विश्व मातृ दिवस पर आज, मेरी प्रकाशित होने वाली काव्य कृति "माँ मुझें याद है" के कुछ अंश अपनी माँ को समर्पित कर रहा हूँ।
प्रमोद ठाकुर
🤱"माँ मुझें याद है"🤱
कॉलेज पास कर,
डिग्री लेकर घर आना।
माँ के पैर छूना।
माँ का खुशी से , सीने से लगाना।
खुशी के आँसू , आँखों में छलक आना।
पूरे मोहल्ले में लड्डू बाँटना।
घर में एक उत्सव सा मनाना।
माँ मुझें याद है।
वो नौकरी के लिए,
हर दफ़्तर के चक्कर लगाना।
सुबह से शाम तक, जूते घिसाना।
निराश होकर घर लौटकर आना।
माँ का सिर पर हाथ फेर,
मेरा आत्मविश्वास बढ़ाना।
माँ मुझें याद है
एक दिन नौकरी की,
ख़बर लेकर घर आना।
माँ की आँखों से,
खुशी के आँसू बहना।
अपनी सारी ममता मुझ पर लुटाना।
मुझें भी अपने आपको रोक न पाना।
माँ के साथ ख़ुद भी आँसू बहाना।
माँ का पल्लू से, वो आँसू पोछना।
माँ मुझें याद है।
लड़की बालों का, मुझें देखने आना।
लदे वृक्ष की तरह, माँ का झुक कर बात करना।
बेटे वाले होने का, कोई अहंकार न होना।
लड़की बालों का वो हाँ करना।
माँ के चेहरे पर खुशी के भाव उभरना।
माँ मुझें याद है।
वो सास - बहू की तकरार होना।
घर के बर्तनों का खड़कना।
एक दूसरे से रूठ जाना।
थोड़ी देर में एक दूसरे को मनाना।
अगले पल तकरार भूलकर,
एक दूसरे को गले लगाना ।
माँ मुझें याद है।
माँ को नये महमान, की ख़बर लगना।
बहु को कई हिदायतें देना।
मुझें डाँटकर,
अपने काम ख़ुद करने को कहना।
बेटी की तरह ,
हर समय ध्यान रखना।
माँ मुझें याद है।
घर में नये महमान की ,
किलकारी का गूँजना।
माँ का दिन भर लिए-लिए घूमना।
शायद मेरा बचपन उसमें तलाशना।
वो सरसों के तेल की मालिश करना।
तोतली ज़ुबान से , उससे बातें करना।
माँ मुझें याद है।
एक दिन बज्रपात होना।
माँ का दुनियाँ से रुख़्सत होना।
पोते का घटनों पर चल कर,
दादी के पास जाना।
कभी उसकी नाक, कभी गालों को दबाना।
दादी का न बोलना, नन्हीं सी जान का रोना।
वो ह्रदय-विदारक दृश्य देखना।
मेरी आँखों से अविरल धारा का बहना।
माँ मुझें याद है।
एकांत में माँ की यादों को याद करना।
अगर कोई आजाये तो आंसुओ को छुपाना।
उसका वो कमीज़ में बकसुआ लगाना।
चंद सिक्कों का खीसें ने डालना।
अब उन यादों का कुछ धुँधला हो जाना।
लेकिन माँ मुझें आज भी याद है।
© प्रमोद ठाकुर
ग्वालियर, भारत
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