लॉर्ड वेवेल का भारत-प्रवेश और शिमला परिषद
Lord Wavell and Simla Conference
लॉर्ड लिनलिथगो के बाद भारत के वायसराय के रूप में लॉर्ड वेवेल की नियुक्ति हुई। वेवल जब भारत आया तो यहां की परिस्थितियों को देखकर चिंतित हुआ। 17 फरवरी 1944 को दिए गए अपने पहले भाषण में मुसलमानों को समझाते हुए उन्होंने कहा पाकिस्तान की योजना का कोई मतलब नहीं है। सन् 1944, मई को गांधी जी ने जिन्ना के सामने एक योजना रखी जिसमें लीग की “लाहौर प्रस्ताव” को स्वीकार कर लिया गया था। इस योजना में कहा गया था कि द्वितीय महायुद्ध के बाद एक ऐसा कमीशन की व्यवस्था की जाएगी जो उत्तर पश्चिम तथा पूर्व भारत के उन जिलों का विभाजन होगा जहां मुस्लिम बहुसंख्यक है। यह काम जनमत संग्रह के आधार पर किया जाएगा।
लेकिन जिन्ना ने इस योजना को पूर्णतया अस्वीकार कर दिया क्योंकि यह योजना उन्हें मूल पाकिस्तान योजना से भिन्न प्रतीत हो रही थी। पाकिस्तान के अपने सपने को वे हर हाल में पूरा करना चाहते थे इसी कारण वे विभाजन पर खड़े हुए थे। एक और जिन्ना, दूसरी ओर लाहौर प्रस्ताव को स्वीकार कर लेने के बावजूद गांधीजी हर हाल में देश को अखंड बनाए रखना चाहते थे।
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लॉर्ड वेवेल ने हिंदू मुस्लिम समस्या को सुलझाने के लिए प्रयत्न आरंभ किया। उन्होंने पहले ‘असहयोग आन्दोलन’ के समय में जेल गए कांग्रेस के सभी नेताओं को रिहा कर दिया। उसके बाद एक सर्वपक्षीय राजनीतिक परिषद की कार्यकारिणी पर मुस्लिम सदस्य की नियुक्ति को लेकर गतिरोध पैदा हो गया। जिन्ना का कहना था कि मुस्लिम सदस्य की नियुक्ति का अधिकार केवल मुस्लिम लीग को है। इसके अतिरिक्त परिषद को सहयोग देने के लिए जिन्ना ने शर्त रखी कि गवर्नर जनरल के समान मुस्लिम सदस्यों को भी निषेधाधिकार मिलना चाहिए। अंततः लगातार पांच बैठकें होने के बाद 14 जुलाई को वायसराय ने परिषद के असफलता की घोषणा कर दिया।
इस प्रकार शिमला परिषद असफल हो गया। लेकिन परिषद की असफलता से पाकिस्तान की नींव पक्की हो गई तथा मुस्लिम लीग और जिन्ना की शक्ति बढ़ गई।
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