🧕 आज की स्त्री का स्वर 👩🦰
तुम मेरी शर्म बचा सकते हो
बचा सकते हो मुझे बेशर्म होने से
मुझे दुनिया की दोगली नज़र से मत देखना
भाषा और संवेदना का सच्चा व्यवहार करना
इन्हे गालियों, कुंठाओं से सदा दूर ही रखना
मैं प्यार और आकर्षण का भेद भली भाती पहचानती हूं
मैं उन जिद्दी स्त्रियों में से हूं
जिसने खुद को खुद के लिए त्यार किया
मैं पुरुष को रिझाने की राजनीति से दूर रही
पुरुष को समझा तो बस अपने समतुल्य जीव
मेरा भोलापन, सादापन मेरा स्थाई गहना है
इसे बेवकूफी समझना तुम्हारा खोखलापन
मुझे चकाचौंध, रंगरंगीली दुनिया मोह नही सकती
मैं तुम्हारे गूढ़ सूक्ष्म और प्राकृतिक रूम से मोहित होऊंगी
इसलिए इस व्यवस्था को सुधारने में
मैं नींव की ईट होना चाहती हूं
अपनी मौजूदगी दर्ज कर देना चाहती हूं आवाज़ उठाने वालों में
इसलिए बिना सृजन किए मर जाना
मेरी मुक्ति की बाधा है...!
नौशीन अफशा
एम.ए., बीएड., हिंदी