बच्चों के लिए रचना
👱♂️ दद्दा 👱♂️
डाक्टर मना किया था मीठा,
दद्दा को था रोग अनूठा,
देख मिठाई लार चुआते,
बिन मीठा सब लगता झूठा।
खीर मुरब्बा घर में बनता,
दद्दा को मीठा ना मिलता,
माँग माँग कर दद्दा हारे,
बिन मीठा घर बैरी लगता।
रात अँधेरी मोटा गद्दा,
नींद न आती जगते दद्दा,
इस कोने से उस कोने तक,
करवट बदल रहे थे दद्दा।
मीठा खाऊँ यह मन करता,
पकड़ न जाऊँ डर भी लगता,
सब सोए थे नींद में गहरी,
बेकाबू मन खूब तड़पता।
महक लगी दद्दा ललचाया,
उठकर अलमारी तक आया,
लगा खोलने हर डिब्बे को,
दद्दा का मनवा भरमाया।
चुपके चुपके खोला डिब्बा,
डिब्बे में था गरम मुरब्बा,
जीभ जल गई जैसे खाया,
गिरा हाथ से उनके डिब्बा।
घर के लोग सभी उठ जागे,
दद्दा जी कमरे मे भागे,
कसम खा रहे कान पकड़ कर,
करेंगें गलती अब न आगे।
अशोक श्रीवास्तव 'कुमुद'
राजरूपपुर, प्रयागराज
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