सरहद के इस पार : नासिरा शर्मा
समकालीन सांप्रदायिक संदर्भों में विषय के रूप में ग्रहण करके लिखी गयी नासिरा शर्मा की कहानी ‘सरहद के इस पार’ भारतीय मुसलमानों पर पाकिस्तान निर्माण के दीर्घकालीन प्रभाव की अभिव्यक्ति से संबंधित है। बँटवारे के साथ मिली आजादी को अर्ध शताब्दी से भी अधिक समय हो गया है, लेकिन भारतीय मुसलमानों को पाकिस्तान निर्माण से जन्मी समस्याओं से आज भी पूर्ण रूप से मुक्ति नहीं मिल सकी है। कहानी इस समस्या की उद्घाटित करते हुए कारणों का भी संकेत करती है। दरअसल विभाजन ने मुस्लिम समाज की संरचना पर प्रहार करते हुए संबंधों के स्तर सबसे अधिक प्रभावित करती किया। आबादी के बंटवारे ने सामाजिक असंतुलन पैदा करके ऐसी समस्याएँ पैदा कर दी है जो अपने प्रभाव में कहीं अधिक घातक सिद्ध हो रही थी। रोहन की प्रेमिका सुरैया से उसका अलगाव सामाजिक असंतुलन का ही परिणाम था, जो पागलपन की स्थिति में ला देता है।“ “सुरैया का विवाह पाकिस्तान में किसी बड़े अफसर के साथ हो रहा था इसलिए वह चुप थी। शादी के बाद वह सरहद के उस पार चली जायेगी। सरहद के इस पार किसके दिल पर कौन-सी बिजली गिरेगी वह इन सारे एहसानों से पूरी तरह आजाद होगी।“
मुसलमानों के प्रति हिन्दुओं के एक वर्ग की संकीर्ण मानसिकता आज भी मुस्लिम समाज को प्रभावित कर रही है। उनकी भारतीयता पर शक किया जाता है। नारायण जी फिकरा करते हुए कहते है कि, “रहते है हिंदुस्तान में, सपने देखते है पाकिस्तान के।“ कहानीकार इस मानसिकता के प्रभाव को रेखांकित करते हुए इसके विरोध में सवाल भी उठाती है। रोहन इस तरह के फिकरे सुनकर आक्रोशित होकर कहता है, “साले कहते हैं कि तुम Pakistani हो, जाकर पूछो उनसे की तुम्हारे बाप-दादा कहा से है?” कहानी विभाजन को लेकर इकबाल की द्वीराष्ट्रवादी सिद्धांत को भी विवेचन-विश्लेषित करते हुए कहानी को तदयुगीन परिस्थितियों से सीधे जोड़ती दिखाई देती है।
संदर्भ;
हस्तलिखित प्रति नासिरा शर्मा- सरहद के इस पार
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