Rajasthani Bal Kahaniyan
राजस्थानी बाल कहानियां : एक दृष्टि
राजस्थानी भाषा में साहित्य सृजन की परंपरा सदियों पुरानी है। श्रुतियों और बातों के माध्यम से परंपरागत सुनने-सुनाने की विधि से हम इसे आगे बढ़ाते रहे हैं। प्राचीन परंपरागत साहित्य में हम राजस्थानी बाल साहित्य को महसूस करें तो पाएंगे कि आजादी के बाद बीसवीं सदी के पांचवें दशक में जब हिंदी बाल साहित्य के रचनाकारों ने चिंता जताई तो उससे प्रेरित होकर राजस्थानी रचनाकारों ने बाल जगत के लिए रचनाएं सृजित कर राजस्थानी बाल साहित्य की श्रीवृद्धि की। परिणामस्वरूप ‘ढोलकी ढमाक ढम’, ‘ऊंदरो-ऊंदरी’, ‘झिण्डियो’ तथा ‘राजा झगडू’ जैसी गद्य बाल साहित्य की रचनाएं प्रकाश में आईं, फिर धीरे-धीरे पद्य बाल साहित्य का मार्ग प्रशस्त हुआ लेकिन प्रमुखता गद्य की ही रही।
सर्वप्रथम राजस्थानी बाल साहित्य के अभाव को भरने के प्रयास में पांचवें दशक के अंत में रानी लक्ष्मीकुमारी चूंडावत का योगदान उल्लेखनीय कहा जा सकता है। रानी साहिबा ने ‘हूंकारो दो सा’, ‘लोक कथाएं’, ‘टाबरां री वातां’ आदि पुस्तकें सुबोध एवं सरल भाषा में बाल जगत को दी हैं। उक्त कृतियों की कहानियों को उन्होंने एक पुस्तक के रूप में प्रकाशित करवाई है, जिसका शीर्षक ‘‘टाबरां री वातां अर हंूकारो दो सा’’ है।
इनकी इस कृति से एक कहानी ‘आई जी आई लोग लुगायां री क्यां री लड़ाई’ दृष्टव्य है-एक ऊंदरो अर एक ऊंदरी। एक दिन ऊंदरा रै अर ऊंदरी री लड़ाई व्हेगी। दोई जणां लडिय़ा। ऊंदरे, ऊंदरी ने मारी। ऊंदरी रूसायगी। ऊंदरी रूसाय आक तळे जाय सोयगी। ऊंदरो मनावा आयो- ‘चाल, चाल ऊंदरी घरे चाल रोटी पो।’ ऊंदरी बोली- ‘म्हने मारी छी, कूटी छी, आक तळे सूती छी, जा रे जा परो जा अठा संू, कोनी आवूं।’ ऊंदरो परो गियो। घर जाय बुहारो काढियो, कचरो काढियो, पाणी भरियो। पाछो ऊंदरी ने मनावां आयो- ‘म्हे बुहारो काढियो, कचरो काढियो, पाणी भरियो। चाल चाल ऊंदरी घरे चाल, रोटी पो।’ ऊंदरी बोली-‘म्हने मारी छी, कूटी छी, आक तळे सूती छी, जा रे जा परो जा अठा संू, कोनी आवूं।’ ऊंदरो परो गियो। घरे जाय बरतन मांजिया, चूल्हो सळगायो। आदण मेलियो। पाछो ऊंदरी मनावा आयो-‘बरतन मांज लीधा, चूल्हो सळगायो, आदण मेलियो। चाल चाल ऊंदरी घरे चाल रोटी पो।’ ऊंदरी बोली-‘म्हने मारी छी, कूटी छी, आक तळे सूती छी, जा रे जा परो जा अठा संू, कोनी आवूं।’ ऊंदरो परो गियो, दाळ रांधी, चूरमो कीधो, थाळी परूस ऊंदरो पाछो मनावां आयो। ‘दाळ रांधी, चूरमो कीधो, थारे थाळी परूस राखी है। चाल चाल ऊंदरी घरे चाल।’ या सुणतां ही झट थकी ऊंदरी बैठी व्ही ‘आई जी आई लोग लुगायां रे क्यां री लड़ाई।’ ऊंदरी तो ऊंदरा रे लारे जीमवा बैठगी।
इसी क्रम में सुप्रसिद्ध कथाकार विजयदान देथा ने ‘बातां री फुलवाड़ी’ के अब तक प्रकाशित चौदह भागों में राजस्थानी लोक कथाओं को सरस भाषा में रचकर एक अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया है। गांवों में साहित्य, कला और संस्कृति की चेतना के लिए विक्रम संवत् 2021 में जोधपुर जिले के गांव बोरूंदा में तत्कालीन सरपंच चंडीदान देथा की देखरेख में एक साहित्यिक संस्थान ‘रूपायन संस्थान’ का गठन किया गया। गांव में इस संस्थान ने छापाखाना लगाया। संस्थान की तरफ से ‘वाणी’ नाम से एक मासिक पत्र आरंभ किया गया। जिसमें सैकड़ों लोक कथाएं और अनेक उपन्यास प्रकाशित किए गए। फिर यही लोक कथाएं पुस्तक रूप में आई तो इतनी मांग हुई कि एक ही वर्ष में एक पुस्तक के तीन-तीन संस्करण प्रकाशित हो गए।
वरिष्ठ साहित्यकार कोमल कोठारी के संपादन में सुप्रसिद्ध साहित्यकार विजयदान देथा की पुस्तक ‘बातां री फुलवाड़ी’ का प्रथम भाग 438 पृष्ठों का है। जिसमें 76 लोककथाएं और एक उपन्यास ‘तीडौ राव’ पृष्ठ 305 से लेकर 438 पृष्ठों में समेटा गया है। ‘बातां री फुलवाड़ी’ से एक छोटी सी लोक कथा ‘आ तौ गेल ई भूंडी’ दृष्टव्य है-
‘‘अेक बांणियौ अर चार पांच आदमी गांवतरै जावता हा। आपस में बंतळ करता जावता के बांणिया रै पगां मांयकर अेक खिरगोसियौ निकळग्यौ। खिरगोसिया री फेट संू पैला तौ बांणियौ झिझकियौ। पछै वौ तो उणी ठौड़ जरड़ देती रौ हैटै बैठग्यो। दोनूं हाथां सूं माथौ पकडऩै अेक ऊंडौ निस्कारौ न्हाकतो बोल्यौ- गजब व्हैगा।
सांढ़ा रा सगळा आदमी कह्यो-बावळा, इणमें कांई गजब व्हैगा। खिरगोसियो निकळग्यौ तो इणमें सोच री किसी बात।
बांणियौ पड़ूतर दियौ- म्हैं खिरगोसिया रै निकळण रौ सोच नीं करूं। पण आ तो गेल ई भूंडी। आज खिरगोसियौ निकळियौ तो कालै सिंघ अर चीता निकळैगा। म्हैं सोच करूं के खिरगोसियौ औ मारग कीकर काढिय़ौ। मारग मंडियां पछै तो सिंघ ई इण गेलै निकळैला।’’
डॉ. कन्हैयालाल सहल ने लोक कथाओं के माध्यम से ‘नटो तो कहो मत’ छोटी-छोटी सरस कथाएं दी हैं, वहीं मुरलीधर व्यास ने बच्चों के लिए ‘बरस गांठ’ जैसी सशक्त बाल कथा कृति के आलावा अनेक हास्य रेखाचित्र भी लिखे हैं। नारायणदत्त श्रीमाली की बाल कथाएं ‘झगडूसिंह’, ‘राजा भोज नै माघ पिण्डत’, ‘झूंपड़ी रो ज्ञान’ आदि अनेक रचनाएं हैं। राजा भोज नै माघ पिण्डत तो हिन्दी तथा मलयालम में अनूदित भी हुई है।
राजस्थानी बाल साहित्य के क्षेत्र में डॉ. मनोहर शर्मा का नाम अग्रिम पंक्ति में हैं। इन्हें सन् 1979 में बाल कथा कृति ‘बालवाड़ी’ की पाण्डुलिपि पर राजस्थान साहित्य अकादमी, संगम की ओर से बाल वर्ष पर विशेष बाल साहित्य पुरस्कार मिल चुका है।
इन पंक्तियों के लेखक दीनदयाल शर्मा हिंदी व राजस्थानी बाल साहित्य में निरंतर सृजनरत हैं। राजस्थानी बाल कहानियों की पुस्तक ‘चन्दर री चतराई’ जो कि वर्ष 1992 में प्रकाशित हुई है। इस पुस्तक में कुल पांच बाल कहानियां हैं। यथा- ‘साचै री जीत’, ‘साधु रो सराप’, ‘लाखिणो मिनख’, ‘खावण आळै रो नांव’ और शीर्षक कहानी ‘चन्दर री चतराई’ है। पांचों बाल कहानियों में बच्चों के लिए रोचक घटनाओं के माध्यम से नई-नई बातें, नया ज्ञान व सीख दी गई है कि बच्चा कहानी पढक़र गौरव महसूस करे। ‘साचै री जीत’ कहानी में थाने में झूठी रिपोर्ट दर्ज करवाने पर सजा का प्रावधान है, इस बात को बहुत ही सुंदर ढंग से दर्शाया गया है। दूसरी कहानी ‘साधु रो सराप’ में झूठ बोलने पर मिलने वाले बुरे परिणाम को दर्शाया गया है। तीसरी बाल कहानी ‘लाखिणो मिनख’ में यह दर्शाया गया है कि आदमी अनमोल है। हट्टा-कट्टा व्यक्ति जब भीख मांगता है तो उसे कहा गया है कि तुम तो लाखीणे हो। तुम्हारे शरीर का एक-एक हिस्सा इतना कीमती है कि तुम कितनी भी राशि में इसे बेचना नहीं चाहते। समाज के प्रत्येक वर्ग को जागरूक करती यह कहानी बहुत ही उल्लेखनीय है। दाने-दाने पर लिखा है खाने वाले के नाम को यथार्थ के धरातल पर कथा के माध्यम से बहुत ही सहज और सरल ढंग से बताया गया है। इस पुस्तक की अंतिम कहानी ‘चन्दर री चतराई’ में एक बच्चा अपनी चतुराई से बड़ी दिखने वाली समस्या को तुरन्त हल कर देता है। इस कहानी में बच्चों की प्रतिभा को प्रोत्साहन देने पर बल दिया गया है। सभी बाल कहानियां लोक कथा शैली में और बाल मनोविज्ञान को केन्द्र में रखकर सृजित की गई है।
वर्ष 1994 में प्रकाशित दीनदयाल शर्मा की बाल कथा कृति ‘टाबर टोल़ी’ में तीन बाल कहानियां हैं। तीनों कहानियां भी लोक कथा शैली में है। ‘काळू कागलो अर सिमली कमेड़ी’, ‘घमण्डण मछली’ और ‘हरखू री चतराई’। ‘हरखू री चतराई’ कहानी का एक अंश दृष्टव्य है- ‘‘....हरखू निडरता स्यंू बोल्यो-‘महाराज, आप मिनख रै दरसण नै जे चोखो माड़ो समझो तो का’ल दीनूगै म्हंू आपरा दरसण कर्या। इण वास्तै थे सोचो कै आज म्हंू मौत री सजा भुगतण नै आपरै सामीं खड़्यो हंू।’ हरखू री बातां सुृण’र राजा मेघसिंघ री आंख्यां खुलगी। .....’’
वर्ष 2009 में प्रकाशित दीनदयाल शर्मा की बाल संस्मरण शैली की इस कृति ‘बाळपणै री बातां’ में कुल 47 आलेख हैं, जिनमें छ: बाल कहानियां भी हैं। कुल 112 पृष्ठों की इस सजिल्द पुस्तक में एक पिता अपनी पुत्री को रोजाना एक सुनाते हैं। इस पुस्तक पर केन्द्रीय साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली से वर्ष 2012 में राजस्थानी बाल साहित्य पुरस्कार दिया गया है।
युवा साहित्यकार दुलाराम सहारण की सन् 2005 में राजस्थानी बाल कथा संग्रह ‘क्रिकेट रो कोड’ में कुल पांच कहानियां हैं। जीवों पर दया और सेवा करने का फल बताती कहानी ‘आदतां रो फल’ में लेखक ने मानवीय मूल्यों को उजागर करने का सफल प्रयास किया है, वहीं शिक्षा के महत्त्व को बताती कहानी ‘राजा री सूझ’ में राजा अपना भेष बदल कर जनता की पीड़ को समझने की कोशिश करता है। राजा एक कालबेलिये की लडक़ी की पढऩे की इच्छा देखकर बहुत खुश होता है और रात की पारी के स्कूल खोलकर शिक्षा की अलख जगाता है। तेज धूप में खेलने के परिणाम को प्रस्तुत करती कहानी ‘क्रिकेट रो कोड’ भी एक सशक्त कहानी है। पढ़ाई के साथ-साथ काम में हाथ बंटाने की बात को उजागर करती कहानी ‘आकाश रो पिछतावौ’ और नकल के भरोसे पास होने वाले लडक़ों को सावचेत करती कहानी ‘नकल रो नतीजो’ सहित सभी कहानियां बच्चों को संस्कारित करने की दृष्टि से सफल कहानी कही जा सकती है। कहानियों की भाषा सरल, सहज और तरल है। कहानियां पढ़ते समय बच्चों के भीतर एक जिज्ञासा बनी रहती है।
बाल साहित्य के क्षेत्र में राजकुमार जैन ‘राजन’ का नाम बहुत पुराना है। राजस्थानी में आपकी बाल कथा की पुस्तक ‘खुशी रा आसंू ’ में कुल सात कहानियां हैं, जो पशु-पक्षियों को माध्यम बनाकर सृजित की गई है। चिड़ी री सीख, लालच रो फल, मुसीबत मांय मदद, झूठ रो जाळ, चीकू री चतराई, मौसम रा गीत और अंतिम कहानी है खुशी रा आंसू। सभी कहानियों में मानवीय मूल्य को बहुत ही सरल ढंग से प्रस्तुत किया गया है। कहानियां रोचक, मनोरंजक एवं शिक्षाप्रद होने के साथ-साथ भाषा एवं शैली में सहजता समेटे हुए है।
वर्ष 1988 में राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर से प्रकाशित ओर 1990-1991 में इसी अकादमी से पुरस्कृत बाल कथाकार विष्णु भट्ट ने आठ बाल कहानियों का संग्रह ‘कत्र्तव्य री पुकार’ कृति बच्चों को दी है। नाटककार एवं कवि हरिवल्लभ बोहरा ‘हरि’ ने अपने बाल कहानी संग्रह ‘चक-चक चालनी’ में छोटी-छोटी सात कहानियां दी है। शिक्षाविद् ओमप्रकाश सारस्वत ने ‘जिण री लाठी उण री भैंस’ में बच्चों के लिए नन्ही-नन्ही दस बाल कथाएं सुंदर चित्रों के साथ प्रस्तुत की हैं। बड़ों के लिए नाटक विधा में महारत हासिल करने वाले लक्ष्मीनारायण रंगा ने बच्चों के लिए भी ‘हरिया सुवटिया’ तथा ‘टमरक टूं’ जैसी लोक कथा पर आधारित सहज बाल कथा कृतियां दी हैं। इनकी बाल कथा कृति ‘टमरक टंू’ में दस लोक कथाएं हैं। एक कथा ‘चुहिया डूबी डबूक-डबूक’ दृष्टव्य है-
‘‘एक चिड़ी थी। एक चुहिया थी। दोनों धर्म-बहिनें बनीं। एक दिन दोनों घूमने निकलीं। बीच में एक झाड़ी आई। चुहिया बोली-चल चिड़ी बहन बेर खावें। चिड़ी ने कहा-चलो। चिड़ी तो उड़-उड़ कर बेर खाने लगी। चुहिया झाड़ी के कांटों में फंस गई। चिड़ी को दया आई। चिड़ी ने पूंछ पकड़ कर चुहिया को कांटों से बाहर निकाला। तो चुहिया बोली-नाक-कान बिंधवाती थी, मनैं क्यों काढ़ी ए रांड? चिड़ी ने तो भला किया। चुहिया ने गालियां दीं।
चिड़ी ने सोचा-जब साथ दिया है तो निभाना ही है। आगे चली तो एक नदी आई। चुहिया बोली- चिड़ी चिड़ी को फिर दया आई। पूंछ पकड़ कर चुहिया को नदी से बाहर निकाला। चुहिया नाराज हो गई, बोली- न्हावण-धोवणा करती थी, मनैं क्यों काढ़ी ए रांड? चिड़ी ने हंस कर बात टाल दी। सोचा, बुराई का बदला भलाई से ही देना चाहिए।
दोनों आगे चलीं। सडक़ पर एक हाथी आ रहा था। चिड़ी तो उडक़र दूर जा बैठी। चुहिया हाथी के पैर के नीचे दबने लगी। चिड़ी ने फिर पंूछ पकडक़र दूर हटाया। उसकी जान बचाई। चुहिया चिड़ी पर बहुत नाराज हुई, बोली- हाथ-पांव चंपवावती थी, मनैं क्यों काढ़ी ए रांड? चिड़ी ने कहा-तू चाहे मुझे कितनी ही बुरी कह, मैं तेरा साथ करके हाथ नहीं छोड़ंूगी।...चिड़ी ने आखिर तक साथ निभाया।’’
वर्ष 2004 में भैरोसिंह राव ‘क्रांति’ की बाल कथा कृति ‘रगत की लाज’ प्रकाशित हुई है, जिसमें कुल 12 कहानियां हैं। जिनमें ‘हीरां जड़ी पगरखी’, ‘बाला री सही’, ‘रगत री लाज’, ‘असली सुलहनामौ’ अर ‘रूप री मणि’ ऐतिहासिक बाल कहानियां हैं। जबकि ‘गोपाल जी री कृपा’ धार्मिक कहानी है। ‘सांचौ सपूत’ अपने देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के संस्मरण पर रचित बाल कहानी है। संग्रह की आखिरी कहानी आभै छूतौ हौसलौ प्रेरणाप्रद कहानी है। आठवीं कक्षा की गीता दामौर नाम की स्कूली छात्रा के जीवन की सच्ची कहानी है। इस कहानी में यह बताया गया है कि एक स्कूल की कुछ लड़कियां अपने शिक्षकगण और प्रिंसीपल मैडम के साथ वन भ्रमण के लिए गईं। वहां पर प्रिंसीपल मैडम, एक अन्य मैडम और छठी कक्षा की छात्रा जब गहरे पानी में डूबने लगी तो गीता ने हिम्मत करके उन तीनों की जान बचाई। इन तीनों की जान बचाने पर तत्कालीन प्रधानमंत्री एच.डी.देवगौड़ा ने गीता को राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार दिया जबकि तत्कालीन महामहिम राष्ट्रपति डॉ.शंकरदयाल शर्मा ने राष्ट्रपति भवन, दिल्ली में गीता दामौर को राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार देकर सम्मानित किया।
20 अप्रैल, 1991 को जन्मी बाल साहित्यकार शालिनीसिंह की पहली राजस्थानी पुस्तक मान अर मीणो राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर से सन् 2005 में प्रकाशित है। पुस्तक में कुल सात कहानियां है। ये सभी कहानियां भूतप्रेत, परी, जादू और अंधविश्वास को छोडक़र वैज्ञानिक दृष्टि की कहानियां कही जा सकती है। शीर्षक कहानी ‘मान अर मीणो’ जहां काम के महत्त्व को दर्शाती है, वहीं जाति के घमण्ड को भी चकनाचूर करती है। ‘हिम्मत रो हिमाती राम’ में आदमी से ज्यादा जानवरों के प्रेम को दर्शाती संगठन में शक्ति के सनातन सूत्र की ओर इशारा भी करती है। ‘सूझ’ कहानी आतंकवाद के खिलाफ जमनी की बालचेतना और अनेकता में एकता के मजबूत विश्वास की कहानी है। बच्चों की छोटी-छोटी शरारतों से कभी-कभी बड़ा हादसा भी हो सकता है। हृदय को चीरने वाले दृश्य को सामने रखती ‘पिछतावौ’ कहानी बच्चों को पग-पग पर सचेत करने की सीख देती है। एक बार भूल होने के बाद सुबक-सुबक कर रोने के अलावा और कुछ नहीं बचता। सीधा-सादा उपदेश बालमन पर ज्यादा असर नहीं करता। बात का जादू तो उस वक्त सिर पर चढक़र बोलता है जब ‘जादू’ कहानी में यह प्रमाणित कर दिखाया जाता है कि मेहनत और लगन के अलावा और कोई जादू नहीं हो सकता। ‘रखपून्यू’ इस संग्रह की सबसे सशक्त कहानी कही जा सकती है। पूजा के कोई भाई नहीं होता। वह रखपून्यू के दिन नीम के राखी बांधती है। नीम का दरखत भाई के इस फर्ज को निभाते हुए टन की आवाज के साथ एक पकी हुई निमोली पूजा की थाली में डालकर बहन को निहाल कर देता है। शालिनीसिंह की यह परिकल्पना उसकी पर्यावरण के प्रति चेतना की अलख जगाती है। सभी कहानियों की भाषा सरल और सहज है। बूई, झाड़-बोझा, लूग्गो-तूग्गो, लंूकड़-गादड़ जैसे ठेठ राजस्थानी शब्दों के साथ चीकणों घड़ो, करमा नै रोणों, जादू चालणों, थूक मूट्ठियां पार जैसे मुहावरों का अनूठा प्रयोग शैली में चार चांद लगाता है।
वर्ष 2005 में प्रकाशित रामजीलाल घोड़ेला के राजस्थानी बाल कथा संग्रह ‘जादू रो चिराग’ में कुल अठारह कहानियां है। शीर्षक कहानी ‘जादू रो चिराग’ बताती है कि चिराग घिसकर प्रकट होने वाले जिन्न की जगह दोनों हाथों से मेहनत करने की धारणा ज्यादा जादूई होती है तभी तो आदमी के जीवन की सारी परेशानियां इन हाथों रूपी दो चिरागों के जादू से छू मंतर होती है। इसी तरह ‘आजादी रो जीवण’ कहानी में आदमी की तरह पक्षियों में आजादी के लिए दया भाव जागता है। ‘खरगोश रो घमंड’ कहानी बताती है कि जीवन में कभी भी घमंड नहीं करना चाहिए। क्योंकि आदमी का घमंड ही उसकी हार का कारण है। ‘स्याणो कुत्तो’, ‘स्याणो गादड़ो’ और ‘लूंठी अक्ल या लाठी’ कहानियों में आदमी को चतुराई की सीख मिलती है। ‘लंूठी अक्ल या लाठी’ तो कहावती कथा-‘जिसकी लाठी उसकी भैंस’ की तरह ही है।
ये कहानियां सीख देती है कि आदमी को संकट के समय अपना धीरज नहीं खोना चाहिए और चतुराई से काम लेना चाहिए। राजस्थान में एक कहावत है कि ‘ऊंची खेती और नीची यारी किसी काम की नहीं होती’। इसी कहावत को चरितार्थ करती कहानी ‘बेलीपो बराबर वाळै संू’ और ‘बड़ै आदमी रो साथ’ कहानियां में देखने को मिलता है। कुल मिलाकर इस संग्रह की अधिकांश कहानियां राजस्थानी लोक कथा पर आधारित है जो अच्छे संस्कार देने के साथ-साथ सीख की दृष्टि से भी सराहनीय है।
वयोवृद्ध साहित्यकार सूर्यशंकर पारीक ने भी बच्चों के लिए ‘राजस्थानी लोक कथाएं-भाग एक’ तथा ‘राजस्थानी लोक कथाएं- भाग दो’ शीर्षक से दो बाल कथा संग्रह दिए हैं।
वर्ष 2007 में प्रकाशित ‘बुलबुल रा बोल’ दमयन्ती जाडावत ‘चंचल’ की प्रथम राजस्थानी बाल कहानियों की पुस्तक है। इस पुस्तक में कुल 21 बाल कहानियां हैं। जो बालमन के अनुरूप हैं। पुस्तक की सभी कहानियों में जानवर पात्रों के माध्यम से बालकों को सीख देने का प्रयास किया गया है। जैसे ‘कंगण’ सहकार वृत्ति की सीख देती है। जिसमें यह दर्शाया गया है कि विश्वास बनाए रखना चाहिए। धरती और आकाश भी विश्वास के सहारे टिके हुए हैं। ‘मोटमाई’ में बच्चों को कुदरत की उन चीजों को महत्वपूर्ण बताने का प्रयास है, जिनके कारण जीव-जगत हैं। बच्चों को उन चीजों के गुण-धर्म की बात सीखने को मिलती है। गुण-धर्म से भटके समाज का तो रूप ही बिगड़ जाता है। ‘कोयल अर कागलो’ कहानी में कुदरत की उन चीजों का समावेश किया गया है, जिन्हें देखकर समाज अपना धर्म-कर्म तय करता है। ‘च्यार कुम्हार’ कहानी कर्म प्रधानता की सीख देती है। ‘मिजाजी आंबो’ कहानी में एक दिन घमंड और अहंकार टूटते ही हैं, को दर्शाया गया है।
‘टूटू’ कहानी समाज के काण-काइदों की सीख देती है। वहीं ‘जंगळ में पौसाळ’ कहानी शिक्षा शास्त्र का सार समझाती है। ‘थाळी री आवाज’ कहानी एक सकारात्मक संदेश देती है, वहीं शीर्षक कहानी ‘बुलबुल रा बोल’ बाल पाठकों को पर्यावरण की समस्या से रूबरू करवाती है। ‘बोलवां’ कहानी के माध्यम से लेखिका दमयन्ती जाडावत ने दर्शाया है कि ईश्वर कर्मशील लोगों को ही सहारा देता है।
विज्ञान के इस युग में आदमी की शारीरिक मेहनत कम होने के कारण शरीर कुछ कमजोर हो गया है। अत: लेखिका ने ‘घोड़ा रो नाच’ कहानी में बाल पाठकों को शारीरिक स्वास्थ्य के प्रति सचेत किया है। ‘दाखू’ कहानी उजड़ी बस्तियां और बढ़ते शहरीकरण की समस्या को उजागर करती है। ‘पिकनिक’ कहानी में यह बताया गया है कि हम सभी को सदैव सचेत रहना चाहिए अन्यथा थोड़ी सी भी लापरवाही रंग में भंग डाल सकती है।
‘झूंपड़ी वाली डॉक्टर’ कहानी प्रतिभा के पक्ष को मजबूत करती दिखाई देती है। ‘हाथी रो संदेश’ कहानी में लेखिका की आशावादी दृष्टि को उजागर करती है। किसी को किस बात की प्रेरणा, कब और कहां मिल जाए। इस बात को बहुत ही सुंदर ढंग से दर्शाया गया हे। ‘तिल्ली रो लाडू’ की मूल बात ये है कि सहारा जरूरतमंद को ही दिया जाना चाहिए। ‘सोनल मछली’ फर्ज का कर्ज की सीख देती है तो ‘माटी रा रंग’ यह संदेश देती है हर परिस्थिति में आशा की किरण जगाई जा सकती है। मन की बैटरी को चार्ज किया जा सकता है।
सार्वजनिक हित ही सर्वोपरि होता है। आलसियों की दुर्गति तय है। इस दृष्टि को ‘पुळ रो काम’ कहानी में दर्शाया गया है। तीन तारा कहानी में स्वार्थ और परमार्थ के सार को समझाया गया है। बाल मन के भ्रम और डर को भगाती है ‘म्याऊँ।’ यह कहानी बहुत ही सुंदर और सहज ढंग से परोसी गई है। कुल मिलाकर ये सभी 21 बाल कहानियां बालमन के अनुरूप ही सृजित की गई हैं। इस कृति ‘बुलबुल रा बोल’ को वर्ष 2010 में केन्द्रीय साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली से राजस्थानी बाल साहित्य के प्रथम पुरस्कार से नवाजा गया है।
वर्ष 2012 में प्रकाशित दमयन्ती जाडावत ‘चंचल’ का राजस्थानी बाल कहानियों का दूसरा संग्रह है। इसमें भी 21 बाल कहानियां हैं। संग्रह का ताना-बाना भी आपने आस-पास से लिया है। तभी तो सभी कहानियों में राजस्थानी माटी की महक महसूस की जा सकती है। संग्रह की प्रथम कहानी ‘फूटरापौ’ इस बात का संदेश देती है कि तन की सुंदरता से मन की सुंदरता ज्यादा महत्त्वपूर्ण है। दो सहेलियों के माध्यम से इस बात को बहुत ही सरल और सशक्त ढंग से दर्शाया गया है। संतोष जैसे मूल्यों की स्थापना करने वाली कहानी है -‘अबै घणो’। जो संस्कृत के श्लोक ‘अति सर्वत्र वर्जयते’ को चरितार्थ करती है।
‘पीळो पत्तो’ कहानी समय की महता को दर्शाती है। समय कभी भी एक जैसा नहीं रहता। यह तो बदलता रहता है। अच्छे और बुरे दिन किसी के भी और कभी भी आ सकते हैं। पेड़ के एक पत्ते पर लिखी यह कहानी बहुत ही गहरा संदेश देती है।
‘जगळ री दीवाळी’ जानवर पात्रों के माध्यम से पर्यावरण के प्रति सचेत करती है तो ‘कूकर्या’ और ‘गोलू’ कहानियां जीवों पर दया करने की बात को सहजता से दर्शाती है। भाई-बहिन के संबंधों को लेकर लिखी गई कहानी है ‘रक्षा रो वचन’ तथा ‘बबरू अर गबरू’ कहानियां करनी के फल को उजागर करती है। वहीं ‘वैपारी’ ‘अतिथि देवो भव:’ की भावनात्मक और मानवीय संवेदना की गहरी पकड़ को प्रस्तुत करती है।
‘सोमू रो बाग’ कहानी पेड़ों की सार-संभाल और बुरे समय में धैर्य रखने की सीख देती है। ‘कूकड़ू’ कहानी समझदारी और चतुराई जैसे कौशल को स्थापित करती है। इस कहानी में यह दर्शाया गया है कि संकट के समय आदमी अपना बचाव किस प्रकार करता है। ‘टिक्कू’ लोक कथा शैली में लिखी गई कहानी है जो गायों की सेवा करने की प्रेरणा देती है।
‘पारिजात रो फूल’ कहानी को हम परिकथा की श्रेणी में रख सकते हैं। ‘दिसावरी सूवो’ में आजादी का महत्त्व दर्शाया गया है जबकि ‘टॉम’ कहानी में एक कुत्ते की वफादारी को रोचक ढंग से प्रस्तुत किया गया है। ‘क्यारी’ कहानी हमें समरसता का संदेश देती है तो ‘चाँदी रो कळश’ कहानी में ईमानदारी और संतोष को ही सबसे बड़ा धन बताया गया है। ‘औ’ कांईं व्है?’ कहानी सीख देती है कि बुराई को मिटाने की शुरूआत सबसे पहले अपने घर से ही की जानी चाहिए। ‘बिरजी बाज’ जैसे को तैसा कहावत को चरितार्थ करने वाली कहानी है। ‘उमंग अर परी’ बेटियों को अनुशासन का पाठ पढ़ाने वाली एक परिकथा है।
पतंगों की डोर में उलझकर दुर्घटना का शिकार होने वाले पक्षियों की पीड़ा का मार्मिक चित्रण है पुस्तक की अंतिम कहानी ‘डोर कटगी’ में। अपनी मौज-मस्ती किसी के दु:ख का कारण नहीं बने, इस बात को बहुत ही सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया गया है। अत: हम कह सकते हैं कि पुस्तक की सभी कहानियां कोई न कोई सीख अवश्य देती है। आर्ट पेपर पर सुंदर और रंगीन चित्रों की यह पुस्तक दमयंती जी के लिए मील का पत्थर साबित होगी। दमयन्ती जी को बच्चों के और अधिक लिखना चाहिए।
वरिष्ठ साहित्यकार आर.पी. सिंह बच्चों के लिए राजस्थानी में ‘अगनी बाण’ पुस्तक जो कि वर्ष 2013 में राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर के आर्थिक आंशिक सहयोग से प्रकाशित है। इस संग्रह में बच्चों के लिए कुल आठ बाल कहानियां हैं। जो ग्रामीण परिवेश में गूंथी हुई है। संग्रह की प्रथम कहानी ‘कठै गई चोटी’ में बंटी जब पढऩे बैठता है तो उसे नींद आने लगती है। वह पढऩे के कई तरीके अपनाता है। आखिर में वह चोटी के रस्सी बांधकर पढ़ता है ताकि नींद आए तो उसे पता चल जाए। लेकिन उसे इतनी गहरी नींद आ जाती है कि उसकी चोटी उखडऩे के बाद भी उसकी नींद नहीं खुली। सहज शब्दों में लिखी यह कहानी बच्चों को और आगे पढऩे और बढऩे की प्रेरणा देती है।
अपने भले के लिए दूसरों का नुकसान नहीं करने की सीख देती कहानी ‘खारो सैत’, अच्छे खेल खेलने की महत्ता को दर्शाती बाल कहानी ‘जिद रो फळ’ डर के परिणाम को दर्शाती कहानी साँप-साँप, वक्त के हिसाब से नये ढंग से लगन के साथ काम करने की सीख देती कहानी ‘आग री छड़ी’, जानवरों के जुड़ाव को दर्शाती कहानी ‘लाड रो बदळो’ गलती का परिणाम दर्शाती कहानी ‘गळती री सजा’ और इस पुस्तक की आखिरी बाल कहानी ‘अगनी बाण’ जो गलती करने के बाद उसे मानने की सच्ची सीख देती है। बाल कहानियों में कथ्य और शिल्प की दृष्टि के साथ-साथ ही बाल मनोविज्ञान का पूरा ध्यान रखा गया है।
राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर के आर्थिक आंशिक सहयोग से प्रकाशित मदन गोपाल लढ़ा की बाल कथा कृति ‘सपनै री सीख’ में कुल नौ कहानियां हैं। कथाकार ने बाल मनोविज्ञान को दृष्टिगत रखते हुए बालकों को सीख देने का प्रयास किया है। कृति की प्रथम कहानी ‘करणी रो फल’ में जंगल के पात्रों द्वारा बुरे कर्मों का बुरा नतीजा, ‘धूवैं का गोट’ में नई पीढ़ी में पनप रही नशे की बढ़ती प्रवृत्ति, शीर्षक कहानी ‘सपनै री सीख’ में सपने के माध्यम से चोरी की प्रवृत्ति को बुरा साबित किया गया है। ‘बदळाव’ में बिजली के करंट से बचने की वैज्ञानिक जानकारी के साथ ही हृदय परिवर्तन को भी उकेरा गया है।
‘पछतावौ’ कहानी में सौतेली मां के पारम्परिक चरित्र को तोडऩे का प्रयास किया गया है, वहीं ‘बहादुर किशन’ में बच्चों की वीरता को और ‘मिंकी बैया’ में आदर्श दोस्ती का उदाहरण प्रस्तुत किया गया है। ‘भोळू री चतराई’ में कर्म की महत्ता को उजागर करते हुए बाल पाठकों को कड़ी मेहनत करने के लिए प्रेरित किया गया है तो कृति की अंतिम और नौवीं कहानी ‘घमण्ड बुरी बला’ में बच्चों को घमण्ड की प्रवृत्ति से दूर रहने के साथ-साथ उनके व्यक्तित्व विकास को रेखांकित किया गया है।
राजूराम बिजारणियां राज की बाल कथा संग्रह ‘कुचमादी टाबर’ 1998 में राजस्थानी अकादमी, बीकानेर के प्रकाशित हुआ है। संग्रह में कुल आठ कहानियां है, जिसमें तीन कहानियां ‘पिछतावो’, ‘मजूरी अर दान’ तथा ‘गुमेज रो फळ’ जानवर पात्रों के साथ प्रस्तुत की गई है और शेष पांच कहानियों के पात्र बच्चे हैं।
संग्रह मेें गलती का अहसास कराती कहानी ‘पिछतावो’, राज्य के प्रति सकारात्मक सोच को रेखांकित करती कहानी ‘मजूरी अर दान’, अच्छी संगत का असर अच्छा को प्रस्तुत करती कहानी ‘कुचमादी टाबर’, ईमानदारी की महत्ता को दर्शाती कहानी ‘रामू री ईमानदारी’, बच्चों में वीरता दर्शाती कहानी ‘बिरजू अर चोर’, पर्यावरण के प्रति जाग्रत करती कहानी ‘रूंखां रा चोर’, बुजुर्गों के गिरते सम्मान को मद्देनजर रखते हुए प्रस्तुत कहानी ‘तबलो’ तथा अंतिम कहानी ‘गुमेज रो फळ’ में गधे अैौर गीदड़ के माध्यम से यह बताया गया है कि आदमी को कभी भी घमंड नहीं करना चाहिए।
राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर के आंशिक आर्थिक सहयोग से वर्ष 2006 में कवि, कथाकार, पत्रकार एवं नाट्यकर्मी हरीश बी. शर्मा की पुस्तक ‘सतोळियो’ प्रकाशित हुई है। पुस्तक में कुल सात किशोर बाल कहानियां हैं।
लडक़े और लड़कियों की समानता पर उठे सवालों की कहानी को बहुत ही सहज ढंग से प्रस्तुत किया है कहानी ‘सवाल’ में। बालमन के स्वाभिमान को रेखांकित करती कहानी ‘डाकण’, सरकारी खाली जमीन के सही उपयोग को दर्शाती कहानी ‘इलाज’ के साथ ही जुआरियों में जुए की लत छुड़वाने की एक सशक्त बाल कहानी है ‘जुआघर’।
‘सपना’ कहानी में युवा मन की उथल-पुथल और जीवन से जूझते रहने की जद्दोजहद को सरल एवं सहज ढंग से प्रस्तुत किया गया है। खुद का सपना और पापा के सपने के बीच फंसे प्रत्येक युवा की जीती जागती कहानी है यह ‘सपना’। पुस्तक में किशोर बाल कहानी ‘राड़’ बहुत सशक्त कहानी है, जो सांप्रदायिक सद्भाव को अंगीकार करने की प्रेरणा देती है। स्कूली वातावरण के माध्यम से इस कहानी को बहुत ही संजीदगी के साथ पिरोया गया है। गांवों में फैल रहे अंधविश्वास की बखिया उघेड़ती कहानी मंतर रो जंतर की जीवंत प्रस्तुति के लिए लेखक हरीश बी.शर्मा बधाई के पात्र हैं। ‘सतोळियो’ पुस्तक की सातों कहानियां एक से बढक़र एक हैं। इस पुस्तक को वर्ष 2011 में केन्द्रीय साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली की ओर से राजस्थानी बाल साहित्य के राष्ट्रीय पुरस्कार के लिए चयनित किया गया था।
डॉ. नीरज दइया की बाल कथा कृति ‘जादू रो पैन’ बाल मन की संवेदना को साझा करने वाले डॉ.नीरज दइया स्वयं शिक्षक है और एक शिक्षक जब बाल साहित्य का सृजन करता है तो वह रचना वास्तविकता के आस-पास महसूस होती है। डॉ.दइया की वर्ष 2012 में प्रकाशित बाल कथा कृति ‘जादू रो पेन’ में बच्चों का लडऩा-झगडऩा, खेलना-कूदना, पढऩा-लिखना, छिपाना-बताना आदि अनेक क्रियाक्लापों को बाल कहानियों द्वारा बहुत ही सहज ढंग से प्रस्तुत किया है।
कार्य की नियमितता बनाए रखने की प्रेरणा देती कहानी ‘रोज रो काम रोज’, कहानी लिखने की सीख देती ‘कहाणी लिख सूं’, आपस के मनमुटाव और झगड़ों को मिटाने का मूलमंत्र देती कहानी ‘लड़ाई-लड़ाई माफ करो’, मेहनत का बल पर आगे बढऩे का भेद बताती शीर्षक कहानी ‘जादू रो पेन’, पढ़ाई में ‘शॉर्ट कट’ अपनाने वाले विद्यार्थियों की आँख खोलने वाली कहानी ‘गैस उडग़ी’ समेत ‘फैसलो’, ‘म्हैं चोर कोनी बणूं’, ‘सीखै तो अेक ओळी घणी’, ‘राजू री हुसयारी’, ‘गणित री कहाणी’, तथा ‘बरस गांठ’ भी बालमन की सरल, तरल और सहज कहानियां हैं। इस पुस्तक को केन्द्रीय साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली की ओर से वर्ष 2014 में राजस्थानी बाल साहित्य पुरस्कार से नवाजा गया।
बाल कथाकार श्रीमती विमला भंडारी की राजस्थानी बाल कथा कृति ‘अणमोल भेंट’ में कुल 11 बाल कहानियां हैं। ‘मुसीबत सूं मुकाबलो’ में संकट के समय धैर्य और साहस की जीत को, रोमांचकारी ढंग से चित्रित किया गया है। अनाड़ी लोगों द्वारा जीवों को रेस्क्यू ऑपरेशन के दौरान जो कष्ट भोगना पड़ता है, उसका आभास शानू के मनोस्थिति ‘बाप रे मनख रो कईं बगाडिय़ों, पण मनख वीने लोया जाण कर दीदो’ से बखूबी लगाया जा सकता है।
पर्यावरण चेतना और गुरुभक्ति के ताने-बाने में बुनी ‘वाह रे! दीनू’ एक प्रेरणाप्रद कहानी तो है, इसमें लेखिका ने स्कूल में पढऩे वाले कमजोर तबके के बालकों की मानसिकता और माता-पिता की सोच के मध्य टकराव को बड़े सहजता से पिरोया गया है।
लेखिका ने इस कहानी के माध्यम से बालकों के प्रति माता-पिता को समझदारी भरा नजरिया अपनाने की गुजारिश की है। ताकि बालक आवेग में कोई गलत कदम न उठा लें। दीनू का गुरुजी को अमरूद का पौधा भेंट करना बेशक हाई सोसायटी के के बालकों को हास्यास्पद लगे लेकिन आम बालक पाठक इससे प्रेरित होकर अपने मित्रों, परिजन और गुरुजन को ऐसी ही सार्थक भेंट देंगे। इसमें कोई संदेह नहीं।
‘आ धरती मीठा मोरां री’ में दो भिन्न संस्कृतियों में पले-बढ़े बालकों के वैचारिक टकराव को दर्शाया गया है। यह कहानी बालकों में भारतीय संस्कृति के वसुधैव कुटुम्बकम की महत्ती भावना जगाने का प्रयास करती है। अपनी संस्कृति के कोरे गीत गाने की बजाय, उसे अपने जीवन के रोजमर्रा व्यवहार में ढालना ज्यादा श्रेयस्कर और प्रभावी है। इस बात को यह कहानी बहुत ही सहज ढंग से बयान करती है। ‘समझ ग्यो स्टीफन’ में शिमला घूमने को आतुर स्टीफन को उसकी मां, दादी के दुर्घटनाग्रस्त होने पर जिस तरह समझाकर उसका कर्तव्यबोध कराती है। इसका जीवन्त चित्रण करते वक्त विमलाजी की किस्सागोई देखते ही बनती है।
‘राती आँख्यां’ में शराबखोरी का दुष्परिणाम विमला जी ने पूरी निष्पक्षता के साथ उकेरा है। इसमें एक शाश्वत सत्य यह भी छिपा है कि बच्चे जाने अनजाने अपने माता-पिता के कृत्य व्यवहार की नकल करते हैं। जिस परिवार में बड़े द्वारा कोई नशा किया जाता है। उस परिवार के बच्चे भी आसान से नशे की लत के शिकार हो जाते हैं। ‘मोबाइल री गाथा’ और ‘किस्तर व्हियौ’ में पतंगबाजी का असावधानीपूर्वक प्रयोग की हानियां बड़ी सजगता से उकेरी गई है। ‘कठपुतली री मान’ में बालकों को अनपढ़ों के प्रति सहृदय बनने की सीख दी गई है। बालक चाहे तो अपने अशिक्षित बुजुर्ग, दूधवाले, चौकीदार और घरेलू कामगारों को शिक्षित करने का दायित्व निभा सकते हैं। इस चीज को विमला जी ने बड़ी बारीकी से बालकों के समक्ष प्रस्तुत किया है।
‘जस जसो नाम’ में भाप के इंजन के आविष्कारक जेम्स वाट की जीवनी को सहज बोधगम्य ढंग से समझाया गया है। ‘भाई-बहिन’ कहानी यूं तो सगे भाई बहिन पर आधारित लगती है, विमला जी ने इसे विवेकानंद के वैश्विक बंधुत्व के असीम फलक के परिप्रेक्ष्य में बड़े रोचक ढंग से प्रस्तुत किया है। स्वामी जी के शिकागो सम्मेलन की जग प्रसिद्ध कथा को वर्तमान युग के बालकों के सामने जिस तरह से विमला जी लिपिबद्ध किया है, वह अतुलनीय है। इस पुस्तक ‘अणमोल भेंट’ को केन्द्रीय साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली की ओर से वर्ष 2013 में राजस्थानी बाल साहित्य पुरस्कार से नवाजा गया है।
साहित्यकार डॉ.कृष्ण कुमार आशु का राजस्थानी बाल संग्रह ‘धरती रो मोल’ सन् 2013 में राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर के आंशिक आर्थिक सहयोग से प्रकाशित हुआ था। इस संग्रह में कुल तीन बाल कथाएं हैं। सभी बाल कथाएं आकर्षक, रोचक एवं प्रेरणाप्रद हैं। पहली कहानी ‘धरती रो मोल’ में एक किशोर के माध्यम से बताया गया है कि अपनी कृषि भूमि बेचकर ऐशोआराम की जिन्दगी बिताना सही नहीं है। यह सभी के लिए घातक है। कृषि भूमि का उपयोग कृषि के लिए ही करना चाहिए। भले ही उससे आय कम हो। दूसरी कहानी ‘राजा रो न्याव’ में रोचक किस्सों के साथ यह बताया गया है कि सत्ता का उपयोग जनकल्याण में किया जाना चाहिए। तीसरी कहानी ‘असल कामयावी’ में बढ़ रही दिन प्रतिदिन की इस प्रवृत्ति के दुष्परिणाम से सचेत किया गया है, जिसमें हम अपने बच्चों पर अधिकाधिक अंक प्राप्त करने का अंध-दबाव बनाए रखते हैं। इस बाल कथा संग्रह को वर्ष 2015 में केन्द्रीय साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली की ओर से राजस्थानी बाल साहित्य के पुरस्कार से नवाजा गया है। डॉ.कृष्ण कुमार आशु राजस्थानी के बाल साहित्य की समृद्धि के लिए निरंन्तर प्रयासरत हैं।
वर्ष 2014 में प्रकाशित सी.एल.सांखला की बाल कहानियों की पुस्तक ‘चड़ा-चड़ी की खेती’ कुल 13 बाल कहानियां हैं। यथा- बला टळगी, किसन्यो अर चड़ी का बच्चा, छोर्यां अर तूमड़ी, पूत का लक्खण, चड़ा-चड़ी की खेती, पढबा की चावन्या, दो भाईला, मारबल्याव, गुरु-किरपा, इस्टूडेण्ट, ख्याणी जरक्या अर खरगोस्या की, गुरु-चेला अर शिक्सा और आखिरी कहानी है-चन्दरमोळकी। बच्चे अक्सर मनोविनोद की कहानियां अधिक पसंद करते हैं, लेकिन इस पुस्तक में आज की नई बाल पीढ़ी के लिए जीवन को नई दिशा देने वाली कहानियां दी हैं।
लोक कथा शैली की इस पुस्तक में बच्चों के लिए कुछ जीव-जंतुओं को आधार बना कर कहानियां रची गई हैं तो अधिकांशत: बच्चों के यथार्थ जीवन पर आधारित है। दया, प्रेम, करुणा व मनुष्यता के भावों की सौम्य अभिव्यक्ति के साथ-साथ खतरों से भरी दुनिया में चिडिय़ा जैसे सीधे-सादे जीव का साहसपूर्ण जीवन पाठक के मन में जीवटता जगाता है। स्त्री व माँ दोनों के महत्त्व को दर्शाता है। ‘चड़ा-चड़ी की खेती’ एक ऐसी कहानी है, जिसमें सहज बाल मन के अनुरूप चिड़ी का बार-बार घोंसला बनाना तो है ही, दाने-चुग्गे को पाने की अंतहीन भटकन और उससे निजात पाने का श्रमसाध्य प्रयास भी है। अंत में सफलता और सुकून भी। पुस्तक की सभी बाल कहानियां चरित्र, संस्कार, स्नेह, विनोद के साथ ही समरसता व सुखद सौहार्द का संदेश देती हैं। इस पुस्तक को वर्ष 2018 में केन्द्रीय साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली से राजस्थानी बाल साहित्य पुरस्कार से पुरस्कृत किया गया है।
वर्ष 2017 में प्रकाशित बाल साहित्यकार राजेश अरोड़ा की बाल कहानियों की पुस्तक ‘स्टूडेंट ऑफ द ईयर’ कुल 13 बाल कहानियां हैं। जो सभी स्कूली परिवेश की हैं और सभी कहानियां मानवीय मूल्यों को ध्यान में रखकर रची गई हैं। राजेश अरोड़ा की एक और पुस्तक ‘संकळप रो सनमान’ जो वर्ष 2010 में प्रकाशित है। इस संग्रह में कुल 11 बाल कहानियां हैं।
‘संकळप रो सनमान’ बाल कहानी संग्रह की ‘दिनुंगै रो गम्योड़ो’ एक बेजोड़ कहानी है। रचनाकार ने हिन्दू-मुस्लिम एकता के सांप्रदायिक सद्भाव का कहीं भी जिक्र नहीं किया। यह समस्या भी नहीं उठाई। इसके बावजूद भी यह कहानी इस समस्या का सटीक समाधान प्रस्तुत करती है। ‘आचरण’ कहानी में झूठ और कपट के सरल रास्ते और सच्चाई के मार्ग पर चलने पर आने वाली कठिनाइयों का प्रधानाध्यापक जी के माध्यम से प्रभावी चित्रण किया गया है।
‘भायला’ कहानी में पापा कहानी के पात्र गगन के भीतर उसके मन के अंदर के मित्रों के प्रति एक नया उत्साह जगाकर उसे प्रोत्साहित करते हैं। वे बताते हैं कि आत्मबल, धैर्य, हिम्मत, विनम्रता और विद्या। जो इन पांचों को कोई अपना मित्र बना लेता है, उसे किसी दूसरे को मित्र बनाने की जरूरत ही नहीं है। कहानी ‘बजन’ में मजबूत इरादों के वजन की, ‘बाणी रो तप’ में विवेक और सच बोलने की सीख मिलती है, वहीं ‘मोल’ में वाणी के मिठास और ‘आतम बल’ में आत्मा के बल की महता को बहुत ही सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया गया है। शीर्षक कहानी ‘संकळप रो सनमान’ एक असरदार कहानी है। इसमें यह दर्शाया गया है कि तन और मन के बल से जीवों की भूख मिटाने का प्रयास सच में मानवता का सच्चा श्रृंगार है। खुद के नाम के साथ कोई पहली बार अपनी रचना देखता है तो उसे कितनी खुशी होती है। यह ‘अणमोल निजराणो’ कहानी में बहुत ही सरल, सहज और सुंदर ढंग से रचनाकार ने प्रस्तुत किया है।
वर्ष 2017 में प्रकाशित बाल कथा संग्रह ‘दादीमा री लाडली’ राजस्थानी में युवा लेखक डॉ. मदन गोपाल लढ़ा का दूसरा बाल कथा संग्रह है। इससे पूर्व 1998 में ‘सपनै री सीख’ संग्रह प्रकाशित हो चुका है। संग्रह में कुल 11 बाल कहानियां हैं। कहानियों में राजस्थानी भाषा और परिवेश की मोहक छटा है साथ ही कहानियों के शीर्षकों में गहरी सूझ-बूझ दिखाई देती है।
प्रस्तुत बाल कथा संग्रह की समस्त कहानियों का परिवेश मरूभूमि का ग्रामीण क्षेत्र हैं। कहानियों की मुख्य विशेषता है इनके सीधे-सादे पात्र, बोलचाल की सरल-सहज ग्रामीण भाषा तथा दैनिक जीवन में बोलचाल में आने वाले मुहावरें-लोकोक्तियां। कहानियों का कलेवर बड़ा नहीं है, यह शायद बच्चों की पठन सीमा को ध्यान में रखते हुए किया गया हो, लेकिन कहानियों का संदेश अपने अर्थ में व्यापक है। प्रत्येक कहानी एक निश्चित ध्येय को लेकर चलती है और पाठक के मन-मस्तिष्क में घर कर जाती है।
संग्रह की पहली कहानी ‘छतरी-सो आभो’उन लोगों को प्रोत्साहित करती है जो पढऩे-लिखने में कुशल है लेकिन अपने ‘कम्फोर्टेबल जोन’ से बाहर आने से कतराते व घबराते हैं। कहानी की पात्रा गुंजन भी एक ऐसी ही लडक़ी है, लेकिन आस-पास का माहौल उसे प्रेरित करता है कि वह भीरू स्वभाव को छोड़ अपनी जिंदगी को बेहतर बनाने के लिए गांव से बाहर निकले। लेखक ने गुंजन के बहाने ऐसे लेागों को इस कहानी के माध्यम से आगे बढऩे के साथ-साथ जीवन में संघर्ष से दो-चार होने की भी प्रेरणा दी है। कहानी ‘मैणत रो फळ’ में लैपटॉप की चाह के बहाने बालिका शिक्षा को प्रोत्साहित किया गया है। ‘जठै चाह बठै राह’ में खेल के महत्व को स्थापित किया गया है।
भारत में आज भी खेलकूद को अच्छी दृष्टि से नहीं देखा जाता तथा इसे ‘आवारापन’ से जोड़ा जाता है। सही शैक्षणिक मार्गदर्शन के अभाव में माता-पिता को पारम्परिक किताबी ज्ञान में ही अपने बच्चों का बेहतर भविष्य नजर आता है,ऐसे में उन्हें यह बात गले से नहीं उतरती कि खेलकूद से भी बच्चा अपना भविष्य बना सकता है। शीर्षक प्रधान कहानी ‘दादीमा री लाडली’ में मोबाइल की उपयोगिता के साथ गोमती की हिम्मत का वर्णन है। कहानी में गोमती पोते की तरह लाडली है, यह घटते लैंगिक भेदभाव का अच्छा उदाहरण है। कहानी ‘भूल सुधार’ चाइनीज मांझे के नुकसान और पंछियों के प्रति करुणा के भाव दर्शाती है। कहानी का पात्र अरुण चाइनीज मांझे से कबूतर के बुरी तरह से घायल हो जाने पर अपनी चाइनीज मांझे की चरखी को आग लगा देता है।
‘सांचो सबक’ इस संग्रह की साधारण घटनाक्रम वाली असाधारण कहानी है। कहानी का मुख्य पात्र सडक़ पर मिले रुपयों से भरे पर्स के मिलने से खुश है लेकिन पिता द्वारा पर्स के मालिक को ईमानदारी से पर्स लौटा देने पर बच्चे को जीवन में ईमानदारी अपनाने की सही प्रेरणा मिलती है।
आज जब स्कूलों के पाठ्यक्रम से ही नैतिक शिक्षा गायब की जा रही है तथा समाज में नैतिकता को हास्य से जोड़ कर देखा जा रहा है और पुस्तकालयों की जगह गड़बड़झाले से भरे इंटरनेट को प्रधानता मिल रही है तो ऐसे में सिर्फ बच्चों के अभिवाहक ही उन्हें अपने नैतिक आचरण से जीवन में उच्च मूल्यों को अपनाने की प्रेरणा दे सकते हैं। श्रेष्ठ जीवन मूल्य को अपनाने की प्रेरणा देने का संतुलित खाका है कहानी ‘सांचो सबक’। संग्रह की अंतिम चार कहानियां भी अत्यंत उद्देश्यपूर्ण हैं। इन्हें संग्रह की अन्य कहानियों की तरह सीधे मनोरंजन से तो नहीं जोड़ा जा सकता लेकिन लेखक की बिना लाग लपेट की शैली पाठक को बरबस अपनी ओर खींच ही लेती है।
‘रमता कान्ह-गुवाळ’ में नायक ईष्र्यावश मेरिट में आने के लिए बड़ी सख्ती के साथ अपने आप को पढ़ाई में लीन कर लेता है और अपने स्वास्थ्य की परवाह न करते हुए खेलकूद की अवहेलना करता है। नतीजन वह गंभीर रूप से बीमार पड़ जाता है। भारत में यह समस्या केवल भावेश की ही नहीं है बल्कि भारत के उन तमाम लोगों की है, जिन्हें किताबों के अलावा कुछ सूझता ही नहीं है।
बचपन से युवावस्था तक खेलकूछ की शिक्षा के साथ अनिवार्यता कितनी आवश्यक है यह हमारे परिवार, समाज व सरकारें कब समझेगी? ‘सांचो संकल्प’ कहानी में गायत्री के माध्यम से लेखक ने उन सभी बालिकाओं को जवाहर नवोदय विद्यालय का लाभ उठाने को प्रेरित किया है जिन्हें वाकई में अपना उज्ज्वल भविष्य बनाना है। अंतिम दो कहानियों में ‘ओ मारग म्हारो कोनी’ कहानी वाकई में अत्यंत रोचक बन पड़ी है। यह कहानी बताती है कि ऐसा क्यों कहा गया है कि ‘एक बच्चा आदमी का पिता होता है’। एक खत के माध्यम से गणपत ने जिस तरह अपने पिता को अपने मन की बात खुल कर लिखी है, वह अत्यंत प्रभावी है। कोटा में रहकर पढ़ाई कर रहा गणपत सफलता के साथ हार को भी स्वीकारने को तैयार है, लेकिन यह हार भी उसके लिए सकारात्मक ही होगी, ऐसा वह नि:संकोच अपने पिता को कहता है। यह कहानी उन लोगों को अवश्य पढऩी चाहिए जिन्होंने एक हार से ही निराश हो कर मौत को गले लगाने का विचार किया। अंतिम कहानी ‘गळती रो अेहसास’ में बेईमानी पर सच्ची दोस्ती का प्रभाव बताया गया है।
वर्ष 2019 में प्रकाशित युवा रंगकर्मी एवं बाल साहित्यकार मानसी शर्मा की राजस्थानी बाल कहानियों की प्रथम पुस्तक ‘च्युइंग गम’ प्रकाशित हुई है। पुस्तक में कुल आठ बाल कहानियां हैं। जो एक से बढक़र एक हैं। इस संग्रह की प्रथम कहानी ‘कंप्यूटर’ आम आदमी को सचेत रहने की सीख देती है। कहानी का पात्र मनोज एक बार जो संख्या देख लेता है, तो वह संख्या उसके दिमाग में बैठ जाती है। अपनी इसी याददास्त के कारण वह चीज खरीदने से पहले सेठजी को दिए गए पांच सौ रुपये के सही नम्बर बताकर अपनी ईमानदारी का सबूत देने में सफल होता है और फिर इन्हीं सेठजी से शाबाशी लेता है। संग्रह की कहानी ‘ऐना री बहादरी’ में जहां गुरुपद से गिरे हुए चरित्र के एक शिक्षक का भंडा फूटता है, वहीं ‘च्युइंग गम’ कहानी से गुरुपद की महिमा का गुणगान भी होता है। ‘कियां बणै इन्दर धनख’ में संवाद भी मनोविज्ञान की दृष्टि से स्वाभाविक और सशक्त हैं। ‘लिछमी री कदर’ कहानी में पंजाबी संस्कृति के समूचे मानवीय सोच को रेखांकित किया गया है। इसमें लक्ष्मी यानी धन के सदुपयोग के लिए सचेत करने का संकेत दिया गया है। ‘संकळप री सगती’ नमिता अपने फौजी पिता की मृत्यु के पश्चात् भी अपनी मेहनत, लगन और संकल्प के कारण बड़ी अफसर बन कर निराश लोगों में आशा की किरण जगाती है। ‘घण्टी’ कहानी में एक शरारती बच्चे की शरारत को बताते हुए इसे लेखिका मानसी शर्मा ने बच्चे को बहुत ही सहज ढंग से सुधारने का संकेत दिया है।
‘खुसियां री बिरखा’ में एक मृतक की छाती पर गली में खेल रहे बच्चों की फुटबॉल लगने से उसकी धडक़न चालू हो जाती है और वह जिन्दा हो जाता है। विज्ञान की दृष्टि से ऐसा होना संभव भी है। इस घटना को मानसी ने बहुत ही सहज शब्दों में प्रस्तुत किया है। ‘च्युइंग गम’ संग्रह की सभी कहानियां शोषण और सामाजिक विसंगतियों के खिलाफ जागरूकता भी पैदा करती है। सार रूप में कह सकते हैं कि यह पुस्तक ‘गागर में सागर’ है। इस दृष्टि से मानसी शर्मा का यह संग्रह अंधेरे में उजाले की किरणें फैलाकर खुशियों की बरसात करता रहेगा। यह संग्रह मानसी के लिए मील का पत्थर साबित होगा। ऐसा विश्वास है।
समय-समय पर अनेक रचनाकारों की कृतियां प्रकाश में आई हैं। यथा- मधु आचार्य ‘आशावादी’- खुद लिखें अपनी कहानी, ओम प्रकाश तंवर- मेह बाबो आयो, मधु आचार्य ‘आशावादी’ -मुन्नी का मन, संदीप कुमार मील-बातां री ओबरी, मोहनसिंह-आपणी कथावां, लक्ष्मी निवास बिड़ला-लोक कथावां, आनंद आचार्य- छोटै मुण्डै बड़ी बात, रामसुख व्यास-स्वार्थी जीव, राजेश अरोड़ा- मन मांयला मीत, ज़ेबा रशीद- मीठी बातां, ओमप्रकाश सारस्वत - जिण री लाठी उण री भैंस, ओमप्रकाश- साचौ बेलीपो, अवकाश सैनी -दरखतां री दरकार, गौरीशंकर निमिवाल -पछतावौ, राजेश अरोड़ा - सोने मांय सुहागो, सुरेन्द्रसिंह - सांची सीख, आर.जानकी व्यास -‘विश्वास री बात’ पुस्तकें उल्लेखनीय हैं।
इनके अलावा अनेक रचनाकार भी हैं जिनकी आने वाले समय में बाल साहित्क की पुस्तकें आने की संभावना है। यथा-बुलाकी शर्मा, श्रीभगवान सैनी, बसंती पंवार, किशोर कुमार निर्वाण, दुष्यन्त जोशी, पवन पहाडिय़ा, डॉ. सत्यनारायण सत्य, डॉ. शारदा कृष्ण, ऋतुप्रिया, प्रवीण पुरोहित के अलावा और भी कई नाम हो सकते हैं, जो इस समय मुझे याद नहीं आ रहे हैं।
राजस्थानी बाल साहित्य की श्रीवृद्धि में कुछ पत्र-पत्रिकाओं के संपादकों ने भी पूर्ण सहयोग दिया है। उनमें राजस्थानी मासिक पत्रिका ‘माणक’, राजस्थानी मासिक पत्रिका ‘जागती जोत’, बच्चों का पाक्षिक अखबार ‘टाबर टोल़ी’, राजस्थानी बाल अ$खबार ‘कानिया मानिया कुर्र’, मासिक पत्रिका ‘रूड़ौ राजस्थान’ मासिक, ‘बाल वाटिका’ हिंदी मासिक, राजस्थानी तिमाही ‘राजस्थली’, राजस्थानी तिमाही ‘हथाई’, राजस्थानी तिमाही लीलटाँस, ‘जलते दीप’ दैनिक, ‘युगपक्ष’ और दैनिक तेज आदि ने राजस्थानी बाल साहित्य को पूरी तवज्जो दी है, जिसके लिए उक्त पत्र-पत्रिकाओं के संपादक भी बधाई के पात्र हैं।
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