अशोक श्रीवास्तव कुमुद की सर्वश्रेष्ठ कविता
🤱 माँ 🤱
प्यास लगती कभी मुझको
सूख जाते थे उसके होंठ
भूख लगती जब मुझको
बेचैन होता उसका दिल
धड़कता वो पाक दिल
खुदा शायद तुम्हारा था
गिर जाता था बचपन में
दौड़कर मुझे उठाता था
पोंछता मेरे आंसुओं को
चुप मुझको कराता था
नाज़ुक हाथ वो पतले
खुदा शायद तुम्हारे थे
झलकता था मेरा हर दर्द
उन्हीं मासूम आंखों में
बह जाता था इक सैलाब
अश्कों का उन आंखों से
प्यारी मासूम सी आंखें
खुदा शायद तुम्हारी थी
घबराता मैं मुसीबत में
दिलासा उसका होता था
खुश होता मैं सफलता से
खुशी झलकती उस चेहरे पे
भोला भाला सा वो चेहरा
खुदा शायद तुम्हारा था
संभाला होश जब मैंने
खुदा तुमको बहुत ढूंढा
भटकता रहा मैं उम्रभर
खुदा को अब समझ पाया
खुदा खुद ही थे काया में
जिसे मैं मां समझता था
अशोक श्रीवास्तव "कुमुद"
राजरुपपुर, इलाहाबाद
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