Poem on Republic Day
🇮🇳🇮🇳 गणतंत्र दिवस 🇮🇳🇮🇳
गणतंत्र दिवस मात्र दिवस नहीं
हम सब का गौरव पर्व है
मुक्त किया हमें दासत्व से
ऐसे जियालों पर हमें गर्व है।
दुख यही खो गया गण
तंत्र रह गया बाकी
गूंज रहे सियासी गलियों में
चाटुकारिता मंत्र बेबाकी।
शौर्य का रचा स्वर्णिम इतिहास
संप्रभु गणराज्य दिया हमें
दायित्व गहन हो जाता है कि
इसके प्रति हम सजग रहें।
भूले सिंदूर, ममता और राखी
सीमा पर पर्वत से अचल रहे
ओढ़ तिरंगा वहीं सो गए
एक पग भी पीछे न हटे।
हम रहें सुरक्षित अपने घरों में
यह सोचकर सर्वस्व हार दिया
कोटि नमन उन वीर सुतों को
देश पर स्वयं को वार दिया।
केवल उत्सव नहीं है यह
समय है आत्मचिंतन का
करें सहयोग देश विकास में
चाहे हो अकिंचन गिलहरी सा।
धर्मचक्र सत्य, अहिंसा का
चलता रहे यूं ही सतत
हिंद के समृद्ध इतिहास को
सदैव रखें हम जीवंत।
मर्यादित रह राम बने हम
कृष्ण बने और कर्म करें
भारत पहुंचे फिर से शिखर पर
ऐसा मानव धर्म करें ।
ऋणी रहे सदा हम उनके
पुनीत शहादत का रखें मान
गणतंत्र बनाए रखें अक्षुण्ण
देकर कर्तव्यों का अवदान।
डॉ. मंजु रुस्तगी
* Republic Day 2025 Special: एक सैनिक के मन के भाव (कविता)