हारे हुए नेताजी की पहली होली! - मुकेश राठौर

Dr. Mulla Adam Ali
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हारे हुए नेताजी की पहली होली!

मुकेश राठौर

          त्योहार मनाने का मजा तभी है जब दिल बाग-बाग हो।दिल में अरमानों की होली जल रही हो तो बाहर की होली बड़ी बेरंग लगती है। नेताजी के साथ भी यही हुआ था। बड़ी उम्मीद थी कि अबकी बार हफ्ते भर पहले ही रंग-गुलाल उड़ जाएगा|वे होली से फारिग होकर ही होली मनाएंगे। क्योंकि उनकी सभाओं में जिस तरह भर पल्ले भीड़ उमड़ रही थी,उससे उम्मीद ही नहीं पक्का भरोसा था। लेकिन अब समझ आया कि भीड़ का भरोसा नहीं करना चाहिए। भीड़ भाई की, न बाप की,सिर्फ तुम कहते न जाने कब हो जाए 'आप' की। भीड़ ब्याह में आकर 'मान' के गीत गाकर चली जाती है। वही हुआ नेताजी कुर्सी पर बैठना चाहते थे और जनता ने घर बैठा दिया। वैसे घर बैठना बुरी बात नहीं। आराम से घर बैठना कौन नहीं चाहता?कवि गोपाल प्रसाद व्यास (Gopal Prasad Vyas) तो बाकायदा कहते भी है कि "इस दौड़-धूप में क्या रक्खा, आराम करो।" लेकिन नेताओं के लिए आराम(rest), हराम हैं, जब तक पार्टियां मार्गदर्शक मंडल में न बैठा दें, वे खड़े होने से पीछे नहीं हटते। मगर जनता ही अड़ा कर दें तो क्या कीजियेगा!

           आज धुलेंडी है। नेताजी अपने रंगमहल में उदास पड़े हैं|गोया हारे हुए नहीं मरे हुए हो। सात रंगों से सजा थाल जैसे उन्हें मुंह चिढ़ा रहा है। यादों की पोटली टटोलते हुए वे सोचते है कि कभी खुद बैंगन से थे। मुंह गुलाब जामुन भरा रहता। गोरों की तरह किसी से भी नील की खेती करवा लेते थे। खीसों में हरा रंग होता। सदावर हल्दी से पीले जर्हा। थ लाल रंग रंगे |यह स्पेक्ट्रमी जीवन 'बैंजानीहपीनाला' था। अब के बरस मतवर्षा न होने से उम्मीदों के आसमान में कहीं कोई इंद्रधनुष बनते नहीं दिख रहा। रंगों की घूमती डिस्क दिखना तो चाहिए सफेद लेकिन हाय री किस्मत क्लॉक-एंटीक्लॉक सिर्फ काली दिख रही।

        नेताजी ने हर योजना में जनता को पानी की बचत का हवाला देकर हमेशा सूखी होली खेली। जनता ने अबकी बार चुनाव में सूखी होली खेल ली। नेताजी सूखे रह गए। भिया भीगना चाहते हैं। मगर कैसे? वे विचारमग्न थे तभी बाहर हुल्लड़ सुनाई दिया। कुछ समझ पाते इससे पहले चुनाव में उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी रहे (अब विधायक) लादूराम जी मय चट्टों-पट्ठों के आ धमके। बुरा न मानो होली है|नेताजी तो ऑलरेडी बुरा मानकर बैठे थे।

       नेताजी ने दुखी मन से कहा-हम जनता हो गए। अब तो सूखी होली ही खेलनी पड़ेगी।

लादूराम जी ने उन्हें गले लगाकर कहा-अरे! यह क्या बात हुई। "नेता कभी जनता नहीं होता। "सड़ा सागौन भी साल से कम नहीं। हम आपको सूखा नहीं रहने देंगे नेताजी की आंखें चमक उठी। लादूराम जी ने बाल्टी से मग भर रंग नेताजी पर उड़ेलकर जाने लगे।

          नेताजी: कहां चल दिये?इस बात पर मुंह तो मीठा करते जाइए।

  लादूराम जी और कभी। एक्चुली क्या है कि आज पहली होली वाले मरे-गड़े और भी लोगों के घर रंग डालने जाना है।

मुकेश राठौर
मो: 9752127511
ईमेल: rmukesh1187@gmail.com
पता- भीकनगांव (मप्र) 451331

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