बुद्धिसेन शर्मा का साहित्य हिन्दी साहित्य सम्मेलन और हिन्दुस्तानी एकेडमी सहेजें
ओह!
वरिष्ठ कवि बुद्धिसेन शर्मा का निधन स्तब्ध कर गया!
बुद्धिसेनजी से मुलाकातें तो थोड़ी ही रही हैं और ज़्यादातर १९९० के पहले की हैं, पर बहुत ही आत्मीय! बाद में अपवाद स्वरूप ही मिलना हुआ! उनकी सक्रियता प्रेरित करती थी तो उनके कष्टप्रद दिनों की खबरें दुखी कर जाती थीं। उनके जीवन का संघर्ष उनके मनोबल पर कभी हावी हुआ हो, मुझे याद नहीं आता,फिर भी उन्होंने अकेले भी लम्बा जीवन जिया। उनके साथ के बहुत सारे लोग एक-एक कर चले गये। जा़हिर है, उन्होंने अकेलेपन का भी लम्बा दौर जिया!
हिन्दी ग़ज़ल और कविता में भी, बुद्धिसेन शर्मा का अवदान बहुत महत्त्वपूर्ण है। इलाहाबाद के लेखकों-साहित्यकारों को उनके साहित्य को संरक्षित करने के लिये हिन्दुस्तानी एकेडमी और हिन्दी साहित्य सम्मेलन से विचार-विमर्श करके सौंप देना चाहिये कि ये दोनों ही संस्थाएँ बुद्धिसेन शर्मा के साहित्य को संरक्षित कर लें और परस्पर सहमति से बुद्धिसेन शर्मा का एक-एक संचयन निकालें। बुद्धिसेन शर्मा की जन्मतिथि तथा पुण्य-तिथि पर ये दोनों संस्थाए अपने स्तर पर स्वतन्त्र आयोजन भी कर सकती हैं। इससे बुद्धिसेन शर्मा की रचनाधर्मी-स्मृति सहज ही सहेजी और सुरक्षित रखी जा सकती है!
वयोवृद्ध आत्मीय बुद्धसेन शर्मा की स्मृति को सादर नमन्!
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