मकर संक्रांति
पूस की ठंडी-ठिठुरी रातें,
और संक्रांति की आहट।
लोहड़ी,बिहू, उगादि, पोंगल,
देते सब द्वारों पर दस्तक।
मन प्रफुल्लित हो उत्सव की
तैयारी में जुट जाता है।
तिल,गुड़,खिचड़ी,दान-धर्म
की महत्ता समझ पाता है।
सूर्यदेव दक्षिणायन छोड़,
उतरायण में प्रस्थित होते हैं।
रुके हुए सभी शुभ कार्य
इसी दिन से प्रारंभ होते हैं।
भीष्म पितामह ने देह त्यागी,
माँ यशोदा ने व्रत अनुष्ठान किया।
गंगा माँ ने अवतरित होकर
सगर पुत्रों को मोक्ष प्रदान किया।
उत्तर, दक्षिण, पूर्व, पश्चिम
कृषकों का उत्सव है यह।
माँगे प्रभु से संपन्नता कि
बना रहे वो कृपामय।
रंग-बिरंगी पतंगें द्योतक
आशा और विश्वास की।
आने वाले वर्ष में सफलता
छुए ऊँचाई आकाश की।
तम मिटा आलोकित करता मन
आध्यात्मिक अनुभूति से भरता।
प्रणम्य है यह पर्व हमारा
अन्तस हिम में अग्नि भरता।
आप सभी को मकर संक्रांति की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।
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