Partition Srory by Swayam Prakash
‘पार्टीशन’ : स्वयं प्रकाश
स्वयं प्रकाश की कहानी ‘पार्टीशन’ है। लेखक के ही शब्दों में ‘पार्टीशन’ एक सच्ची कहानी है। कुर्बान भाई का वास्तविक नाम भी कुर्बान भाई था। ‘बाबरी-विध्वंस’ के बाद अल्पसंख्यकों के मन में अराजकता, सूनपात, खोखलापन घर कर गया। संजीव के शब्दों में कहे तो ‘अविश्वास की ओर धकेले गए मनुष्य मानसिक खोखलापन, अराजकता एवं सूनेपन के अलावा हमेशा दिन-रात आतंक के साये में दिन बिताने को मजबूर हुए।“ अपने और अपनी मिट्टी से परायेपन जैसी अवस्था को स्वयं प्रकाश अपनी ‘पार्टीशन’ नामक कहानी के जरिए प्रस्तुत करते हैं।‘ कुर्बान भाई मौलाना आजाद का शैदाई है। विभाजन के वक्त उसका अपना परिवार, सगे-संबंधी, बपौती व संपत्ति सब खो गए। फिर भी वह अपने त्रासद अतीत को इंसानियत और शराफत के बल पर लाँघता है। कहानी में एक ओर ईमानदारी, शराफत और मानवता के बल पर सभी अमानवीय कार्यों, यंत्रणाओं और कष्टों की भूल-भुलैया से उभरकर मनुष्य का ओहदा प्राप्त करने की कुर्बान भाई की क्षमता के कारण उसे धमकियां और फरियादें मिलने लगी, “पॉलिटिक्स अपने लोगों के लिए नहीं है, समझे। चुपचाप सालन-रोटी खाओ, अल्लाह का नाम लो। चैन से जीना है तो इन लफड़ों में मत पड़ो। अब यहां रहना हो तो.. पानी में रहकर मगरमच्छों से बैर करने से क्या फायदा?” वकील ऊखचंद अपने योजना गाड़ीवान गोम्या के द्वारा अमल में लाता है। कुर्बान भाई ने अग्निपरीक्षा जीतकर जो अपनापन, आत्मविश्वास, सहजता अर्जित किए हैं उन्हें योजनाबद्ध तरीके से ऊखचंद ने मिटा दिया।“
तिल-मिल टूटते कुर्बान भाई को झटका लगता है गोम्या से। जब वह उन्हें कुर्बान भाई के बजाय ‘मियाँ’ कहता है... “एक ही मिनट में वह कुर्बान भाई से मियाँ कैसे बनगए? कई अग्नि-परीक्षाओं से गुजरकर जो सम्मान, प्यार अर्जित किया... रोज कीमत चुकाकर कस्बे में थोड़ा सा अपनापन... थोड़ी-सी सामाजिक सुरक्षा... थोड़ा-सा आत्मविश्वास... थोड़ी-सी सहजता उन्होंने अर्जित की थी... तिल-मिल करके बना पहाड़ एक फूंक में उड़ गया।“ वे सोचते हैं कि “अपनी मेहनत का खाते हैं? फिर भी ये लोग हमें अपना बोझ ही समझते हैं।“ वो सोचने लगता है कि, विभाजन के वक्त पाकिस्तान चले जाते... लाख गुरबत बर्दाश्त कर लेते... कम से कम ऐसी अच्छी बात तो नहीं सुननी पड़ती। धिक्कार है! लानत है ऐसी जिंदगी पर... या अल्लाह।“ हिंदुत्ववादियों को क्या पता कि कुर्बान भाई के अंदर क्या टूटता है और बुद्धिजीवी कहते हैं... पार्टीशन हुआ था! हुआ था नहीं, हो रहा है, जारी है।“
कहानी में लोगों के बीच हो रहे मनो-सामाजिक-विभाजन का चित्र खींचा गया है। यह कहानी सांप्रदायिक मानसिकता को जड़ों से; सांस्कृतिक, ऐतिहासिक दृष्टि के साथ; उखाड़ने की कोशिश करती है। हमारे माननीय, सांस्कृतिक जीवन-मूल्यों का जो विघटन हो रहा है, विभाजन हो रहा है, वह निरंतर जारी है। इसमें दंगा या हिंसा और बलात्कार जैसी चीजें नहीं है। आम लोगों के दैनंदिन जीवन, सोच और व्यवहार में जो जहर घुला हुआ है- यह उसकी कहानी है। उस जहर के कारण कुर्बान भाई; जो एक बेहतरीन इंसान है; एक दिन यह सोचने पर मजबूर हो जाते हैं कि- वे मुसलमान हैं।“
सांप्रदायिकता विषय पर स्वयं प्रकाश ने कई महत्वपूर्ण कहानियों का निर्माण बड़ी कुशलता एवं सफलतापूर्वक किया है।
संदर्भ;
1. सं. एन. मोहनन- समकालीन हिंदी कहानी
2. स्वयं प्रकाश- दस प्रतिनिधि कहानियाँ
3. नीरज खरे- बीसवीं सदी के अंत में हिंदी कहानी
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