World Poetry Day Special Poetry: तुम! रूपसी नभ से उतरी

Dr. Mulla Adam Ali
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world poetry day special poem

World Poetry Day

तुम! रूपसी नभ से उतरी


उर्वशी का रूप श्रृंगार लिये

श्रृद्धा के यौवन से भरी।

ऊषा काल की प्रथम बेला में,

तुम रूपसी नभ से उतरी।


मुख चमके सूरज के समान

काली भौंहे, तिरछे नयना,

कामदेव के लगते बाण।

अधरों पे लाली, मुस्कान भरी

तुम रूपसी नभ से उतरी।


सावन की बदली का लेकर भेष

काली घटा से लहराये केश।

मयूरी सी जब गर्दन हिलती,

पथिक भूले देश - परदेश।

शब्दों में तेरे फूलों की झडी

तुम रूपसी नभ से उतरी।

कर जैसे वीणा के तार

सरगम बजती, गूंजे झनकार।

कटि लहराये बन सर्पणी,

बलखाये जैसे नदियाँ की धार।

पग में घुँघरू की तान बजी

तुम रूपसी नभ से उतरी।


चन्दा को माथे पे सजाकर

तारों की महेंदी है रचाई।

हरियाली की पहन घघरिया,

अम्बर की चुनरी है बनाई।

देवी हो! अप्सरा हो! या कोई परी!

तुम रूपसी नभ से उतरी।

world poetry day poem in hindi

निधि "मानसिंह"

कैथल, हरियाणा

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