समंदर और लहरों की राजनीति
बी. एल. आच्छा
समंदर का अपना लोकतंत्र है। ज्वार और भाटा उसकी प्रकृति है। किनारों से टकराना रोजमर्रा दिनचर्या है। पार्टियों के लोकतंत्र की तरह। महापार्टी में मुद्दों की पॉलीटिक्स, पर भीतर में शिखर हथियाने का लहरिया लट्ठमलठ्ठा। काबिज बने रहने और काबिज होने की पॉलिटिक्स। अपनों-अपनों के लिए कुर्सी की तरतीब! समन्दर में अपने-अपने द्वीप। कोई प्रशान्त महासागर में कब्जे का चक्रव्यूह रचता है, तो कभी हिन्द महासागर। पार्टियाँ भी अंदरूनी लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की आजादी के बीच लहरों का ताण्डव रचती हैं।
इस बार लहरों ने अपने समन्दर से ही कह दिया। शिखर बदलो। नयों को मुकुट पहनाओ। हमारा हिस्सा तय करो। और लहरें शोर मचाती हुई किसी रिसोर्ट में कोप भवन बना गयीं। समन्दर ने समझाया। खूब मान - मनोव्वल की। सरकार टूटने- बिखरने के खेल। ऊपर में एकता और सिद्धान्तों के मुलम्मे। भीतर में किनारों पर कब्जे की चाह ।कुछ लहरें अधर में.. इधर बने रहें... या कि उधर चले जाएँ। कभी पूर्वी लहरों ने ताल ठोककर शिखर को हिलाया, तो कभी पश्चिमी लहरों ने समन्दर का साथ दिया। अवसर तलाशती रहीं निर्दलीय लहरें।
समन्दरिया पार्टी ने अनुशासन के डंडे चलाए। कभी भीतरघात तो कभी बाहरघात। वक्तव्यों की मिसाइलें।आरोप-प्रत्यारोप के ज्वार। टूट गया समन्दर। अपनी ही लहरों के उत्पात से, नया द्वीप रचता हुआ। अजीब सा था। एजेण्डा वही। झंडा आसपास का। लहरों-बूँदों का गठजोड़! आखिर नया द्वीप खड़ा हो गया। चुनाव हो गये। पक्ष-विपक्ष ने दम दिखाया। मगर बहुमत से दूर।
जुगाड़ की राजनीति ने पुरानी लहरों को समन्दर में विलय की सलाह दी। फिर से समन्दर में मिल जाओ, बागी लहरों!। मगर लहरों के इस गठजोड़ ने विलय से साफ इन्कार कर दिया। लहरों के मुखिया ने कहा - "सत्ता और पार्टी में अपना दबदबा कायम रखना है, तो अपने गुट को बरकरार रखो! स्वतंत्र पहचान और मान्यता के बिना लुढ़क गये ,तो गये सत्ता से। अपना झंडा, अपना डंडा, अपनी शर्तें। "मुखिया ने फिर कहा- "समन्दर में मिल जाओगे तो सत्ता से गठजोड़, सत्ता में भागीदारी, धमकी के अंदाज खत्म हो जाएँगे। कुछ पाकर समर्थन दे दो, पर अलग बने रहो।" समन्दर और लहरों के बीच रस्साकस्सी के खेल। कुछ हथियाने के कुछ पा जाने के।
नयी लहरों ने इस पॉलिटिक्स के नये वायरस को पहचाना। कुछ लहरें बोलीं-" हम तो उस दिशा के हैं। हमें क्या मिला? हम क्या लहर बनकर ही रह जाएँगे? फिर नये समूह के भीतर क्षेत्रीय समीकरणों का ज्वार। 'लहरें उठीं और क्षेत्रीय समीकरणों में अपनी पहचान बना गयीं। फिर नये नये द्वीप कायम हुए ।
तभी कुछ लहरों ने अपनी जाति को पहचाना। विचारों को रंग दिया। झंडा दिया। नारे दिये। ये लहरे ऊँची थीं। कुनबे के कुनबे सवार हुए। वोट तब्दील हो गया जाति के फिक्स्ड डिपोजिट में। तलहटियों ने कुनबों को शिखर बना दिया। तलहटियाँ वैसी ही रहीं, बस उन्हें गौरव मिला कि शिखर हमारे हैं। इन लहरों ने अपना- अपना हिस्सा माँगा। लहरों का समन्दर से गठबंधन। समन्दर का जल, उसी से उठी लहरें। मगर लहरों की अपनी पहचान । झुकना पड़ा समन्दर को, अपनी ही लहरों के आगे।
लहरों के भी अपने कोण होते हैं। हवाएँ उनकी संगी साथी । पूरा मिले, न मिले, मगर छोटे- छोटे शिखरों की अपनी अहमियत! जब बड़े समन्दर अपने शिखर रच रहे हैं, तो छोटे भी अपन हिस्सा पा जाने में ही मशगूल। कभी इसके साथ, कभी उसके साथ। हवाओं को बहते देखकर। तापमान को चढ़ते देखकर कभी समन्दर मनाता है लहरों को। कभी लहरें समन्दर को अपने झटके देती हैं। कभी पछाड़ती हैं किनारों को! कभी समन्दर की नयी लहरों को साझीदार बनाती है। कभी इन लहरों की ही आपसी भिड़न्त। टूटते- बिखरते नये राजदारों को तलाशती है। लहरों के पास समन्दर की तरह ही एजेण्डा है। तथाकथित निष्ठाएँ है। नारे हैं! फलसफे हैं। सिद्धान्त हैं। समर्पण है। मगर पाने के लिए भीतर के पेंच हैं। गठजोड़ हैं। लाभ के गणित हैं। टूटने- बिखरने- जुड़ने- पाने के गुणा- भाग हैं।
लोकतंत्र हो या राज तंत्र। सैन्य हो या कुनबाई। निर्दलीय से लेकर गठबन्धन तक। देश से लेकर विदेश तक सैन्य से लेकर ग्लोबल बाजार- बंधन तक। समन्दर से बनी, समन्दर से उठीं ये लहरें समंदर आस्था से कितनी बेगानी हो जाती हैं!
बी. एल. आच्छा
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