स्तुति राय की कविता : मैं चाहती हूं

Dr. Mulla Adam Ali
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Main Chahti hun Poetry By Stuti Rai

💗 मैं चाहती हूं 💓

मैं चाहती हूं

मेरे हाथ 

तुम्हारी हथेलियों में

खो जाए,

मेरी निगाहें

तुम्हारी निगाहों में

खो जाए,

तुम्हारा प्रेम

उन शबनम की

बूंदों की तरह है

जो दरख़्तो, फूलों

और घासों पर

बिछ जाते हैं 

उन्हें और भी ज्यादा

खूबसूरत बना देते हैं

हर रात ये

गिरने वाली

शबनम की बूंदें

प्रकृति को हर रोज

एक नया जीवन

देती है

मैं चाहती हूं

तुम्हारा प्रेम भी

शबनम की बूंदों

की तरह हो

कभी कभी

सोचती हूं

काश! तुम्हारा प्रेम

हरसिंगार के फूलों

की तरह होता

जो शाम ढलते ही

खिल उठता है

हरसिंगार के 

सफेद फूल

उसकी नारंगी डंठल

और, उसकी मनमोहक

खुशबू , उस ढ़लती हुई

शाम और आती हुई रात

जो तारों की

चादर ओढ़े है

और जिस पर

चांद टंगा है

और कहीं दूर

से आती हुई

ठंडी हवा जो

उन खुशबूओं को 

चारों तरफ बिखेर 

देती है

तुम वही ठंडी

हवा हो

जिसमें खुशबू

घूल गए हैं

जो चारों तरफ

सिर्फ खुश्बू ही

फैला रहे हैं।

स्तुति राय
शोधार्थी (एमफिल)
महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, वाराणसी

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