नर्तन करे अनंग
शहरों की गलियों में अब कहाँ होती पीली छाँव
ऋतुराज का ठौर है केवल सौंधा, प्यारा गाँव।
बूढ़े दरख़्त जहाँ देते कोंपल को थाती में संदेश
अर्चन होवे माँ वाणी का,समझो आया वसंत विशेष।
जब कपोल पलाश सम लगे दहकने, मन में उठे उमंग
मादक मलय सिहराये तन को, नर्तन करे अनंग।
मन प्रमुदित रहे, तन उल्लसित रहे,आम्र बौर बौराए
सुगंधित सुमन परिधान पहन, धरा विकसे, मुसकाए।
कोयल कूके पल्लव दल में, सर्वांग प्रकृति हुलसे,
खेतों में सरसे सोना सरसों, जौ, गेहूँ बाली किलके।
राग-वसन्त गूँजे चहु ओर, फाल्गुन,चैत प्रहरी
जीवन का है सूत्र संतुलन, यह शिक्षा देता गहरी।
मन बासंती, तन बासंती, कण-कण हुआ वसंत
ऋतुएँ चाहे बदले चोला, रहे हृदय वसंत अनंत।
डॉ. मंजु रुस्तगी हिंदी विभागाध्यक्ष(सेवानिवृत्त) वलियाम्मल कॉलेज फॉर वीमेन अन्नानगर ईस्ट, चेन्नई |
* एक सैनिक के मन के भाव (कविता)
आप सभी को बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं
Happy Basant Panchami