पत्र लेखन ( Letter - Writing )
पत्र दो प्रकार के होते हैं- 1. अनौपचारिक 2. औपचारिक
1. अनौपचारिक पत्र - अनौपचारिक पत्रों में व्यक्तिगत पत्र, निमंत्रण पत्र और पारिवारिक पत्र आते हैं। अनौपचारिक पत्र तीन प्रकार के होते हैं।
(क) व्यक्तिगत पत्र- इसमें बधाई पत्र धन्यवाद पर शुभकामना पत्र, संवेदना पत्र आदि शामिल हैं।
(ख) पारिवारिक पत्र - यह पत्र माता - पिता, भाई - बहन या अन्य रिश्तेदारों को लिखे जाते हैं।
(ग) निमंत्रण पत्र - यह पत्र जन्म - दिन, विवाह, उपनयन संस्कार आदि के उपलक्ष में लिखे जाते हैं।
2. औपचारिक पत्र - ऐसे पत्र उन्हें लिखे जाते हैं जिनके साथ प्रेषक का किसी भी प्रकार का व्यक्तिगत संबंध नहीं होता। इसमें निम्न प्रकार के पत्र आते हैं।
(क) प्रार्थना पत्र - इसमें अवकाश के लिए नौकरी के लिए , शिकायत के लिए, सुधार आदि के लिए लिखे जाने वाले पत्र आते हैं ।
( ख ) व्यावसायिक पत्र - पत्र व्यवसाय से संबंधित होते हैं , जैसे किसी वस्तु को मँगवाना या भेजना, किसी वस्तु के खराब होने की शिकायत आदि। इस प्रकार के पास एक व्यापारी दूसरे व्यापारी को ग्राहक विक्रेता को अथवा व्यापारी ग्राहक को भेजते हैं।
(ग) सरकारी पत्र - किसी एक सरकारी कार्यालय से किसी दूसरे सरकारी कार्यालय को अथवा किसी व्यक्ति की ओर से सरकारी कार्यालय को या सरकारी कार्यालय से किसी व्यक्ति को लिखे जाने वाले पत्र सरकारी पत्र कहलाते हैं।
पत्र के आठ अंग होते हैं-
1. स्थान एवं तिथि - पत्र के ऊपरी सिरे पर भेजने वाले का स्थान तथा तिथि लिखनी चाहिए।
2. संबोधन - संबोधन बाई और लिखा जाता है । अलग - अलग व्यक्तियों तथा अधिकारियों के लिए -अलग संबोधनों का प्रयोग किया जाता है। व्यक्तिगत पत्रों में बड़ों के लिए पूजनीय, आदरणीय अर्थात् मित्रों के लिए प्रियवर, प्रिय मित्रवर आदि तथा छोटों के लिए प्रिय , चिरंजीव आदि लिखते पत्रों में महोदय, आदरणीय आदि का प्रयोग किया जाता है।
3. अभिवादन - अनौपचारिक पत्रों में अपने से बड़ों के लिए सादर प्रणाम, चरण स्पर्श आदि, छोटों के लिए आशीर्वाद, शुभाशीष तथा बराबर वाले अर्थात् मित्रों के लिए नमस्कार लिखना चाहिए। सरकारी तथा व्यावसायिक पत्रों में अभिवादन नहीं लिखा जाता।
4. विषयवस्तु - विषयवस्तु संक्षिप्त तथा स्पष्ट होनी चाहिए । उसमें अधिक विस्तार नहीं होना चाहिए।
5. समाप्त - विषयवस्तु की समाप्ति के बाद व्यक्तिगत पत्रों में ' शेष फिर पत्रोत्तर की प्रतीक्षा में तथा व्यावसायिक कार्यालयी व सरकारी पत्रों में धन्यवाद, धन्यवाद सहित आदि लिखा जाता है।
6. पूर्व शब्दावली - पत्र में हस्ताक्षर से पूर्व एक या एक से अधिक संबंधसूचक शब्दों का प्रयोग किया जाता है । बड़ों को लिखे पत्रों में आपका आज्ञाकारी पुत्र , पुत्री , अनुज आदि : मित्रों को लिखे पत्रों में आपका आपका ही, तुम्हारा, अभिन्न हृदय आदि तथा अपने से छोटों के प्रति तुम्हारा शुभचिंतक, तुम्हारा शुभाकांक्षी आदि लिखना चाहिए। कार्यालय संबंधी तथा व्यावसायिक पत्रों में 'भवदीय' लिखा जाता है । विद्यालय के प्रधानाचार्य को लिखे गए प्रार्थना पत्र में आपका आज्ञाकारी शिष्य ' लिखना चाहिए ।
7. हस्ताक्षर - बड़ों को लिखे गए पत्रों में केवल नाम लिखना चाहिए। नाम के साथ उपनाम नहीं लिखा जाता । अन्य पत्रों में पूरा नाम लिखना चाहिए । कार्यालय संबंधी तथा व्यावसायिक पत्रों में हस्ताक्षर करके उसके नीचे पूरा नाम लिखना चाहिए ।
8. पता - पोस्टकार्ड अथवा लिफ़ाफ़ पर जिसे पत्र भेजना है उसका नाम , कार्यालय का नाम या भवन गली - मोहल्ले और नगर का नाम डाकखाने , जिला तथा प्रदेश का नाम तथा पिन कोड नं स्पष्ट रूप से । लिखना चाहिए।
लेखन शैली :
1. कार्यालयी या व्यावसायिक पत्रों की भाषा व शब्दावली नपी- तुली रखें। ऐसे पत्रों के व शब्द लगभग निश्चित से होते हैं, उनका ही प्रयोग करें जैसे प्रधानाचार्य को पत्र लिखते समय आरंभ में लिखा जाने वाला वाक्य 'सविनय निवेदन है कि मैं (........) आपका ध्यान ....... की ओर आकर्षित करना चाहता हूं।
2. सरकारी, व्यापारिक , कार्यालयी या प्रार्थना पत्रों में तथ्यों पर विशेष ध्यान दें। प्रार्थना पत्रों में अपना नाम, कक्षा तथा क्रमांक : शिकायती पत्रों में शिकायत संबंधी व्यक्ति या क्षेत्र की जानकारी, सरकारी पत्रों में उचित विराम व अधिकारी व अपने नाम, पता आदि का उल्लेख यदि न किया जाए तो पत्र पर कोई कार्रवाई नहीं हो सकती, अत : इनसे संबंधित पूर्ण विवरण दें।
विशेष सभी पत्रों के प्रारूप (format) में पत्र के विषय को छोड़कर सभी जानकारी केवल बाई (left) और ही है । कभी दाएँ, कभी बाएँ या दाहिनी ओर न लिखें।
एक श्रेष्ठ पत्र के गुण :
एक श्रेष्ठ पत्र के गुण एक श्रेष्ठ पत्र में निम्नलिखित गुण होने चाहिए:
(क) पत्र निष्कपट भाव से बातचीत शैली में लिखा जाना चाहिए। पत्र को पढ़कर ऐसा लगे, मानो हम लेखक के साथ बातचीत कर रहे हों। पत्र लिखते समय लेखक को इस प्रकार पत्र लिखना चाहिए मानो वह पत्र प्राप्त करने वाले व्यक्ति के सामने बैठा वार्ता कर रहा हो।
(ख) पत्र में किसी प्रकार का आडंबर नहीं होना चाहिए । अपने किसी स्वार्थ - साधन के लिए बड़े - बड़े शब्दों का प्रयोग करना अनुचित है । पत्र से बनावटीपन की गंध नहीं आनी चाहिए । बल्कि चाहिए यह कि हमारे शब्दों की सरलता तथा भावनाओं की ईमानदारी पाठक के मर्म को छू ले।
(ग) पत्र में शिष्टाचार का सावधानी से प्रयोग होना चाहिए । यदि हम अपने से बड़े को पत्र लिख रहे हैं , तो पत्र में सम्मान का भाव व्यक्त होना चाहिए। छोटों को पत्र लिखते समय हमारा स्नेह प्रकट होना चाहिए।
(घ) पत्र की भाषा स्वाभाविक, सरल तथा शिष्ट होनी चाहिए । पत्र स्थायी संपत्ति होते हैं । इसलिए किसी भावावेग में लिखते समय भी हमें अपशब्दों का प्रयोग न करके अपनी प्रतिक्रिया को संतुलित शब्दों में रखना चाहिए।
(ङ) पत्र में अपनी विद्वता का प्रदर्शन नहीं होना चाहिए । अपनी अनुभूतियों को जैसा हम अनुभव करते हैं, वैसा प्रस्तुत कर देना चाहिए ।
(च) पत्र में अनावश्यक विस्तार नहीं होना चाहिए। व्यर्थ की बातें पत्र के प्रभाव को कम कर देती हैं।
(छ) पत्र में पता , तिथि, संबोधन, अभिवादन, समाप्ति आदि सुस्पष्ट ढंग से होने चाहिए।
(ज) एक श्रेष्ठ पत्र की सफलता इसमें है कि हम वह प्रभाव उत्पन्न कर सकें जो हम करना चाहते हैं। पत्र लेखन में हस्तलेख का भी ध्यान रखना आवश्यक है। हमें सुंदर शब्दों में पत्र लिखना चाहिए, जिससे पत्र प्राप्तकर्ता को उसे पढ़ने तथा सँभाल कर रखने का शौक जागे।
ये भी पढ़ें; Hindi Language PDF : हिन्दी भाषा पीडीएफ