‘भाषा’ मानव जीवन का अभिन्न अंग हैं और अभिव्यक्ति का एक सशक्त माध्यम भी, क्योंकि भाषा सम्प्रेषण का संवहन करती है, सम्प्रेष्य को उसके गृहता तक पहुँचना ‘भाषा’ का मुख्य प्रयोजन है। हिंदी सहज, सरल और अभिव्यक्ति की मधुर भाषा है इसमें हमारी संवेदनाओं को अभिव्यक्ति करने की पूर्ण सामर्थ्य एवं लयबद्धता है। हिंदी ने अपनी मौलिकता एवं सुबोधता के बल पर ही राष्ट्र की संस्कृति और साहित्य को जीवंत बना रखा है। अपने विशिष्ट गुण के कारण वह अनेकता के होते हुए भी राष्ट्र को एकता के सूत्र में बांधे हुए हैं। अनेकता में एकता भारत का आश्चर्यजनक सत्य हैं।
संचार माध्यम के रूप में हिंदी का प्रयोग कोई नई बात नहीं है, अभिव्यक्ति की क्षमता पाते ही, जन-कथा एवं पुराण कथा के रूप में हिंदी जनसंचार का माध्यम बन गई थी। भारतीय नेता हिंदी की शक्ति को समझते थे, इसलिए उन्होंने जनसंचार के विभिन्न माध्यम, रंगमंच, प्रकाशन, प्रसारण, फिल्में, जनसभा संबोधन सभी में हिंदी का व्यापक प्रयोग कर विदेशी शासन के विरुद्ध सशक्त जान आंदोलन चलाया था।
ज्ञान, अनुभव संवेदना, विचार, अभिनव परिवर्तनों की साझेदारी ही संचार है। जनसंचार, साधारण जनता के लिए होता है। इससे संदेश तीव्रतम गति से गंतव्य तक पहुँचता है। इसका रूप लिखित या मौखिक हो सकता है। इसके द्वारा जनसामान्य की प्रतिक्रिया का पता चलता है एवं इसका प्रभाव बहुत गहरा होता है।
हिंदी की सम्प्रेषण क्षमता अतुलनीय है। सम्प्रेषण हमारे वातावरण के साथ शारीरिक, मानसिक और सामाजिक स्तर पर एक प्रकार की अन्तःक्रिया है। मीडिया के रूप में प्रचलन में है। प्रिंट मीडिया। दूसरा है- इलेक्ट्रॉनिक मीडिया। आजकल हिंदी का प्रसार वैश्विक व्यवसायीकरण के कारण निरंतर हर तरफ हो रहा है एवं संख्या बल के आधार पर हिंदी आर्थिक एवं वाणिज्यिक कार्यों की भाषा बनती जा रही हैं, विश्व भाषा बन रही है।
जनसंचार के सभी माध्यमों में हिंदी ने मजबूत पकड़ बना ली है। चाहे वह हिंदी के समाचार पत्र हो, रेडियो हो, दूरदर्शन हो, हिंदी सिनेमा हो या विज्ञापन हो सर्वत्र हिंदी छायी हुई है। प्रिंट मीडिया में समाचार पत्र एवं पत्रिकाएं आती है। स्वतंत्रता के बाद समाज में राजनैतिक जागृति, सामाजिक, धार्मिक, आपराधिक, आर्थिक गतिविधियों एवं घटनाओं के प्रति जन सामान्य की जिज्ञासा में वृद्धि हो रही है। प्रिंट मीडिया ने भारत स्वतंत्रता आंदोलन को हिंदी के माध्यम से बहुत गति प्रदान की थी। स्वतंत्रता के बाद हिंदी को राजभाषा घोषित करने के कारण हिंदी समाचार पत्र एवं पत्रिकाओं का निरंतर प्रसार बढ़ता जा रहा है।
पत्रिकाओं ने समाज में साहित्यिक चेतना सम्प्रेषित की है। अधिकांश समाचार पत्रों में पृथक से साहित्यिक पृष्ठों के प्रकाश द्वारा हिंदी साहित्य की विभिन्न विधाओं में श्रेष्ठ रचनाओं का प्रकाश किया जा रहा है। विदेशों में सभी प्रमुख शहरों से हिंदी पत्रिकाएं निरंतर छपती रहती है। भारत लगभग १३० करोड़ की जनसंख्या वाला यह विशाल और अत्यंत प्राचीन राष्ट्र निर्धन समुदायों के देश है। जिनके लिए अधुनातन इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के उपकरणों का, यांत्रिक सेवाओं का व्यय-भार झेलना लगभग असंभव ही बना रहेगा। उनकी सूचना संबंधी समस्त आवश्यकताओं एवं अधिकारों की भरपाई अखबार ही करते रहेंगे। प्रिंट मीडिया ही उन्हें लोकतांत्रिक अधिकार एवं जानकारी प्रदान करेगा। अखबार आज भी सस्ते हैं, भविष्य में भी सस्ते रहेंगे। आज भी इनकी पहुंच सर्वहारा वर्ग के उस आखिरी आदमी तक है, जो सूचना पाने की पिपासा में पंक्ति के आखरी छोर पर खड़ा है और भविष्य में भी आखरी बिंदु के अंत तक। यदि सूचना पहुँचाने का कार्य कोई बखूबी कर सकेगा तो वे अखबार ही होंगे। अर्थात सूचना सम्प्रेषण का कोई सस्ता और सर्वसुलभ साधन है, तो वह प्रिंट मीडिया ही है, अखबार और पत्र-पत्रिकाएँ ही है।
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में आकाशवाणी, दूरदर्शन एवं इंटरनेट पर भी हिंदी का वर्चस्व बढ़ता जा रहा है। हिंदी का प्रयोजनमूलक रूप का निरंतर विकास हो रहा है। अंग्रेजी चैनल धीरे-धीरे विज्ञापन के लिए हिंदी को अपना रहे है। विज्ञान पर आधारित कार्यक्रम नेशनल ज्योग्राफी एवं डिस्कवरी भी हिंदी में प्रसारित की जा रही है।
हिंदुस्तान में दूरदर्शन ७० के दशक से हुआ है। इसे सूचना देने, ज्ञान का प्रसार करने एवं मनोरंजन का साधन मानकर बढ़ावा दिया गया। हिंदी की साहित्यिक कृतियों में उपन्यास, नाटक, कहानी, कविता, कवि सम्मेलन आदि के माध्यम से दूरदर्शन ने हिंदी के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण योगदान दिया। रामायण, महाभारत, कौन बनेगा करोड़पति आदि धारावाहिकों के द्वारा हिंदी घर-घर तक पहुंच गयी है। मीडिया के क्षेत्र में दूरदर्शन आधुनिक कालीन कल्पवृक्ष की भूमिका में दिखाई देती है। हिंदी को जन-जन तक पहुंचाने में इसका योगदान नकारा नहीं जा सकता।
रेडियो के जरिये हिंदी ने भौगोलिक सीमाओं को भी पर किया। इसके माध्यम से विदेशों में भी हिंदी पहुँच गई। बी.बी.सी. लंदन तक हिंदी ने रेडियो के माध्यम से शाखा फैला दी। आवाज की दुनिया के इस दोस्त ने न केवल हिंदी के वर्तमान को सुगठित बनाया बल्कि उसका भविष्य उज्ज्वल बनाने में भी योगदान किया है। इस आधुनिकता में भी हमारे मानवीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने रेडियो पर ‘मन की बात’ कार्यक्रम द्वारा हिंदी की शोभा और भी बढ़ रही है।
इनके अतिरिक्त फैक्स, सेल्युलर, पेजर, दूरमुद्रक, इलेक्ट्रॉनिक टाइपराइटर, दूरभाष तथा अन्य अनेक विद्युतीय माध्यमों ने भी हिंदी के प्रचार-प्रसार को नई शक्ति एवं नई दिशा प्रदान की है। यांत्रिक तथा इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों द्वारा हिंदी के कार्य का बढ़ावा देने के उद्देश्य से अब मंत्रालयों, विभागों-उपक्रमों, बैंकों तथा अन्य सरकारी संस्थाओं में आविष्कार किये जा रहे है तथा उनसे जनमानस वर्ग अवगत कराया जा रहा है। इस प्रकार हिंदी प्रिंट मीडिया व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का विस्तार एक सार्थक एवं सकारात्मक है।
जनसंचार माध्यमों के इस व्यापक प्रसार काल में भाषा की भूमिका एकदम विशिष्ट है। भारतीय परिदृश्य में विशेष रूप से हिंदी भाषा की भूमिका एकदम व्यापक तर रही है। वैश्विक स्तर पर अपनी जगह बना रही है। विशेषतः नए पुराने जनसंचार माध्यमों की सम्प्रेषण के रूप में हिंदी ने अपनी क्षमता का लगातार विस्तार किया है। हिंदी ने बीसवीं तथा इक्कीसवीं सदी में क्रमशः पत्रकारिता, सिनेमा, रेडियो, टेलीविजन, कम्प्यूटर, विज्ञापन, इंटरनेट जैसे सभी जनसंचार माध्यमों में अपनी शक्ति का विस्तार किया है। जनसंचार माध्यमों की गुणवत्ता को हिंदी ने व्यापकतर संदर्भ दिया है।
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