ग्रामीण परिवेश पर रची अशोक श्रीवास्तव कुमुद की काव्यकृति सोंधी महक से
🚺 कन्या शिक्षा 👩🎓
इंटर पास हुई है बेलवा,
इच्छा उच्च पढ़ाई बा।
अव्वल नंबर सभी विषय पर,
आगे विकट चढ़ाई बा।।
बेलवा होत अठ्ठारह की,
नित घर में चलती चर्चा।
छुड़ा पढ़ाई ढूंढौ शादी,
ले कर्जा कर दो खर्चा।।
काम भरे का पढ़ी लिखी बा,
नौकरी न करवावै का।
काम घरेलू दक्ष बहुत बा,
कर पीला करवावै का।।
लम्बाई भी गजब बढ़ी बा,
बातें गजब ज़माने की।
माई से दुइ उँगली ऊँची,
सर से बोझ हटाने की।।
कम्प्यूटर पर काम करै का,
बेलवा का मनवा चाहै।
जब जब देखै इसरो फोटो,
वैज्ञानिक बनना चाहै।।
घर में कोई साथ न देता,
शादी की सबको जल्दी।
बोझ लगे अब बेलवा सबको,
सबकी चाह लगै हल्दी।।
दस दस साल बड़ा चुन्नू पर,
चिंता खूब पढ़ावै का।
माई बप्पा दुनियादारी,
चुन्नू खूब गढ़ावै का।।
माई बप्पा चाहैं भाई,
चुन्नू पढ़ लिख जावै का।
एक साल में पास न होवै,
दुइ दुइ साल लगावै का।।
भाई बहना में यह अंतर,
बेलवा समझ नहीं आवै।
प्रतिभा उसकी दबी रहै क्यों,
उत्तर खोज नहीं पावै।।
स्याह हो गये ख्वाब सुनहरे,
विधि का लेख नहीं टारा।
चाचा बुधिया सब कुछ जानै,
बहैं मगर बहती धारा।
अशोक श्रीवास्तव "कुमुद"
राजरूपपुर, प्रयागराज
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