गांधी जी की दांडी यात्रा
देवदूत या संत कोई थे या सदविचारों की थी आँधी, सत्पुरुष कलयुग के थे, मोहनदास करमचंद गाँधी।
साबरमती से चले कदम तो रुके नहीं फिर उनके पाँव
नमक कानून का करने विरोध, पहुँचे बापू दांडी गाँव।
अहिंसक क्रांति के अग्रदूत का यह था पहला-पहला चरण
जिसने सविनय आंदोलन से जागृत किया जनता का मन।
तट समुद्र पर, लवण हाथ ले, बोले थे तब गाँधी जी--
नींव हिला रहा हूँ इस से मैं, अंग्रेजों के साम्राज्य की।
विश्वास जगाया यह जन में, जीत सदा सत्य की होती,
अहिंसा से बढ़कर दुनिया में, दूजी कोई शक्ति न होती।
नमक आंदोलन, आग्रह सत्य का, *ब्रिटिश कर* को थी एक चुनौती,
बहा रहे जो स्वेद नून में, हक़ उनका, गैर की नहीं बपौती।
ज़मीं हिला दी गोरों की, आंदोलन था यह एक अनोखा मन में लगी धधकने सबके, सत्य, अहिंसा, शांति की ज्वाला।
स्वतंत्रता-समर में दांडी मार्च से, युद्ध का सूत्रपात हुआ आजाद भारत के उद्भव का मन में एक विश्वास जगा।
लेकिन बापू आज लील गई राजनीति अपना समृद्ध इतिहास
अपने ही अपनों पर कर रहे,स्वार्थ-द्वेष के भीतरघात।
सत्य की लाठी टूटी है, अहिंसा हुई है रक्तरंजित,
चिथड़े-चिथड़े हुए अमन के, घूम रहा जैसे विक्षिप्त।
गली-गली दुशासन घूमें, स्त्री-गरिमा को लूट रहे
पन्नों में इतिहास के बापू, तुम रह गए सिर्फ सिमट के।
तुम्हारे तीनों बंदरों को, इंसां ने ऐसे पाला है
मूक, बधिरता और अंधत्व को आचरण में ढाला है।
आओ बापू एक बार फिर फूँको मंत्र युवकर्णों में,
ताकि होकर सजग बढ़ें, ढल जाएँ तुम्हारे आदर्शों में।
भारत देश में रामराज्य का, स्वप्न तभी लेगा आकार, टूटेगी जब निष्क्रिय निद्रा, विरासत बापू की बने आधार।
हिंदी विभागाध्यक्ष(सेवानिवृत्त)
वलियाम्मल कॉलेज फॉर वीमेन
अन्नानगर ईस्ट, चेन्नई
9840695994
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