मकर संक्रांति पर कविता : डॉ. मंजु रुस्तगी

Dr. Mulla Adam Ali
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makar sankranti poetry in hindi

मकर संक्रांति

पूस की ठंडी-ठिठुरी रातें, 

और संक्रांति की आहट। 

लोहड़ी,बिहू, उगादि, पोंगल, 

देते सब द्वारों पर दस्तक। 


मन प्रफुल्लित हो उत्सव की 

तैयारी में जुट जाता है। 

तिल,गुड़,खिचड़ी,दान-धर्म 

की महत्ता समझ पाता है। 


सूर्यदेव दक्षिणायन छोड़, 

उतरायण में प्रस्थित होते हैं। 

रुके हुए सभी शुभ कार्य 

इसी दिन से प्रारंभ होते हैं। 


भीष्म पितामह ने देह त्यागी, 

माँ यशोदा ने व्रत अनुष्ठान किया। 

गंगा माँ ने अवतरित होकर 

सगर पुत्रों को मोक्ष प्रदान किया। 

उत्तर, दक्षिण, पूर्व, पश्चिम 

कृषकों का उत्सव है यह।

माँगे प्रभु से संपन्नता कि 

बना रहे वो कृपामय। 


रंग-बिरंगी पतंगें द्योतक 

आशा और विश्वास की। 

आने वाले वर्ष में सफलता 

छुए ऊँचाई आकाश की।


तम मिटा आलोकित करता मन 

आध्यात्मिक अनुभूति से भरता। 

प्रणम्य है यह पर्व हमारा 

अन्तस हिम में अग्नि भरता।

manju rastogi poetry in hindi

डॉ. मंजु रुस्तगी,
हिंदी विभागाध्यक्ष(सेवानिवृत्त)
वलियाम्मल कॉलेज फॉर वीमेन 
अन्नानगर ईस्ट, चेन्नई
9840695994

आप सभी को मकर संक्रांति की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।
🙏

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