अशोक श्रीवास्तव "कुमुद" की काव्य कृति "सोंधी" महक से ताटंक छंद पर आधारित रचना
👩💼 औरत 👩💼
गँउआ गँउआ बिजली पहुँची
घर घर में उँजियारा बा
औरत जात अबौ दुखियारी
मन छाया अँधियारा बा
चूल्हा चक्की भई विरासत
ताना वही पुराना बा
घर के भीतर कैद रखै का
शर्मो हया बहाना बा
बेफ़िक्री में घूमै मर्दे
नारी लगत अबौं दासी
तंग रहैं पल पल तानों से
बेबस जियत रहै त्रासी
सुनना ही संस्कार हुआ जब
लगा हुआ मुँह ताला बा
रोम रोम में अश्क भरा अब
नैना खाली प्याला बा
कभी अहिल्या कभी पद्मिनी
सहती दर्द हलाला बा
जज़्बातों की कद्र हुई ना
जख्म हिया विकराला बा
घूंघट से यह निकल न पाई
हुआ हिजाब सवाला बा
धर्म रिवाजों की बेड़ी में
जकड़ी रोज बवाला बा
बोझ लगे क्यों कन्या सब को
शोक जनम पर काहे का
गृहलक्ष्मी कुलवधू कहावै
फिर सब क्यों मिलि डाहे का
बेला सीता सलमा रोज़ी
निज ताकत पहचानै ना
खुद में खुद विश्वास नहीं अब
खुद को भी अब जानै ना
घूमै बुधिया अलख जगावै
औरत के अधिकारे का
सोच बदल दे गँउवा मनई
करता जतन सुधारे का
करै जागरुक बोलै सबसे
कन्या खूब पढ़ावै का
छोड़ पुरातनपंथी रस्मे
नई सोच अजमावै का
ज्यों ज्यों औरत बढती आगे
त्यों त्यों देश बढ़ै आगे
कंधे कंधे जब मिलि चलिहें
भारत भाग्य तबै जागे
जागो नया सबेरा आया
छोड़ो रस्म सलामी का
खुले गगन में मुक्त उड़ो सब
बंधन काट गुलामी का
राजरूपपुर, प्रयागराज
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