सभी बच्चे सर्दी की छुट्टियों में घर जाने की तैयारी में लगे हुए थे। छुट्टियों में कहाँ -कहाँ घूमेंगे ये भी प्लान कर रहें थें , किसी को भी फुर्सत न थी रूही के लिए। पिछले साल की तरह इस साल भी सर्दियों में रूही यही हॉस्टल में रहने वाली थी अपर्णा मैम के साथ। पहाड़ों का स्कूल है तो सर्दि की छुट्टियाँ लगभग दो महीने की होती है ।
रूही अपनी सहेलियों के कमरे में बैठी थीं
“मैं तो इस बार जयपुर घूमने जाऊंगी पहले ही कह दिया था मम्मी को!”
बड़ी-बड़ी आंखें कर रोहिणी ने बाकी लड़कियों से कहा।
“अरे,वहा ! मैं तो इस बार मामा के घर हैदराबाद जाऊंगी।”
पास बैठी दूसरी लड़की ने कहा। तभी रोहिणी ने पूछा
“अरे! रूही तू इस बार भी नहीं जाएगी घर?”
सर हिलाते हुए रूही ने ना में जवाब दिया।
रुही की माँ का दो साल पहले बीमारी के कारण देहांत होगया था और उसके पिता फौज में थे उनका हमेशा ट्रांसफर सीमावर्ती इलाकों(बॉर्डर)में ही होता रहता था, इसलिए उनकी छुट्टियाँ और रूही की छुट्टियाँ कभी मैच ही नहीं करती थीं । बिन माँ की बच्ची को हॉस्टल में डाल दिया कि देखरेख अच्छी होगी घर पर चाची अपने बच्चों के साथ इसका ख्याल शायद ना रख पाएँ ।
“तेरे पापा को फिर छुट्टी नहीं मिली? ”
“नहीं!”
“कोई नहीं हम तुझे रोज फोन करेंगे और वापस आते वक्त तेरे लिए ढेर सारी तस्वीरें भी लाएंगे!”
रोहिणी बड़ी समझदारी से अपनी बेस्ट फ्रेंड का मन बहलाती है।
और सभी “हाँ हाँ!” कहते हुए रूही के ऊपर गिर पड़ती हैं। रूम नंबर 304 में जोर की हँसी गूंज उठती है।
सभी अपने-अपने घर चले गए।रह गई रूही,अपर्णा मैम,रोजी आंटी और कुकअंकल । रोजी आंटी रूही के साथ उसके कमरे में सोती और उसके काम भी कर दिया करती थी, रूही मात्र आठ साल की थी।
अपर्णा मैम हॉस्टल इंचार्ज थी, वो रूही को अपने बच्चे की तरह ही प्यार करती थीं । अपर्णा मैम को भी अचानक कुछ दिनों के लिए घर जाना पड़ा ।
एक दिन दोपहर रोजी आंटी तैयार होकर रूही के कमरे में आई।
“मैं जरा नीचे बाजार से अपनी दवाइयाँ ले आती हूँ,शाम तक वापस आ जाऊंगी तुम्हें कुछ चाहिए तो कुक अंकल से मांग लेना।”
“ठीक हैआंटी, पर तुम जल्दी आ जाना।”
“हाँ - हाँ!”
और वह उदास आँखो से आंटी को जाते देखती रही।
रूही अंधेरा होने तक आंटी का इंतजार करती रही।खाने का वक्त होते ही कुकु अंकल खाना कमरे में ही लेकर आए और बड़े प्यार से कहा “रूहीहीही रूही बेटा लो खाना खा लो।”
रूही कुक अंकल की आवाज सुनते ही डर से सिमट गई ।
तभी फोन की घंटी बजी और रूही दौड़ कर ऑफिस की तरफ भागी।
“हेलो! कौन आंटी कब आओगी तुम? "
दूसरी तरफ से जवाब आया।
“अँधेरा होने की वजह से कोई सवारी ऊपर के लिए मिल नहीं रही है, मैं कल सुबह- सुबह आ जाऊंगी। "
रूही फोन रख जैसे घूमती है वह डर जाती है क्योंकि ठीक उसके पीछे कुक अंकल खडे थें।
“चलो खा लो!" और वह उसके कंधे पर हाथ रखते हुए उसे ले जाते हैं ।
रूही अपने कमरे में चादर से खुद को पूरा ऊपर से नीचे तक ढके हुए सोने की कोशिश करती है, तभी उसके कमरे का दरवाजा किसी ने खोला और वह डर से चादर को और जोर से पकड़ लेती है।
“रूही!सो गई क्या!”
“आवाज तो आंटी की है।” आवाज पहचानते ही रूही आंटी से लिपट जाती है ।
“अरे क्या हुआ! एक बाइक वाला आ रहा था तो मैं उसके साथ आ गई,वरना सुबह तक का इंतजार करना पड़ता।” बड़बड़ाती हुई आंटी उसके बिस्तर से खिलौने हटाती है।
रूही इससे पहले आंटी को देख इतनी ख़ुश कभी नहीं हुई थी.
अगले दिन सुबह रूही बहुत शांत थी। आंटी के पीछे पीछे ही घूम रहती थी
“अरे! तुझे क्या हुआ है, क्यों मेरे पीछे-पीछे घूम रही है।”आंटी ने रूही से पूछा। पर रूही ने कोई जवाब न दिया।
“जानती है रूही,आज मैम भी वापस आ रही हैं,उनका कमरा भी ठीक करना है, आज बहुत काम है मुझे।”
“अच्छा!" मैम का आना सुन रूही की आँखों में चमक सी आ गईं।
माँ का आँचल छूटने के बाद अगर किसी की उंगली पकड़ी थी तो वह अपर्णा मैम थी।
ज़ब से सुना था तबसे दरवाजे पर टकटकी लगाएँ हुए थी। मैम को देखते ही दौड़कर उनसे लिपट गईं।
“अरे!क्या हुआ, कैसी हो रूही?”
मैम ने प्यार से उसके खुले बालो को सहलाते हुए पूछा।
“जाने क्या हुआ है इसे,सुबह से मेरे पीछे-पीछे घूम रही है ना कुछ बोल रही है ना खेल रही है लगता है भुत देख लिया है।”
आंटी बड़बड़ती हुई मैम का सामान लिए सीढ़ियों पर आगे और पीछे मैम और रूही चढ़ते हैं।
“अरे!ला, मुझे दे।” सामने से आकर कुक अंकल आंटी के हाथों से सामान ले लेते हुए कहता है। उसको देखते ही रूही जो मैम के साथ चल रही थी वह पीछे चलने लगती है। मैम को थोड़ा अजीब लगा
“हमेशा सबसे आगे उछलती हुई सीढियाँ चढ़ने वाली आज सबसे पीछे क्यों है!”
शाम को मैम और रूही बैठे टीवी देख रहे थें तभी मैम के दिमाग में सुबह वाली घटना आई उन्होंने रूही को अपने पास बुलाया और कहा
“तुम्हें आज एक नई बात बताऊँ !"
“हाँ! बोलिए। "
“आज मैं तुम्हें गुड टच और बैड टच के बारे में बताऊंगी।”
“वह क्या होता है!”
तभी मैम ने रूही के सर पर किस किया “कैसा लगा तुम्हें?”
“अच्छा लगा! मेरे पापा मुझे ऐसे ही प्यार करते हैं।”
“हाँ! और तुम्हारी मम्मी तुम्हे कैसे प्यार करती थी।”
“मम्मी तो गालो पर किसी किया करती थी।” रूही ने गालों पर उँगली रख कर बताया।
“तो इसे ही गुड टच कहते हैं!”
ज़ब किसी का छूना प्यार करना हमें अच्छा लगे तो उसे गुड टच कहते हैं।”
“जैसे मम्मी पापा का।”रूही ने चहकते हुए कहा।
“और बैड टच क्या होता है मैम?”
रूही का चेहरा उतर सा गया इस प्रश्न को पूछते हुए।
“जब कोई हमें ऐसी जगह टच करें जो हमें अच्छा ना लगे, या ऐसी बातें करें जो अच्छा न हो उसे बैड टच कहते हैं।”
मैम ने ध्यान दिया रूही फिर से सहम गई थी।
“मम्मी के अलावा कोई भी हमारे प्राइवेट पार्ट को टच नहीं कर सकता,डॉक्टर भी मम्मी पापा के सामने ही चेकअप करतें है!”
“तो बैड अंकल मुझे बैड टच करतें हैं?”
“कौन से अंकल?”
“वही कुक बैड अंकल!”
यह सुन मैम के होश उड़ गए “कैसे,कहाँ टच किया तुम्हें?”
“ज़ब आप घर गई थी तो उन्होंने मुझे पकडकर कहा मैं नहला देता हूँ तुम्हें, मुझे अच्छा नहीं लगा !”
इसके आगे मैम ने रूही से कुछ नहीं पूछा ।
“जब भी हमें कोई बैड टच करें जो हमें अच्छा नहीं लगता, तो हमें तुरंत चिल्लाना चाहिए और तुरंत जो भी आसपास हो उन्हें बताना चाहिए।”
तब तक आंटी चाय लेकर मैम के कमरे में आई और मैम फोन लेकर कमरे से बाहर चली गई।
पहले तो पुलिस को फोन किया फिर उसके बाद हॉस्टल सिक्योरिटी गार्ड को फोन किया बोला “कुक जहाँ कहीं भी हो उसे पकड़ कर रखो!"
पुलिस के आते ही कुक जो अभी एक महीने पहले ही यहाँ आया था। उसे पुलिस के हवाले कर दिया किसी को कारण भी पता न चला और आंटी को भी चेतावनी दि गईं दोबारा वह इस तरह बाहर गई तो नौकरी से हाथ धोना पड़ेगा।
अगली सुबह रूही को कुक कहीं भी नजर न आया। रूही अपने छोटे से संसार में खुद को आजाद और सुरक्षित महसूस कर रही थी।
अपर्णा मैम ने प्रिंसिपल सर से आज्ञा लेकर रूही को लेकर नैनीताल घुमने चली गईं, जिससे बाल मन का घाव भी भर जाए और सखियों से बतियाने को उसके पास भी कुछ हो।
©नीरू सिंह