डॉ. पुनीत बिसारिया जी द्वारा स्वरचित दोहे आप सभी के समक्ष प्रस्तुत है, पढ़िए और प्रतिक्रिया दीजिए।
1. नाहक तोड़ा आइना, तुमने पत्थर मार।
पहले सूरत एक थी, अब प्रतिबिंब हजार।।
2. अग्निपुंज सम दाहता, दुस्सह दुखद वियोग।
जब कुछ भी भाता नहीं, समझो, प्रियतम रोग।।
3. जीवन ऐसा बैग है, जिसमें हैं दो रंग।
इक मीठा, इक तिक्त है, चलते दोनों संग।।
4. चिंदी चिंदी ज़िंदगी, लोग रहे हैं बाँच।
कपट केतली के तले, जले पाप की आँच।।
5. वर्तमान ने क्या दिया, आंसू दुःख संत्रास।
अब भविष्य से है बची, वर्तमान की आस।।
© डॉ. पुनीत बिसारिया
आचार्य एवं हिन्दी विभागाध्यक्ष
बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय, झांसी
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