जाग ऐ! मानव : निधि 'मानसिंह'
जाग ऐ! मानव - निधि 'मानसिंह'
अब तो ठहर जा ऐ! मानव
और कब तक भागेंगा?
मृत्यु तांडव करती सिर पर
कब निद्रा से जागेंगा?
उठ! खड़ा हो अर्जित कर शक्ति
दें मात इस काल को।
विजय पताका लहरा दें
भेद के इस जंजाल को।
निधि 'मानसिंह'
कैथल हरियाणा
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