पुस्तक : बदलियों की छांव (Badliyon ki Chhaon)
विधा - ग़ज़ल-संग्रह
गज़लकार : Sandeep Shajar (संदीप 'शजर')
भूमिका : Aalok Shrivastav (आलोक श्रीवास्तव)
ASIN : B09XMCDBB8
Publisher : Shabdankur Prakashan
Language : Hindi
Paperback : 80 pages
Amazon Link : https://www.amazon.in/dp/B09XMCDBB8?ref=myi_title_dp
"मुझ-सा दुनिया में है नहीं कोई
मेरी तारीफ है कि ताना है"
बदलियों की छांव से संदीप 'शजर'
“संदीप 'शजर' की ग़ज़ल रवायती पगडंडियों पर सफर करती हुई शहर की पथरीली सड़कों पर भी ग़ामजन होते हुए दिखाई देती है। इनकी ग़ज़लों में लोबान और इत्र की खुशबू महसूस की जा सकती है। मैं अगर यह कहूँ कि संदीप 'शजर' की शायरी धूप से छाँव तक का सफर तय करती हुई महसूस होती है तो कोई अतिशयोक्ति न होगी।
गोविन्द गुलशन, प्रसिद्ध उस्ताद शायर
“संदीप 'शजर' की शायरी उनके अपने तजरिबों की तस्वीर है। वे ज़िन्दगी को दूसरे की ऐनक से नहीं देखते ग़ज़ल में कुछ नया करने की कोशिश उनके अशआर में साफ दिखाई देती है"
तनवीर गाज़ी, प्रसिद्ध शायर व फिल्मी गीतकार
“कहन की दृष्टि से भी और देश के पूरे परिदृश्य की व्याख्या करने के नज़रिए से भी sandeep shajar हमें अपनी तरफ़ बरबस खींचते हैं। अपनी बात बहुत सहजता से shayri में ढालने की कला उनके अंदर है।"
जमुना उपाध्याय, प्रख्यात कवि व ग़ज़लकार
“अपनी शख़्सियत के ज़रिए भी और अपनी रचनाओं के हवाले से भी प्यार, मुहब्बत, भाईचारा और अम्न-ओ-अमान की रौशनी संदीप ' शजर ' की ग़ज़लों में दीपों की तरह जगमगाती है मैं मंदिरों के क़रीब और मस्जिदों के करीब जहाँ जगह मिली इक दिल बनाके लौट आया वह फनकार ही क्या जिसके अंदर मुहब्बत और कुशादा- दिली न हो? अपने एक शे'र में संदीप कहते हैं उसको भी जीत का गुमान रहे मैं भी कुछ इस हिसाब से हारा किसी भी बेदार रचनाकार का रिश्ता उसकी आसपास की दुनिया से तो होता ही है, रुमानियत और रूहानियत से भी होता है । जिसे वह महज़ देखता ही नहीं अपने कुलम से तहरीर करना भी जानता है।”
आलोक श्रीवास्तव, प्रख्यात ग़ज़लकार व फिल्मी गीतकार
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