International Mother Language Day 2023
अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस क्यों मनाया जाता है?
नमस्कार,
21 फरवरी यानी अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस... आप सभी को अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस की अग्रिम बधाई एवं शुभकामनाएँ.. आज हम बात करने जा रहे हैं कि अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस क्यों मनाया जाता है तो आइए सबसे पहले हम मातृभाषा क्या है इसे जानते हैं---
मातृभाषा यानी जन्म लेने के पश्चात मानव जो प्रथम भाषा सीखता है उसे उसकी मातृभाषा कहते हैं। यह भाषा सीखने के लिए उसे कहीं बाहर नहीं जाना पड़ता। यह विरासत की तरह घर के परिवेश और लोगों द्वारा उसके अंदर स्वयमेव समाहित होती जाती है और यही उसकी सामाजिक और भाषाई पहचान बन जाती है। मातृभाषा हमारे संस्कारों की संवाहक होती है, हमें राष्ट्रीयता से जोड़ती है और देशप्रेम की भावना प्रेरित करती है। मातृभाषा के बिना किसी भी देश की संस्कृति की हम कल्पना भी नहीं कर सकते।
लेकिन कई बार मानव समाज में मानवाधिकारों के हनन के साथ-साथ मातृभाषा के उपयोग को गलत बताया जाता है। अंतर्राष्ट्रीय मातृदिवस मनाने के पार्श्व में भी यही कारण निहित है । 1947 में भारत विभाजन के बाद पाकिस्तान ने पूर्वी पाकिस्तान में उर्दू को राष्ट्रीय भाषा घोषित कर दिया था लेकिन इस क्षेत्र में बंगाली बोलने वालों का आधिक्य था और 1952 में जब अन्य भाषाओं को पूर्वी पाकिस्तान में अमान्य घोषित किया गया तो ढाका विश्वविद्यालय के छात्रों ने आंदोलन शुरु किया और इस आंदोलन को रोकने के लिए पुलिस ने छात्रों और प्रदर्शनकारियों पर गोलियाँ चलानी शुरु कर दीं जिसमें कई छात्रों की मृत्यु हो गई। अपनी मातृभाषा के अधिकार को प्राप्त करने के लिए शहीद हुए इन छात्रों की याद में स्मृति दिवस मनाया जाता है।
जनवरी 1998 में एक बांग्लादेशी कैनेडियन नागरिक रफीकुल इस्लाम में संयुक्त राष्ट्र के जनरल को पत्र लिखकर दुनिया की लुप्त होती भाषाओं को बचाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाए जाने के लिए आग्रह किया और इसके लिए 21 फरवरी के दिन का प्रस्ताव रखा। तत्पश्चात विश्व में भाषाई और सांस्कृतिक विविधता और बहुभाषिकता के संरक्षण और संवर्धन हेतु 19 नवंबर 1999 को यूनेस्को ने दुनिया का ध्यान अपनी और आकर्षित किया और 2000 से प्रतिवर्ष 21 फरवरी को अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाने का निश्चय किया गया। यूनेस्को द्वारा अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस की घोषणा से बांग्लादेश के भाषा आंदोलन दिवस को अंतरराष्ट्रीय स्वीकृति मिली जो बांग्लादेश में सन 1952 से मनाया जाता रहा है। बांग्लादेश में इस दिन राष्ट्रीय अवकाश होता है। यहाँ के लोग शहीद मीनार पर पुष्प समर्पित करते हैं और इसे उत्सव की तरह मनाते हैं।
विश्व में ऐसी कई भाषाएँ और बोलियाँ हैं जो आज विलुप्ति की कगार पर हैं और उनका संरक्षण करना अत्यावश्यक है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार दुनिया भर में बोली जाने वाली छह हजार भाषाओं में से लगभग हर दो सप्ताह में एक भाषा गायब हो जाती है जो सांस्कृतिक और बौद्धिक विरासत को नष्ट कर देती है। यूनेस्को का यह मानना है कि बचपन से ही मातृभाषा के आधार पर बच्चों को शिक्षा देनी चाहिए क्योंकि यही शिक्षा सीखने की नींव है। भारत में भी नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अंतर्गत इस विषय पर कदम उठाए गए हैं।
दुनिया भर में अपनी भाषा संस्कृति के प्रति लोगों में रुचि जागृत करना और जागरूकता फैलाना ही अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस का उद्देश्य है। इस दिवस पर संयुक्त राष्ट्र का शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन और संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियाँ भाषाई और सांस्कृतिक विविधता को बढ़ावा देने वाले कार्यक्रमों में भाग लेती हैं। साथ ही साथ लोगों को एक से अधिक भाषा सीखने और अपनी मातृभाषा के बारे में अपने ज्ञान को बनाए रखने के लिए प्रोत्साहित करती हैं।
स्पेन के बार्सिलोना में लिंगुआपाक्स इंस्टिट्यूट प्रत्येक वर्ष इस दिन लिंगुआपाक्स पुरस्कार प्रदान करता है। यह उन लोगों के लिए है जिन लोगों ने भाषाई विविधता या बहुभाषी शिक्षा के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य किया है। प्रत्येक वर्ष की भाँति इस वर्ष भी एक विषय का चयन किया गया है और 21 फरवरी 2022 के अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस का विषय है-- *बहुभाषी शिक्षा के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग : चुनौतियां और अवसर* बहुभाषी शिक्षा को आगे बढ़ाने और सभी के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षण और सीखने के विकास का समर्थन करने के लिए प्रौद्योगिकी की संभावित भूमिका पर चर्चा की जाएगी।
भारतीय संविधान निर्माताओं की अभिलाषा थी कि स्वतंत्रता के पश्चात भारत का शासन अपनी भाषाओं में चले ताकि आम जनता देश में होने वाले परिवर्तनों और प्रगति से अवगत रहे तथा समाज में आपसी सामंजस्य स्थापित हो सके। परंतु दुखद है कि अभी तक ऐसी स्थिति नहीं बन पाई है। भारतवर्ष में हर प्रांत की अलग संस्कृति है, एक अलग पहचान है, उनका अपना एक विशिष्ट भोजन, संगीत और लोकगीत है। इस विशिष्टता को बनाए रखना, इसे प्रोत्साहित करना ही अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाने का मुख्य उद्देश्य है। अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस इस बात की याद दिलाता है कि भाषा हमें कैसे जोड़ती है, हमें सशक्त बनाती है और दूसरों को हमारी भावनाओं को संप्रेषित करने में हमारी सहायता करती है। अंत में इतना ही कहना चाहती हूँ--
भाषा देती निज पहचान,
भाषा देती जीवन ज्ञान,
बोली चाहे कोई भी बोलें
मातृभाषा में बसते प्राण।
* मातृभाषा का योगदान : प्रो. अन्नपूर्णा .सी
* हिंदी भाषा की विश्वव्यापकता : डॉ. ऋषभदेव शर्मा
* World Hindi Day 2023: 10 जनवरी को ही क्यों मनाया जाता है विश्व हिंदी दिवस?