👨👦 पिता भी तो माँ हैं 👨👦
तुम्हारी अस्थि, मज्जा और रक्त
का ही एक अंश हूँ मैं ...
मेरी हलक से निकला पहला
शब्द भी तुम ही हो
मेरी पहली शिक्षिका और अन्तिम
भी तुम हो
तुम्हारी स्नेहिल स्मृतियों का एक
प्रकाश पुंज हूँ मैं ....
सुना और देखा जब आज मातृ दिवस की चर्चा
सच! तुम्हारी स्मृति आँखों से झर-झर कर
मेरे पास आयी...
तुम्हारी तमाम बातों का एक
सहेजा दस्तावेज हूँ मैं ....
तुम्हारी स्मृति ने जब-जब मुझे
व्यथित किया
एक किरण ने हौले से बस यही कहा
पिता भी तो माँ हैं..
तुम्हारी बहुत सी आदतों का
नन्हा खिलौना हूँ मैं....
पिता को जब भी देखती हूँ
तुम्हारी स्मृतियों का अमलताश
नजर आता है मुझे
भीष्ण तपन में भी अमलताश के
झूमते गुच्छों की तरह पिता आज
भी तुम्हारी स्मृतियों के सहारे
हमारे जीवन में रंग भरते हैं
बिल्कुल तुम्हारी तरह
तुम्हारे रुप, रंग, आकार का
दूसरा नमूना हूँ मैं...
पिता सहेजते हैं एक-एक सामान
बड़े सलीके से
वे सहेजते हैं मेरा बैग आज भी
बिल्कुल तुम्हारी तरह
तुम्हारे हौसलों और संजोये स्वप्नों
का पूरित परिन्दा हूँ मैं....
घर की दहलीज पर खड़े होकर
विदा के क्षणों में मुझे घंटो निहारना
तुम्हारी इस आदत से पिता और मैं दोनों वाक़िफ हैं
आदतन पिता बिल्कुल तुम्हारी ही तरह
हर शनिवार निहारते हैं मेरी राह
सप्ताह के सातों दिनों को गिनकर
सच! तुम्हारी स्मृतियाँ, तुम्हारे बोल, तुम्हारे गीत
सबका प्रतिरुप हैं 'पिता'
मातृ दिवस पर सभी माँ और माँ की ही तरह बच्चों को सहेजने वाले पिताजी को स्नेहिल शुभकामनाएँ....
ऊँचाहार, रायबरेली (उ०प्र०)
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