे थे। पंछियों का मोल - भाव किया जा रहा था। उन्हें खरीदकर ले जाया जा रहा था। एक छोटी सी लड़की की नजर मुझ पर पडी उसने, अपने पिता से मुझे खरीदने की जिद्द की और खरीदकर अपने घर ले गई।     

       वह मुझे पाकर बहुत खुश थी। खुशी से नाच रही थी। उसने मुझे प्यारा-सा नाम भी दिया। उस घर में मेरे खाने-पीने का, सफाई का बहुत ध्यान रखा जाता था। वे लोग, मुझे बहुत प्यार करते थे। लेकिन, मुझे तो आजादी चाहिए थी ये बात कैसे? मै! अपने मालिक को बताऊँ। जिस प्रकार मनुष्य को अपनी आजादी प्यारी है हमें भी अपनी आजादी से उतना ही प्यार है। हम पिंजरे में नही इस खुले गगन में उडना चाहते हैं सारा आकाश छूना चाहते हैं। जब हम स्वयं आजाद रहना चाहते हैं, अपनी मनमर्जी से सब कुछ करना चाहते हैं तो, हमें कोई अधिकार नही कि हम दूसरों की आजादी छीने उन्हें अपना गुलाम बनायें फिर चाहे वह "मनुष्य हो पशु हो या फिर पक्षी" 

निधि "मानसिंह" 
कैथल, हरियाणा

ये भी पढ़ें;

* गणतंत्र दिवस पर विशेष कविता

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें (0)

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !
To Top