नवरात्रि पर्व
नवरात्रि पर्व है माँ के
अर्चन और आह्वान का,
स्त्री के हर स्वरूप को वंदित
नारी के आत्माभिमान का।
पौरुष अधूरा बिन शक्ति के
जैसे शिव बन जाता शव।
पुरुषत्व और स्त्रैण गुणों का
संतुलन बनाए धरा को आरव।
हर रूप में पूज्य माँ
सौम्य, शांत, सरल या भयावह।
सभी देवों की शक्ति समाहित
इसीलिए माता है आराध्य।
पुरुष अगर हो शक्तिशाली
तो होती मात्र सत्ता ही दीर्घ
पर स्त्री के शक्तिसंपन्न होने से
धर्म होता महाविस्तीर्ण।
पलता धर्म स्त्री के अंक में
सृष्टि लेती है आकार
ग्रंथ साक्षी हैं, हर युद्ध में
देवी ने ही किया निस्तार।
हर नर में हो अंश शिव का
समय की है फिर से ललकार
नारी अस्मिता को करने संरक्षित
दुर्गा फिर से ले अवतार।
यदि समाहित शिवत्व पुरुष में औ' हर स्त्री में निहित संस्कार
अधर्म, अनीति, अनाचार से
मुक्त हो जाएगा संसार।
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